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प्रोटीन(Protein kya hai)क्या है, प्रोटीन संश्लेषण, प्रोटीन की संरचना, क्रियाविधि (What is protein in hindi)

प्रोटीन संश्लेषण ( Protein synthesis )

जीवन-संबंधी आवश्यक कार्यों के संपादन के लिए हर जीव को प्रोटीन की आवश्यकता होती है। इसके अतिरिक्त सभी जैविक क्रियाओं में एंजाइम की भूमिका उत्प्रेरक (catalyst) की होती है जो प्रोटीन के जटिल रूप होते हैं।

प्रोटीन(Protein kya hai)क्या है?

यह बीस प्रकार के सक्रिय एमीनो अम्लों (active amino acids) से बना होता है। दो एमीनो अम्लों के बीच पेप्टाइड बंध (peptide या -CO-NH bond) रहते हैं यानि एमीनो अम्लों की पेप्टाइड बंध से जुड़ी संरचना को प्रोटीन या पॉलिपेप्टाइड श्रृंखला (polypeptide chain) कहते हैं।

विभिन्न प्रोटीनों में एमीनो अम्लों की संख्या एवं क्रम भिन्न होते हैं, लेकिन एक एमीनो अम्ल का कार्बोक्सिल ग्रूप (COOH) दूसरे एमीनो अम्ल के एमीनो ग्रूप (NH2) से हमेशा पेप्टाइड बंध द्वारा जुड़ा रहता है। 1948 में बीडल एवं टैटम (George Wells Beadle and Edward Lawrie Tatum) ने कवक न्यूरोस्पोरा (Neurospora) पर प्रयोग कर यह बताया कि एक एंजाइम के संश्लेषण के लिए एक जीन जिम्मेवार होता है।

इसी परिकल्पना को एक जीन एक एंजाइम सिद्धांत (one-gene one-enzyme theory) कहा जाता है। चूंकि कुछ एंजाइम एक से अधिक पेप्टाइड के बने होते हैं एवं बहुत से प्रोटीन एंजाइम नहीं होते हैं, इस सिद्धांत को परिवर्तित कर अब एक जीन एक पॉलिपेप्टाइड (one-gene one-polypeptide) कर दिया गया है।

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प्रोटीन की संरचना (Structure of Protein in hindi)

प्रोटीन जटिल कार्बनिक यौगिक होता है जो नाइट्रोजन के अलावा कार्बन, हाइड्रोजन, फॉस्फोरस, ऑक्सीजन एवं सल्फर का बना होता है। यह प्रोटोप्लाज्म का मुख्य हिस्सा बनाता है। संरचनात्मक दृष्टिकोण से यह निम्नलिखित चार प्रकार का हो सकता है।

प्राथमिक संरचना (Primary structure )

जब पॉलिपेप्टाइड चेन में एमीनो अम्ल रेखीय क्रम (linear sequence) में अवस्थित हों तो इसे प्रोटीन की प्राथमिक संरचना कहते हैं, जैसे नया संश्लेषित पॉलिपेप्टाइड शृंखला (newly synthesized polypeptide chain)।

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द्वितीयक संरचना (Secondary structure) —

जब प्राथमिक पॉलिपेप्टाइड शृंखला मुड़कर कुंडली या हेलिक्स (helix) का रूप ग्रहण कर ले तो इसे प्रोटीन की द्वितीयक संरचना कहते हैं।

तृतीयक संरचना (Tertiary structure ) —

जब पॉलिपेप्टाइड का लंबा चेन बहुत ज्यादा मुड़कर गोलाकार (globular) आकार ग्रहण कर ले तो इसे प्रोटीन की तृतीयक संरचना कहते हैं।

चतुर्थीय संरचना (Quaternary structure) —

इसमें एक से अधिक पॉलिपेप्टाइड चेन मौजूद रहते हैं।

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प्रोटीन संश्लेषण की आधारीय क्रियाविधि (Basic mechanism of protein synthesis)

प्रोटीन संश्लेषण की आधारीय क्रियाविधि (Basic mechanism of protein synthesis) —

DNA या इनकी अनुपस्थिति में आनुवंशिक (genetic) RNA के नियंत्रण में प्रोटीन का संश्लेषण होता है। आनुवंशिक पदार्थ होने के कारण किसी पॉलिपेप्टाइड चेन के निर्माण संबंधी आवश्यक सूचना (information) DNA के पॉलिन्यूक्लियोटाइड्स में रहती है। पॉलिन्यूक्लियोटाइड्स के नाइट्रोजनी बेसों की श्रृंखला (base sequence) किसी प्रोटीन या पॉलिपेप्टाइड के एमीनो अम्लों के क्रम एवं उनकी संख्या को निर्धारित करती है।

केंद्रीय डोग्मा (Central dogma) —

प्रोटीन संश्लेषण के लिए न्यूक्लिक अम्लों से आनुवंशिक सूचनाओं (genetic information) का प्रवाह एक दिशा में (one way) होता है यानि DNA से विभिन्न प्रकार के RNA ट्रांसक्रिप्शन (transcription) द्वारा बनते हैं, पुनः RNA से ट्रांसलेशन द्वारा प्रोटीन का संश्लेषण होता है।

फ्रान्सिस क्रिक (Francis Crick) के अनुसार द्विगुणन के अलावा DNA अपनी सूचनाओं को संदेशवाहक (messenger) RNA द्वारा कोशिकाद्रव्य में भेजता है जहाँ प्रोटीन का संश्लेषण होता है। आनुवंशिक सूचनाओं के प्रवाह में निम्नलिखित तीन चरण होते हैं।

  1. द्विगुणन या रेप्लीकेशन (Replication) —

इससे DNA के अणु की ठीक प्रतिलिपि (copy) टेम्प्लेट विधि द्वारा तैयार होती है।

  1. प्रतिलेखन या ट्रांसक्रिप्शन (Transcription) —

आनुवंशिक सूचनाओं का DNA से mRNA में स्थानांतरण इस चरण में होता है।

  1. स्थानांतरण या ट्रांसलेशन (Translation) —

आनुवंशिक सूचनाओं का mRNA से प्रोटीन संश्लेषण में परिवर्तन को स्थानांतरण या ट्रांसलेशन कहते हैं। आनुवंशिक सूचनाओं के एक दिशा में होनेवाले प्रवाह का अपवाद एच टेमिन (H Temin) एवं डी बैल्टिमोर (D Baltimore) ने 1970 में खोजा।

इन लोगों के अनुसार कुछ वाइरसों में ट्रांसक्रिप्शन की दिशा उल्टी होती है जिसे रिवर्स ट्रांसक्रिप्शन (reverse transcription) कहते हैं एवं यह रिवर्स ट्रांसक्रिप्टेज (reverse transcriptase) एंजाइम द्वारा उत्प्रेरित होता है। कैंसर (cancer) रोग को समझने में इससे काफी मदद मिली। सूचनाओं के प्रवाह को अब इस प्रकार दर्शाया जा सकता है |

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आनुवंशिक कूट या जेनेटिक कोड (Genetic code) —

प्रोटीन के एमीनो अम्लों के क्रम एवं संख्या का निर्धारण न्यूक्लिक अम्ल के नाइट्रोजन बेसों के क्रम पर निर्भर करता है। DNA से आनुवंशिक सूचनाएँ mRNA द्वारा संचरित होती है। प्रयोगों से यह पता चलता है कि एक एमीनो अम्ल के लिए संदेशवाहक के रूप में तीन नाइट्रोजन बेसों का समूह या ट्रिप्लेट (groups of three nitrogen bases, or triplets) होता है।

इस ट्रिप्लेट को कोडोन (codon) कहते हैं। सूचना स्थानांतरण का कार्य mRNA के नाइट्रोजनी बेस करते हैं जिनकी संख्या सिर्फ चार होती है जबकि आवश्यक एमीनो अम्ल की संख्या बीस होती है। इस प्रकार नाइट्रोजनी बेस की संख्या एमीनो अम्लों से कम थी। इस समस्या के समाधान के लिए कोडोन का आविष्कार हुआ। mRNA के एक नाइट्रोजनी बेस एक एमीनो अम्ल का संदेश रखते तो सिर्फ चार एमीनो अम्लों का ही संदेश रह पाता।

यदि यह दो नाइट्रोजनी बेस के बने होते तो संदेशों की संख्या 16 (4×4) होती। यह भी 20 एमीनो अम्लों के लिए पर्याप्त नहीं होते। यदि तीन नाइट्रोजनी बेस मिलकर एक एमीनो अम्ल के लिए जिम्मेवार हों तो कोडोन की संख्या 64 (4×4 ×4) होती है जो 20 एमीनो अम्लों के लिए पर्याप्त हैं।

अतः सैद्धांतिक आधार पर वैज्ञानिकों ने माना कि एक एमीनो अम्ल के लिए सांकेतिक सूचना (coded information) mRNA के तीन नाइट्रोजनी बेस के समूह में रहती है। इस प्रकार 20 एमीनो अम्लों के लिए 64 कोडोन होते हैं जिसे आनुवंशिक कूट या जेनेटिक कोड (genetic code) या कोडोन शब्दकोष (codon dictionary) कहते हैं। इस महत्त्वपूर्ण खोज के लिए निरेनबर्ग (Nirenberg), खोराना (Khorana) एवं मैथैई (Matthaei) के प्रयोगों को श्रेय दिया जाता है।

  1. जेनेटिक कोड के गुण (Properties of genetic code) —

प्रयोगों द्वारा जेनेटिक कोड के निम्नलिखित गुणों को वास्तव में सिद्ध किया गया है।

  1. ट्रिप्लेट रूप (Triplet form) —

जेनेटिक कोड हमेशा ट्रिप्लेट यानि तीन नाइट्रोजनी बेस के समूह में रहता है जो संदेशवाहक (messenger) RNA पर एक क्रम में व्यवस्थित रहते हैं। चूँकि 20 एमीनो अम्लों के लिए 64 कोडोन होते हैं, इसलिए एक एमीनो अम्ल के लिए निश्चित तौर पर एक से अधिक कोडोन होते हैं। ,

  1. अपहासित कोड (Degenerate code) —
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चूँकि एक एमीनो अम्ल के लिए एक से अधिक कोड होते हैं, अतः ऐसे अतिरिक्त कोड को अपह्रासित कोड कहा जाता है।

  1. कोमारहित रूप (Commaless form) —

एक एमीनो अम्ल के कोडोन के तुरंत बाद दूसरे एमीनो अम्ल का कोडोन शुरू हो जाता है यानि दो कोडोन के बीच कोमा या विराम चिह्न नहीं रहता है।

  1. अतिछादित नहीं रहना (Non Overlapping) —

संदेशवाहक RNA के किसी कोडोन के तीन में से एक नाइट्रोजन बेस का उपयोग दो अलग-अलग कोडोन में नहीं होता है।

  1. स्पष्ट होना (Non Ambiguous) —

कोडोन में अस्पष्टता नहीं होती है। कोई खास कोडोन हमेशा एक ही प्रकार के एमीनो अम्ल का कोड करते हैं। यहाँ यह ध्यान देने योग्य है कि एक एमीनो अम्ल के लिए एक से ज्यादा कोडोन होते हैं लेकिन एक ही कोडोन दो या ज्यादा एमीनो अम्ल के लिए नहीं होते हैं।

  1. सर्वव्यापी (Universal) —

हर प्रकार के जीवधारियों में एक ही प्रकार के जेनेटिक कोड (same genetic code) का उपयोग होता है। प्रयोगशाला में जीवाणुओं पर अध्ययन के बाद यह स्थापित हुआ है।

प्रारंभन कोडोन (Initiation codon) —

अधिकांश प्रोटीन या पॉलिपेप्टाइड में प्रथम एमीनो अम्ल मिथियोनिन (methionine) होता है एवं mRNA पर इसके लिए AUG या कभी-कभी GUG (in bacteria) कोडोन रहते हैं। चेन बनने के पहले मिथियोनिन का फॉर्माइलेटेड (formylated) होना आवश्यक होता है। वैसे कोडोन, जो पॉलिपेप्टाइड चेन बनाने की प्रक्रिया शुरू करते हैं उसे (AUG) चेन प्रारंभन कोडोन कहते हैं।

समापन कोडोन (Termination codon) —

64 कोडोनों में तीन कोडोन (UAA, UAG एवं UGA) ऐसे होते हैं जो पॉलिपेप्टाइड चेन के समापन का संकेत देते हैं। इन्हें चेन समापन कोडोन कहते हैं। चूँकि ये किसी एमीनो अम्ल का संकेतवाहक नहीं होते हैं, अतः इन्हें नॉनसेंस कोडोन (nonsense codon) भी कहते हैं। mRNA में ये जहाँ रहते हैं, पॉलिपेप्टाइड शृंखला बनने की क्रिया वहाँ रोक देते हैं।

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