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ऊष्मागतिकी क्या है, ऊष्मागतिकी का प्रथम नियम, ऊष्मागतिकी का द्वितीय नियम (Thermodynamics first law in hindi

Table of Contents

ऊष्मागतिकी (Thermodynamics in hindi):

Thermodynamics hindi-भौतिक विज्ञान की वह शाखा है जिसमें ऊष्मा (heat) एवं यांत्रिक ऊर्जा (mechanical energy) के बीच संबंध तथा उनके परस्पर रूपांतरण का अध्ययन किया जाता है। 1843 में जूल (Joule) ने अनेक प्रयोगों द्वारा ऊष्मा (heat) एवं कार्य (work) के बीच संबंध ज्ञात किया तथा यह सिद्ध किया कि यांत्रिक ऊर्जा के अतिरिक्त रासायनिक एवं विद्युत ऊर्जाओं को भी ऊष्मा में परिवर्तित किया जा सकता है।

इसके विपरीत ऊष्मा को यांत्रिक कार्य के रूप में भी बदला जा सकता है, जैसे भाप इंजन में । इस प्रकार व्यापक रूप से ऊष्मागतिकी में ऊष्मा एवं ऊर्जा के अन्य प्रकार, जैसे यांत्रिक, विद्युतीय, चुंबकीय, रासायनिक एवं विकिरण के बीच संबंध का अध्ययन किया जाता है।

ऊष्मागतिक साम्य (Thermodynamic Equilibrium in hindi):

जब कोई निकाय बाह्य परिवेश (external surroundings) के साथ अन्योन्य क्रियाएँ (interactions) करता है तो निकाय की आंतरिक अवस्था (internal state) में परिवर्तन होता है। सामान्यतः किसी निकाय (जैसे गैस) की आंतरिक अवस्था इसके दाब (p) एवं आयतन (V) से मापी जाती है। ऊष्मागतिकी में निकाय एवं बाह्य परिवेश के साथ अन्योन्य क्रियाएँ अंशतः ऊष्मीय (thermal) तथा अंशत: गतिज (dynamic) होती हैं, अर्थात इन क्रियाओं में निकाय एवं परिवेश के बीच ऊष्मा विनिमय (exchange of heat) के अतिरिक्त एक द्वारा दूसरे पर यांत्रिक कार्य भी संपादित होता है।

“जब निकाय और बाह्य परिवेश के बीच कोई असंतुलित बल कार्य नहीं करता तथा निकाय के विभिन्न भागों के बीच भी असंतुलन नहीं रहता तब निकाय यांत्रिक साम्य की अवस्था (state of mechanical equilibrium) में रहता है ।”

इसी प्रकार यदि निकाय के विभिन्न भागों के ताप एकसमान हों तथा वह ताप बाह्य परिवेश के ताप के बराबर हो तब प्राप्त अवस्था को तापीय साम्य (thermal equilibrium) की अवस्था कहा जाता है।

इसके अतिरिक्त यदि विभिन्न भागों के रासायनिक संघटन (chemical composition) भी एकसमान हों, तो निकाय को रासायनिक साम्य (chemical equilibrium) की अवस्था में कहा जाता है। ऊष्मागतिक साम्य में निकाय में उपर्युक्त तीनों प्रकार के साम्य बने रहते हैं, अर्थात जब किसी निकाय में तापीय साम्य, यांत्रिक साम्य एवं रासायनिक साम्य एक साथ बने रहते हैं तब निकाय की अवस्था को ऊष्मागतिक साम्यावस्था (thermodynamic equilibrium) में कहा जाता है। इस अवस्था को पूर्णतः निरूपित करने के लिए इसके दाब (p), आयतन (V) तथा ताप (T) का ज्ञात रहना आवश्यक है। इन तीन राशियों को ऊष्मागतिक निर्देशांक (thermodynamic coordinates) कहते हैं।

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आयतन परिवर्तन में गैस द्वारा संपादित कार्य (Work done by a Gas during Change in Volume):

अब किसी गैस का प्रसार (expansion) होता है तब यह घेरनेवाले मुक्त तल पर बल लगाकर उसे बाहर की ओर धकेलती है। इस प्रकार गैस अपने प्रसार के क्रम में हमेशा परिवेश पर धनात्मक कार्य करती है। इसके विपरीत यदि गैस संपीडित की जाए तो गैस पर परिवेश द्वारा धनात्मक कार्य संपादित होगा, अर्थात गैस के संपीडन के क्रम में गैस परिवेश पर ऋणात्मक कार्य करती है।

समतापीय परिवर्तन (Isothermal Change in hindi):

“जब किसी निकाय (जैसे गैस) के आयतन और दाब में नियत ताप (constant temperature) पर परिवर्तन होता है तो ऐसे परिवर्तन की समतापीय परिवर्तन (isothermal change) कहा जाता है।”

ऐसे परिवर्तन के लिए आवश्यक है कि निकाय (गैस) किसी पूर्ण चालक (perfect conductor) बरतन में रखा हो। ऐसी स्थिति में, यदि परिवर्तन के समय ऊष्मा का उत्पादन होता है (जैसे, पिस्टन लगे बेलन में रखी गैस को दबाने में), तो वह तुरंत ही बरतन से बाहर चली जाएगी। फिर, यदि परिवर्तन के समय ऊष्मा अवशोषित (absorb) होती है (जैसे- पिस्टन को बाहर की ओर खींचकर गैस को जब फैलने दिया जाता है) तो बाहर से ऊष्मा बरतन के भीतर आ जाएगी जिससे निकाय का ताप उतना ही (अर्थात नियत) बना रहेगा। चूँकि पूर्ण सुचालक पदार्थ मिलना असंभव है, इसलिए पूर्ण रूप से समतापीय परिवर्तन का होना असंभव है। परंतु, जब कोई परिवर्तन बहुत धीरे-धीरे (very slow) होता है, जिससे कि ऊष्मा-विनिमय के लिए काफी समय मिले, तो वह परिवर्तन लगभग समतापीय होता है।

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बर्फ का अपने गलनांक (melting point) पर पिघलना, द्रवों का अपने क्वथनांक (boiling point) पर वाष्प में बदलना, इत्यादि समतापीय परिवर्तन के सामान्य उदाहरण हैं। फिर, यदि साइकिल के ट्यूब में एक छोटे छेद से हवा बहुत ही धीरे-धीरे बाहर निकलती है तो इस क्रिया में भी ट्यूब के अंदर की हवा का ताप लगभग नियत रहता है। यह परिवर्तन भी लगभग समतापीय परिवर्तन है।

इस प्रकार, हम कह सकते हैं कि समतापीय परिवर्तन में ताप नियत रहता है, परंतु ऊष्मा नियत नहीं रहती। ऐसे परिवर्तनों में पदार्थ एवं वातावरण के बीच ऊष्मा का आदान-प्रदान, अर्थात विनिमय (exchange) होता है । समतापीय परिवर्तन के लिए किसी आदर्श गैस के निश्चित द्रव्यमान के आयतन तथा दाब के बीच संबंध बॉयल के नियम (Boyle’s law) से व्यक्त किया जाता है, अर्थात ऐसे परिवर्तनों के लिए

  • pV = नियतांक

रुद्घोष्म परिवर्तन (Adiabatic Change in hindi):

“जब किसी निकाय (जैसे गैस) के आयतन और दाब में परिवर्तन इस प्रकार हो कि निकाय और बाह्य वातावरण के बीच ऊष्मा का कोई आदान-प्रदान (exchange) न हो, तो ऐसे परिवर्तन को रुद्घोष्म परिवर्तन (adiabatic change) कहा जाता है।”

ऐसे परिवर्तन के लिए आवश्यक कि निकाय (गैस) बाह्य वातावरण से पूर्णत: रोधित (perfectly insulated) हो । चूँकि कोई भी पदार्थ पूर्णत: ऊष्मारोधी नहीं होता, अतः पूर्ण रूप से रुद्धोष्म परिवर्तन का होना असंभव है। परंतु, जब कोई प्रक्रम बहुत जल्दी-जल्दी किया जाता है जिससे कि ऊष्मा के आदान-प्रदान के लिए समय ही न मिले, तो यह परिवर्तन लगभग रुद्घोष्म होता है।

यदि किसी गैस को अचानक (suddenly) संपीडित (compress) किया जाए तो गैस का ताप बढ़ जाता है। यही कारण है कि पंप से साइकिल में हवा भरते समय पंप का बैरल गर्म हो जाता है। इसी प्रकार, यदि किसी गैस को अचानक प्रसारित (expand) किया जाए तो उसका ताप कम हो जाएगा। जब मोटरगाड़ी के टायर का वाल्व हटाया जाता है या टायर एकाएक फट जाता है तब टायर के अंदर की हवा तेजी से वायुमंडल में प्रसारित हो जाती है जिससे टायर की हवा का ताप घट जाता है।

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इस प्रकार, हम कह सकते हैं कि रुद्घोष्म परिवर्तन में ऊष्मा नियत रहती है, परंतु ताप नियत नहीं रहता। ऐसे परिवर्तनों में पदार्थ एवं वातावरण के बीच ऊष्मा का आदान-प्रदान नहीं होता है। रुद्घोष्म परिवर्तन के लिए किसी आदर्श गैस के निश्चित परिमाण के दाब तथा आयतन के बीच संबंध निम्नलिखित होता है।

  • pVγ = नियतांक, जहाँ, γ गैस की दो मोलर ऊष्मा-धारिताओं का अनुपात है।

आंतरिक ऊर्जा (Internal Energy in hindi):

ऊष्मागतिकी के सभी नियमों की परिभाषा आंतरिक ऊर्जा (internal energy) की संकल्पना पर आधारित है, अतः आंतरिक ऊर्जा का ज्ञान आवश्यक है।

किसी निकाय (system) की आंतरिक ऊर्जा वास्तव में इसकी आणविक संरचना तथा अणुओं के घूर्णन (rotational), कंपन (vibrational) तथा स्थानांतरीय ( translational) गति के कारण होती है। उदाहरण के लिए, किसी वास्तविक गैस (real gas) की आंतरिक ऊर्जा उसके अणुओं की गतिज तथा स्थितिज ऊर्जाओं के योग के बराबर होती है। परंतु, आदर्श गैस (ideal gas) के अणुओं में स्थितिज ऊर्जा नहीं होती (क्योंकि उसके अणु एक-दूसरे को आकर्षित नहीं करते ऐसा माना जाता है)।

  • आदर्श गैस की आंतरिक ऊर्जा केवल उसके अणुओं की कुल गतिज ऊर्जा ही होती है।

जब कोई ऊष्मागतिक निकाय (thermodynamic system) अपने परिवेश (surroundings) से परस्पर क्रिया करता है तथा एक निश्चित प्रक्रम द्वारा प्रारंभिक साम्यावस्था (initial equilibrium state) i से अंतिम साम्यावस्था (final equilibrium state) f प्राप्त करता है तब उसकी आंतरिक ऊर्जा में परिवर्तन होता है। आंतरिक ऊर्जा का परिवर्तन केवल उन दो अवस्थाओं ( i एवं f ) पर ही निर्भर करता है, इस बात पर कदापि निर्भर नहीं करता कि एक अवस्था से दूसरी अवस्था किस प्रकार अथवा किस प्रक्रम द्वारा प्राप्त की गई है। आंतरिक ऊर्जा को संकेत U से सूचित किया जाता है।

ऊष्मागतिकी का प्रथम नियम (Ushmagatiki ka pratham niyam ):

Ushmagatiki ka pratham niyam-ऊर्जा-संरक्षण के नियमानुसार ऊर्जा को न तो उत्पन्न किया जा सकता है और न नष्ट किया जा सकता है; इसका केवल रूपांतर हो सकता है। ऊष्मागतिकी का प्रथम नियम (first law of thermodynamics) वस्तुत: ऊर्जा संरक्षण के नियम का ही एक रूप है जिसका वर्णन नीचे किया गया है।

ऊष्मागतिकी के प्रथम नियम का अवकल रूप ( differential form) है। इस नियम को शब्दों में इस प्रकार व्यक्त किया जा सकता है –

“यदि कार्य कर सकनेवाले किसी निकाय द्वारा ऊष्मा अवशोषित हो तो अवशोषित ऊष्मा का परिमाण निकाय द्वारा किए गए बाह्य कार्य एवं उसकी आंतरिक ऊर्जा में वृद्धि के योग के बराबर होता है।”

ऊष्मागतिकी के प्रथम नियम की सीमाबद्धता (Limitations of the First Law of Thermodynamics):

ऊष्मागतिकी का प्रथम नियम यांत्रिक ऊर्जा एवं ऊष्मा की तुल्यता (equivalence) का मात्र गुणात्मक प्रकथन (qualitative statement) ही है तथा यह नियम केवल ऊर्जा-संरक्षण के सिद्धांत को व्यक्त करता है। इस नियम के आधार पर ऊष्मा के प्रवाह की दिशा निर्धारित नहीं की जा वि सकती है।

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हम जानते हैं कि ऊष्मा का प्रवाह उच्च ताप की वस्तु से निम्न ताप की वस्तु की ओर होता है। इसके विपरीत, अर्थात निम्न ताप से उच्च ताप की ओर ऊष्मा का प्रवाह नहीं हो सकता है। लेकिन, ऊष्मागतिकी का प्रथम नियम इस विपरीत प्रक्रम को वर्जित नहीं करता ।स्पष्टतः, प्रथम नियम से किसी प्रक्रम की दिशा निर्धारित नहीं की जा सकती है। प्रक्रम की दिशा ऊष्मागतिकी के द्वितीय नियम से निर्धारित की जाती है।

ऊष्मागतिकी के प्रथम नियम के अनुप्रयोग (Applications of First Law of Thermodynamics):

ऊष्मागतिकी के प्रथम नियम का अवकल रूप निम्नलिखित है।

     dQ = dU + dW

जहाँ, dQ किसी निकाय को दी गई ऊष्मा या ऊष्मीय ऊर्जा, dU निकाय की आंतरिक ऊर्जा में परिवर्तन तथा dW निकाय द्वारा बाह्य कार्य करने में व्यय हुई ऊर्जा है। इसके कुछ अनुप्रयोग निम्नलिखित है।

(a) समतापीय परिवर्तन (isothermal change) के लिए-

यदि किसी निकाय में होनेवाले किसी परिवर्तन में ताप (temperature) नियत रहे तो वह परिवर्तन समतापीय कहा जाता है। चूँकि एक आदर्श गैस की आंतरिक ऊर्जा केवल ताप पर ही निर्भर करती है, अतः आदर्श गैस के लिए समतापीय परिवर्तन में dU = 0. इसलिए ऊष्मागतिकी के प्रथम नियम से,

  dQ = dW

अर्थात, इस परिवर्तन में निकाय (गैस) द्वारा ली गई कुल ऊष्मा उसके द्वारा कार्य करने में खर्च होती है।

(b) समदावी परिवर्तन (isobaric change) के लिए –

यदि किसी निकाय में होनेवाली किसी प्रक्रिया के दौरान दाब नियत रहे, तो उस प्रक्रिया को समदाबी परिवर्तन कहा जाता है। उदाहरणार्थ, नियत दाब पर (तथा नियत ताप पर भी) पानी का खौलकर भाप बनना, पानी का जमकर बर्फ बनना इत्यादि समदाबी परिवर्तन हैं। इस परिवर्तन में dW = p(V2 – V1), इसलिए प्रथम नियम से

pQ = dU + p(V2 – V1).

(c) समआयतनिक परिवर्तन (isochoric change) के लिए –

यदि किसी निकाय में होनेवाली किसी प्रक्रिया में आयतन नियत रहे (dV = 0) तो उस प्रक्रिया को समआयतनिक परिवर्तन कहा जाता है। ऐसे परिवर्तन में निकाय द्वारा अथवा निकाय पर कोई कार्य नहीं किया जाता (dW = p△V = 0).

dQ = dU + dW से,

dQ = dU अर्थात, ऐसे परिवर्तन में निकाय को दी गई, अथवा ली गई कुल ऊष्मा निकाय की आंतरिक ऊर्जा में वृद्धि या कमी करने में खर्च होती है।

(d) रुद्घोष्म परिवर्तन (adiabatic change) के लिए –

यदि किसी निकाय में होनेवाली – किसी प्रक्रिया में ऊष्मा न तो बाहर से निकाय में आ सके और न ही निकाय से बाहर जा सके (dQ = 0) तो उस प्रक्रिया को रुद्धोष्म परिवर्तन कहा जाता है। इसलिए प्रथम नियम से,

dU = –dW

[ dQ = 0 ] या dW = -dU

अर्थात, निकाय द्वारा किया गया कार्य = निकाय की आंतरिक ऊर्जा में कमी,

अथवा निकाय पर किया गया कार्य = निकाय की आंतरिक ऊर्जा में वृद्धि |

गैसों की दो विशिष्ट ऊष्मा धारिताएँ (Two Specific Heat Capacities of Gases):

विशिष्ट ऊष्मा-धारिता की परिभाषा के अनुसार किसी वस्तु की विशिष्ट ऊष्मा-धारिता, ऊष्मा का वह परिमाण है जो उसके एकांक द्रव्यमान (unit mass) का ताप 1 K से बढ़ा दे। इस परिभाषा से पता चलता है कि किसी वस्तु की विशिष्ट ऊष्मा-धारिता केवल उसके पदार्थ के प्रकार पर ही निर्भर नहीं करती, बल्कि ताप की वृद्धि एवं उसके आयतन की वृद्धि के लिए किए गए कार्य पर भी निर्भर करती है, क्योंकि प्राप्त ऊष्मा का कुछ भाग इस वृद्धि के लिए आवश्यक कार्य में भी खर्च होता है। ठोस तथा द्रवों में यह प्रसार नगण्य (negligible) है, परंतु गैसों के लिए ऐसी बात नहीं है। ताप-वृद्धि (rise in temperature) से गैस के आयतन तथा दाब दोनों में परिवर्तन होते हैं।

इस परिवर्तन के लिए आवश्यक कार्य जो प्राप्त ऊष्मा के रूपांतर से प्राप्त होता है, नगण्य नहीं है। अतः, गैस की विशिष्ट ऊष्मा-धारिता व्यक्त करते समय यह आवश्यक है कि जिस अवस्था (condition) में उसे ऊष्मा दी जा रही है उसे भी व्यक्त किया जाए, अर्थात गर्म करते समय या तो आयतन नियत रखा जाता है या दाब। यही कारण है कि गैस की दो विशिष्ट ऊष्मा-धारिताएँ होती हैं—

(i) नियत दाब पर विशिष्ट ऊष्मा-धारिता (Cp) तथा
(ii) नियत आयतन पर विशिष्ट ऊष्मा-धारिता (Cv)।
ये दोनों विशिष्ट ऊष्मा-धारिताएँ भिन्न होती हैं और Cp का मान Cv से अधिक होता है ।

(i) नियत दाब पर गैस की विशिष्ट ऊष्मा धारिता (Specific heat capacity of a gas at constant pressure, Cp) —

दाब नियत रखकर, किसी गैस के एकांक द्रव्यमान का ताप 1 K से बढ़ाने के लिए आवश्यक ऊष्मा को नियत दाब पर गैस की विशिष्ट ऊष्मा – धारिता कहते हैं।

(ii) नियत आयतन पर गैस की विशिष्ट ऊष्मा-धारिता (Specific heat capacity of a gas at constant volume, cy) —

आयतन नियत रखकर, किसी गैस के एकांक द्रव्यमान का ताप 1K से बढ़ाने के लिए आवश्यक ऊष्मा को नियत आयतन पर गैस की विशिष्ट ऊष्मा धारिता कहते हैं।

ऊष्मागतिकी का द्वितीय नियम (The Second Law of Thermodynamics in hindi):

Second law of thermodynamics in hindi-“आसान भाषा में कहें तो ऊष्मा ऊर्जा को पूर्ण रूप से यांत्रिक ऊर्जा में नहीं बदला जा सकता है ऊष्मागतिकी का दूसरा नियम यही है

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“अनुत्क्रमणीय प्रक्रम (irreversible process) में प्रक्रम की दिशा जिस नियम के अनुसार निर्धारित होती है उसे ऊष्मागतिकी का द्वितीय नियम कहते हैं। “

ऊष्मागतिकी का प्रथम नियम(Ushmagatiki ka pratham niyam)मूलतः ऊर्जा संरक्षण (conservation of energy) का नियम है। इस नियम के अनुसार सभी प्रक्रमों के प्रारंभ एवं अंत में कुल ऊर्जा हमेशा नियत रहती है। ऊर्जा संरक्षण से संबद्ध यह प्रथम नियम प्रक्रिया की दिशा (direction of the process) को नहीं बताता है, अर्थात वैसे सभी प्रक्रम जिनमें ऊर्जा तो संरक्षित रहती है प्रथम नियम के अनुसार संभव होते हैं परंतु प्रकृति के नियम से वे संभव नहीं होते।

अब, हम किसी ऐसे प्रक्रम पर विचार करते हैं जो ऊर्जा संरक्षण नियम के अनुकूल तो है, पर प्रकृति में उन प्रक्रमों का होना अनिवार्यतः असंभव है। क्या ऊष्मा का प्रवाह स्वतः (spontaneously) निम्न ताप की वस्तु से उच्च ताप की वस्तु में हो सकता है? कदापि नहीं। उदाहरण के लिए, यदि समान ऊष्मा-धारिता की दो वस्तुओं को जिनके ताप क्रमशः 100°C तथा 1°C है संपर्क में लाया जाए तो गर्म वस्तु से ठंडी वस्तु में ऊष्मा जाएगी और अंततः दोनों के ताप 50°C हो जाएँगे। क्या इसकी विपरीत प्रक्रिया संभव है? क्या 50°C पर उन दोनों वस्तु को संपर्क में रखने पर ऊष्मा का प्रवाह इस प्रकार हो सकता है कि एक वस्तु ठंडी होकर पर आ जाए और दूसरी का ताप बढ़कर 100°C, अर्थात प्रारंभिक स्थिति पर आ जाए? प्र दोनों प्रक्रमों में ऊष्मागतिकी के प्रथम नियम का उल्लंघन (violation) नहीं होता है, (सीधी और विपरीत, दोनों प्रक्रमों में ऊर्जा संरक्षित रहती है) फिर भी विपरीत प्रक्रम अनिवार्यतः प्रकृति के नियमों का उल्लंघन है। अतः,

अनुत्क्रमणीय प्रक्रम (irreversible process) में प्रक्रम की दिशा जिस नियम के अनुसार निर्धारित होती है उसे ऊष्मागतिकी का द्वितीय नियम कहते हैं। इस नियम का प्रकथन (statement) अनेक वैज्ञानिकों ने भिन्न-भिन्न रूप में दिया, परंतु सभी प्रकथन का निष्कर्ष एक ही होता है। ऊष्मा इंजन की कार्य प्रणाली के रूप में ऊष्मागतिकी के द्वितीय नियम का प्रकथन (Statement of the second law of thermodynamics in terms of working of heat engines) — ऊष्मा इंजन की दक्षता (efficiency) η = W / Q1 = Q1-Q2 / Q1 = 1- Q2 / Q1 = 1 – T2 / T1

जहाँ, Q1= स्रोत (source) से T1 ताप पर ली गई ऊष्मा

Q2 = अपवाही (sink) को T2, ताप पर लौटाई गई ऊष्मा, W =इंजन द्वारा किया गया कार्य = Q1 – Q2

  • चक्रीय प्रक्रम में क्रियाशील तथा एक ही वस्तु से लगातार ऊष्मा लेकर उसे पूर्णत: कार्य में परिवर्तित करनेवाला ऊष्मा इंजन बनाना असंभव है । ( It is impossible to design a heat engine which works in cyclic process and takes heat from a single body and converts it completely into mechanical work.)
  • ऊष्मागतिकी के दूसरे नियम के इस प्रकथन को केल्विन एवं प्लांक का प्रकथन (Kelvin Planck statement) कहा जाता है। इस नियम का एक अन्य प्रकथन निम्नलिखित हैं जिसका भी मूल विचार एक ही है।

क्लाउसियस का प्रकथन (Clausius’s statement) –

किसी भी स्वचालित यंत्र द्वारा निम्न ताप वाली वस्तु से उच्च ताप की वस्तु को लगातार ऊष्मा देना संभव नहीं है जब तक कि उसे किसी बाह्य योजना द्वारा मदद न दी जाए। इस प्रकथन की व्याख्या रेफ्रिजरेटर की कार्यप्रणाली की व्याख्या पर आधारित है।

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FAQ

ऊष्मागतिकी क्या है?

भौतिक विज्ञान की वह शाखा है जिसमें ऊष्मा (heat) एवं यांत्रिक ऊर्जा (mechanical energy) के बीच संबंध तथा उनके परस्पर रूपांतरण का अध्ययन किया जाता है।

ऊष्मागतिक साम्य क्या है?

“जब निकाय और बाह्य परिवेश के बीच कोई असंतुलित बल कार्य नहीं करता तथा निकाय के विभिन्न भागों के बीच भी असंतुलन नहीं रहता तब निकाय यांत्रिक साम्य की अवस्था (state of mechanical equilibrium) में रहता है ।”

समतापीय परिवर्तन क्या है?

“जब किसी निकाय (जैसे गैस) के आयतन और दाब में नियत ताप (constant temperature) पर परिवर्तन होता है तो ऐसे परिवर्तन की समतापीय परिवर्तन (isothermal change) कहा जाता है।”

ऊष्मागतिकी का प्रथम नियम क्या है?

“यदि कार्य कर सकनेवाले किसी निकाय द्वारा ऊष्मा अवशोषित हो तो अवशोषित ऊष्मा का परिमाण निकाय द्वारा किए गए बाह्य कार्य एवं उसकी आंतरिक ऊर्जा में वृद्धि के योग के बराबर होता है।”

ऊष्मागतिकी का द्वितीय नियम क्या है?

आसान भाषा में कहें तो ऊष्मा ऊर्जा को पूर्ण रूप से यांत्रिक ऊर्जा में नहीं बदला जा सकता है ऊष्मागतिकी का दूसरा नियम यही है

Conclusion

दोस्तों हमारा Blog….”ऊष्मागतिकी क्या है, ऊष्मागतिकी का प्रथम नियम, ऊष्मागतिकी का द्वितीय नियम (hermodynamics first law in hindiपढ़ने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद उम्मीद करता हूं कि इस आर्टिकल में आपको अपने सभी सवालों के जवाब मिल गए होंगे, फिर भी अगर आपके मन में कोई सवाल रह गया हो, तो आप हमसे Comments द्वारा पूछ सकते हैं.

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