तरंगों का अध्यारोपण (Superposition of Waves):
“जब दो तरंगें एक साथ किसी माध्यम में गमन करती हैं तो वे माध्यम के प्रत्येक कण को एक साथ प्रभावित करती हैं,अर्थात उन्हें माध्य स्थिति से विस्थापित करती हैं। परंतु, कणों का परिणामी विस्थापन उन अवयवी तरंगों (component waves) द्वारा स्वतंत्र रूप से उत्पन्न विस्थापनों के सदिश योगफल (vector sum) के बराबर होता है। “
यदि अवयवी तरंगों द्वारा उत्पन्न विस्थापन y1 तथा y2 हों, तो तरंगों के समान कला में मिलने पर परिणामी विस्थापन (y1 + y2) होता है, किंतु उनके विपरीत कला में मिलने पर परिणामी विस्थापन (y1 – y2) होता है, अर्थात परिणामी विस्थापन y = y1 + y2)। इसी सिद्धांत को अध्यारोपण का सिद्धांत (principle of superposition) कहा जाता है।
चूँकि तीव्रता (intensity) आयाम ( amplitude) के वर्ग के समानुपाती होती है, अतः समान कला में अध्यारोपित तरंग की तीव्रता बढ़ जाती है तथा विपरीत कला में अध्यारोपित तरंग की तीव्रता घट जाती है। स्पष्टतः, समान आवृत्ति की दो तरंगों के अध्यारोपित होने पर तीव्रता का पुनर्वितरण (redistribution) होता है तथा तीव्रता कहीं पर महत्तम होती है तथा कहीं पर न्यूनतम होती है।
दो तरंगों के अध्यारोपण के कारण तीव्रता के पुनर्वितरण से तीव्रता के महत्तम तथा न्यूनतम होने की घटना को व्यतिकरण (interference) कहा जाता है। समान कला में तरंगों का अध्यारोपित होना अर्थात शृंग पर श्रृंग या गर्त पर गर्त का मिलना रचनात्मक व्यतिकरण (constructive interference) कहा जाता है। इसके विपरीत, तरंगों का विपरीत कला में अध्यारोपित होना अर्थात शृंग पर गर्त का मिलना विनाशी व्यतिकरण (destructive interference) कहा जाता है।
व्यतिकरण की घटना में दोनों तरंगों की ऊर्जाओं का योग सर्वदा संरक्षित (conserved) रहता है। ऊर्जा के पुनर्वितरण में न्यूनतम तीव्रता के स्थान से जितनी ऊर्जा विलुप्त होती है उतनी ही ऊर्जा महत्तम तीव्रता के क्षेत्र पर बढ़ जाती है।
विस्पंद (Beats in hindi):
“जब लगभग समान आवृत्ति (frequency) तथा समान आयाम (amplitude) की दो ध्वनि-तरंगें एक साथ किसी माध्यम में चलें तो किसी स्थान पर ध्वनि की परिणामी तीव्रता में क्रमवर्ती रूप से उतार-चढ़ाव, अर्थात आवर्त वर्धन और क्षय (periodic waxing and waning) होता रहता है। ध्वनि की तीव्रता में समय के साथ इस प्रकार होनेवाले आवर्त उतार-चढ़ाव को विस्पंद (beats) कहते हैं। “
विस्पंद का निर्माण लगभग समान आवृत्ति के दो स्वरित्र द्विभुजों को एक साथ बजाने पर या समान आवृत्ति के दो वाद्य यंत्रों (सितार आदि) को एक साथ बजाने पर होता है।
विस्पंद का निर्माण वस्तुतः भिन्न आवृत्तियों की दो ध्वनि तरंगों के परस्पर व्यतिकरण (interference) के कारण होता है। किसी समय जब ध्वनि तरंगें समान कला (phase) में मिलती हैं, अर्थात शृंग (crest) पर शृंग का अध्यारोपण (superposition) अथवा गर्त (trough) पर गर्त का अध्यारोपण होता है तब परिणामी आयाम (amplitude) अधिक हो जाता है और तीव्रता की महत्तम स्थिति प्राप्त होती है।
एक निश्चित समय के बाद आवृत्ति के भिन्न रहने के कारण एक तरंग के शृंग का दूसरी तरंग के गर्त पर अध्यारोपण होने के कारण वे विपरीत कला में मिलती हैं। स्पष्टतः, इस स्थिति में परिणामी आयाम न्यूनतम होगा और तीव्रता की न्यूनतम अवस्था प्राप्त होगी। तीव्रता के महत्तम और न्यूनतम होने की यह घटना निश्चित समयांतराल (interval) पर बार-बार दुहराई जाती है जिसे विस्पंद कहा जाता है। तीव्रता की दो क्रमागत (consecutive) महत्तम स्थिति या दो क्रमागत न्यूनतम स्थिति को एक विस्पंद कहते हैं।
यदि समान आवृत्ति के दो स्वरित्र द्विभुज एक साथ बजाए जाएँ तो तीव्रता में उतार-चढ़ाव का आभास नहीं होगा। परंतु, एक की भुजा पर थोड़ा मोम लगाने पर उसकी आवृत्ति में कुछ कमी हो जाती है। इस प्रकार ध्वनि स्रोतों की आवृत्ति में थोड़ा अंतर होने पर परिणामी तीव्रता में समय के साथ उतार-चढ़ाव अर्थात विस्पंद का निर्माण होगा।
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विस्पंद के अनुप्रयोग (Applications of Beats in hindi):
विस्पंद के प्रमुख उपयोग निम्नलिखित हैं।
स्वरित्र द्विभुज की आवृत्ति के निर्धारण में (In the determination of the frequency of a tuning fork) –
यदि किसी स्वरित्र द्विभुज A की अज्ञात आवृत्ति (N) ज्ञात करनी हो, तो लगभग इसी आवृत्ति का एक दूसरा स्वरित्र द्विभुज B लिया जाता है जिसकी आवृत्ति (n) ज्ञात हो। दोनों स्वरित्र द्विभुजों को एक साथ बजाकर ज्ञात समय में तीव्रता के उतार-चढ़ाव के आभास से विस्पंदों की संख्या गिन ली जाती है।
यदि प्रति सेकंड विस्पंदों की संख्या m हो, तो A की अज्ञात आवृत्ति (n-m) होगी अथवा (n+m)। अब यह जानने के लिए कि A की आवृत्ति B की ज्ञात आवृत्ति (n) से अधिक है या कम, स्वरित्र A की आवृत्ति को इसकी एक भुजा पर थोड़ा मोम लगाकर कम कर दिया जाता है। पुनः दोनों को एक साथ बजाकर ज्ञात समय में विस्पंदों की संख्या गिन ली जाती है। यदि प्रति सेकंड विस्पंदों की संख्या m से अधिक हो जाती है तो A की आवृत्ति (N) B की ज्ञात आवृत्ति (n) से कम होगी, अर्थात A की आवृत्ति N =(n-m)। इसके विपरीत, यदि प्रति सेकंड विस्पंदों की संख्या m से कम हो जाती है तो A की आवृत्ति n से अधिक होगी, अर्थात A की आवृत्ति N = (n+m).
यह ध्यान रखना चाहिए कि इस विधि से आवृत्ति का निर्धारण तभी संभव है जब स्वरित्र द्विभुजों की आवृत्तियों का अंतर 10 से कम हो । इसके अतिरिक्त, विस्पंद पहचानने का सीमांत मान प्रति मिनट 2 होता है, अर्थात 1/30 कंपन प्रति सेकंड की आवृत्तियों का अंतर शुद्धता के साथ निर्धारित किया जा सकता है।
वाद्यों के समस्वरण में (In the tuning of musical instruments) –
विस्पंदों के आभास से ही वाद्ययंत्रों का समस्वरण किया जाता है। दो वाद्यों के समस्वरित रहने पर उनसे उत्पन्न तरंगों की आवृत्तियाँ समान होंगी तथा विस्पंदों की संख्या शून्य होगी। अतः, एक वाद्य के स्वर की आवृत्ति धीरे-धीरे इस प्रकार नियंत्रित की जाती है कि जिससे दोनों वाद्यों को एक साथ बजाने पर कोई विस्पंद नहीं सुनाई दे। इस अवस्था में दोनों वाद्य समस्वरित (tuned) कहे जाते हैं।
रेडियो अभिग्रहण में (In radio reception) —
रेडियो स्टेशन से आनेवाली तरंगों की आवृत्ति श्रव्य परास (audible range) से बहुत अधिक होती है। अभिग्राही स्टेशन (receiving station) पर इन तरंगों को कुछ भिन्न आवृत्ति की तरंगों से मिश्रित ( mixed) कर दिया जाता है। दोनों तरंगों के संयोजन से एक स्पंदमान आवृत्ति प्राप्त होती है जो श्रव्य परास के अंदर होती है।
खानों में विस्फोटक मेथेन गैस का पता लगाने में ( In locating the explosive methane gas in mines ) –
खानों में विस्फोटक गैसों का पता लगाने में एक विशेष यंत्र का उपयोग किया जाता है जो विस्पंद के सिद्धांत पर आधारित है। इस यंत्र की दो नलियों से शुद्ध हवा तथा खान की गैस अलग-अलग प्रवाहित की जाती है। खान की शुद्ध गैस के प्रवाह के समय दोनों नलियाँ समस्वरित (tuned) रहती हैं। परंतु, खान में मेथेन गैस के उत्पन्न होते ही खान से प्रवाहित गैस का घनत्व घट जाता है और इसमें ध्वनि की चाल बढ़ जाती है।
स्पष्टतः, गैस नली से प्राप्त ध्वनि की आवृत्ति में परिवर्तन हो जाता है और परिणामी प्रभाव विस्पंद उत्पन्न करता है। इस प्रकार विस्फोट होने के पूर्व ही विस्पंदों की जानकारी से विस्फोट के विनाशकारी प्रभाव से बचने में सहायता मिलती है।
स्थायी व्यतिकरण तथा विस्पंद में भेद (Distinctions between Stable Interference and Beats):
तरंगों के लिए व्यतिकरण तथा विस्पंद, दोनों ही घटनाएँ अध्यारोपण के सिद्धांत (principle superposition) पर आधारित हैं, परंतु उनके बीच भिन्नता होने के निम्नलिखित कारण हैं।
(i) ध्वनि की तीव्रता में समय के साथ आवर्त रूप में वर्धन एवं क्षय की घटना को विस्पंद कहते हैं। विस्पंद की उत्पत्ति के लिए ध्वनि स्रोतों की आवृत्तियों को लगभग समान होना चाहिए।
परंतु, स्थायी व्यतिकरण की घटना में ध्वनि स्रोतों की आवृत्तियों को एक-दूसरी के बिलकुल बराबर होना चाहिए ताकि किसी बिंदु पर अवयवी तरंगों के बीच कलांतर का मान अपरिवर्तित रहे ।
(ii) रचनात्मक एवं विनाशी व्यतिकरण की अवस्था में महत्तम एवं न्यूनतम तीव्रताओं के स्थान निश्चित रहते हैं तथा वे समय के साथ नहीं बदलते। किसी लिए गए बिंदु पर हमेशा महत्तम या हमेशा न्यूनतम तीव्रता की ध्वनि सुनी जा सकती है।
परंतु, विस्पंद की घटना में किसी बिंदु पर रचनात्मक और विनाशी व्यतिकरण का परस्पर रूपांतरण समय के साथ होता रहता है, अर्थात किसी बिंदु पर किसी क्षण तीव्रता महत्तम होती है तो एक निश्चित समय के बाद उसी बिंदु पर तीव्रता न्यूनतम भी होती है। अर्थात, विस्पंद में प्रत्येक बिंदु पर तीव्रता का मान समय के साथ आवर्त रूप में घटता-बढ़ता रहता है।
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तरंगों का परावर्तन : कला परिवर्तन (Reflection of Waves : Phase Change):
तरंग का संचरण किसी खुले माध्यम में होता है तब अवमंदन (damping) की अनुपस्थिति में के प्रत्येक कण अपनी माध्य स्थिति के परितः समान आयाम के कंपन समान आवृत्ति से रहते हैं। इस प्रकार संचरित तरंगों को प्रगामी तरंग (progressive or travelling wave) कहा तथा उन्हें निम्नलिखित समीकरण से व्यक्त किया जाता है –
Y = A sin ( ωt – k x )
अप्रगामी तरंगें (Stationary Waves):
जब समान आयाम तथा समान आवृत्ति की दो प्रगामी तरंगें किसी माध्यम में विपरीत दिशाओं में समान चाल से चलती हैं तो उनके अध्यारोपण (superposition) से एक ऐसी तरंग बनती है जो किसी भी दिशा में आगे नहीं बढ़ती बल्कि बारी-बारी से फैलती और सिकुड़ती रहती है। इस प्रकार की तरंग को अप्रगामी तरंग (stationary wave या standing wave) कहा जाता है।
इस तरंग में ऊर्जा का अनुदैर्घ्य (longitudinal) प्रकृति की अप्रगामी तरंगें बनती संचरण (transmission) नहीं होता, क्योंकि इसके बनने में अवयवी प्रगामी तरंगें (component progressive waves) समान परिमाण में, किंतु विपरीत दिशाओं में ऊर्जा संचारित करती हैं। फलतः, तरंग का रूप (wave form) किसी स्थान पर स्थिर रहता है, परंतु आयाम, समय के साथ घटता-बढ़ता रहता है। अप्रगामी तरंग में कुछ बिंदु ऐसे होते हैं जो सदैव स्थिर रहते हैं। ये बिंदु निस्पंद (nodes) कहे जाते हैं।
दो क्रमागत निस्पंद बिंदुओं के मध्य स्थान पर महत्तम आयाम वाले बिंदु होते हैं जिन्हें प्रस्पंद (antinodes) कहा जाता है। माध्यम का प्रत्येक कण (निस्पंद बिंदु को छोड़कर) अपनी माध्य स्थिति के दोनों ओर समान आवृत्ति से सरल आवर्त गति निष्पन्न करता है। वस्तुतः, अप्रगामी तरंग एक तरंग नहीं है, बल्कि एक कंपन है, क्योंकि इसमें विक्षोभ का संचरण नहीं होता।
किसी बद्ध माध्यम (bounded medium) में आपतित एवं परावर्तित तरंगों के अध्यारोपण से ही अप्रगामी तरंगें बनती हैं। किसी स्वरमापी (sonometer) में दो सेतुओं (bridges) के बीच तने तार के अनुप्रस्थ कंपन से उत्पन्न अप्रगामी तरंग की प्रकृति अनुप्रस्थ (transverse) होती है। इसमें सेतुओं से परावर्तित तरंगों (जो विपरीत दिशाओं में चलती हैं) का परस्पर अध्यारोपण (superposition) होता है। इसी प्रकार, किसी ऑर्गन पाइप (organ pipe) में आपतित एवं परावर्तित अनुदैर्ध्य तरंगों के अध्यारोपण से हैं।
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FAQ
Q: तरंगों का अध्यारोपण क्या है?
“जब दो तरंगें एक साथ किसी माध्यम में गमन करती हैं तो वे माध्यम के प्रत्येक कण को एक साथ प्रभावित करती हैं,अर्थात उन्हें माध्य स्थिति से विस्थापित करती हैं। परंतु, कणों का परिणामी विस्थापन उन अवयवी तरंगों (component waves) द्वारा स्वतंत्र रूप से उत्पन्न विस्थापनों के सदिश योगफल (vector sum) के बराबर होता है। “
Q: विस्पंद क्या होता है?
“जब लगभग समान आवृत्ति (frequency) तथा समान आयाम (amplitude) की दो ध्वनि-तरंगें एक साथ किसी माध्यम में चलें तो किसी स्थान पर ध्वनि की परिणामी तीव्रता में क्रमवर्ती रूप से उतार-चढ़ाव, अर्थात आवर्त वर्धन और क्षय (periodic waxing and waning) होता रहता है। ध्वनि की तीव्रता में समय के साथ इस प्रकार होनेवाले आवर्त उतार-चढ़ाव को विस्पंद (beats) कहते हैं। “
Conclusion
दोस्तों हमारा Blog….”तरंगों का अध्यारोपण, परिभाषा, विस्पंद क्या है, उदाहरण (Superposition of waves, definition, what is pulse, examples)”पढ़ने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद उम्मीद करता हूं कि इस आर्टिकल में आपको अपने सभी सवालों के जवाब मिल गए होंगे, फिर भी अगर आपके मन में कोई सवाल रह गया हो, तो आप हमसे Comments द्वारा पूछ सकते हैं.