क्या आप भौतिकी के मूल सिद्धांतों को समझना चाहते हैं? क्या आप न्यूटन के गति के तीन नियमों के बारे में उत्सुक हैं? यदि हां, तो यह ब्लॉग पोस्ट आपके लिए है। यहां, हम न्यूटन के नियमों की मूल बातों पर एक नज़र डालेंगे, साथ ही कुछ उदाहरण भी देंगे जिससे आपको यह समझने में मदद मिलेगी कि वे कैसे काम करते हैं।
जड़त्व एवं न्यूटन के गति का प्रथम नियम (Newton ka pahla niyam):
साधारण अनुभव से हम जानते हैं कि किसी वस्तु की विरामावस्था तथा एकसमान रैखिक गति की अवस्था (अर्थात एकसमान वेग से गति) दोनों में वस्तु पर कोई नेट बल (net force) नहीं लगता, अर्थात उसपर लगनेवाले सभी बलों का परिणामी (resultant) शून्य होता है। उदाहरण के लिए, किसी वस्तु को किसी रुक्ष क्षैतिज समतल पर एकसमान गति में बनाए रखने के लिए एक बाह्य बल (external force) लगाने की आवश्यकता होती है। यह बल मूलतः घर्षण बल को निष्फल करने के लिए आवश्यक है न कि मात्र एकसमान गति प्रदान करने के लिए।
स्पष्टतः, यदि नेट बल शून्य हो, तो वस्तु की विराम अवस्था (state of rest) अथवा एकसमान वेग से गति की अवस्था में कोई परिवर्तन नहीं होता है। वस्तु के इसी गुण को जड़त्व (inertia) कहते हैं, जो वस्तु के द्रव्यमान (mass) पर निर्भर है। जड़त्व का मूल अर्थ है परिवर्तन के प्रति विरोध (resistance to change) अर्थात नेट बाह्य बल शून्य रहने पर विराम अवस्था में रह रही वस्तु विराम में ही रहती है और गतिशील अवस्था में निरंतर एकसमान वेग से गतिशील रहती है। जड़त्व के इसी आधार पर न्यूटन ने गति का प्रथम नियम प्रतिपादित किया।
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गति का प्रथम नियम (First law of motion) –

Newton ka pahla niyam-“यदि किसी कण पर लगनेवाले सभी बलों का सदिश योगफल शून्य हो, तब वह कण अत्वरित अवस्था में रहता है, अर्थात या तो कण विराम में रहता है अथवा नियत वेग से गतिशील रहता है । ( If the vector sum of all the forces acting on a particle is zero then the particle is said to be unaccelerated state, i.e., remains at rest or moves with constant velocity.)“
स्पष्टतः, किसी कण की अत्वरित अवस्था, अर्थात विराम या एकसमान वेग का अर्थ है उसपर आरोपित बलों का सदिश योगफल अवश्य ही शून्य है।
संवेग एवं न्यूटन के गति का द्वितीय नियम (Newton ki gati ka dusra niyam):
Newton ki gati ka dusra niyam-गति के प्रथम नियम की मान्यता वस्तु पर नेट बल = 0 होने पर है। यदि वस्तु पर नेट बल शून्य नहीं हो तब गति के त्वरण का अध्ययन न्यूटन के गति के द्वितीय नियम के आधार पर किया जाता है। सर्वप्रथम वस्तु के संवेग (momentum) तथा बल एवं संवेग के बीच अंतर्निहित प्रभावों पर विचार करते हैं।
संवेग (Momentum) –
“किसी वस्तु के द्रव्यमान m तथा वेग v vector के गुणनफल को संवेग (momentum) कहते हैं तथा इसे संकेत से व्यक्त करते हैं, अर्थात
P =mv”
संवेग एक सदिश राशि है जिसकी दिशा वेग की दिशा में होती है। इसका SI मात्रक kg ms^-1 होता है। संवेग का संबंध मूलतः बल के प्रभाव में होता है जो अग्रांकित उदाहरण से स्पष्ट है।
विराम में स्थित खाली मारुति कार (द्रव्यमान कम) तथा भारी सामान से लदी हुई ट्रक (द्रव्यमान अधिक) को एकही समय के अंदर समान वेग देने के लिए मारुति कार पर अपेक्षाकृत बहुत ही कम बल लगाना होगा, जबकि ट्रक के लिए अधिक परिमाण का बल चाहिए। इसी प्रकार समान वेग से गतिमान कम द्रव्यमान की वस्तु को विराम में लाने के लिए कम बल तथा उसी वेग से गतिमान अधिक द्रव्यमान की वस्तु को रोकने के लिए अधिक बल आवश्यक होता है।
गति का द्वितीय नियम (Second Law of Motion)-
Newton ki gati ka dusra niyam–“किसी वस्तु के संवेग परिवर्तन की दर उसपर आरोपित बल के समानुपाती होती है तथा परिवर्तन उसी दिशा में होता है जिस दिशा में बल लगता है। (The rate of change of momentum of a body is proportional to the applied force and takes place in the direction in which the force acts.)”
गति का तृतीय नियम (Newton ka tritiya niyam) –

गति के द्वितीय नियम से आरोपित नेट बल के कारण उत्पन्न त्वरण की गणना होती है, परंतु बल के स्रोत अथवा उत्पति (origin) के कारण पर विचार नहीं किया गया है। न्यूटन के अनुसार, किसी वस्तु A पर लगनेवाला बाह्य बल किसी अन्य वस्तु B के कारण ही लगता है। (External force on a body A always arises due to some other body B.) यहाँ यह ध्यान देना चाहिए कि A तथा B दोनों ही बल का अनुभव करते हैं जो परिमाण में बराबर पर दिशा में विपरीत होते हैं। यदि किसी स्प्रिंग को हम हाथ से दबाते हैं तो स्प्रिंग भी हमारे हाथ पर बल लगाता है। एक को क्रिया (action) तथा दूसरे को प्रतिक्रिया (reaction) कहते हैं।
यह आवश्यक नहीं कि क्रिया-प्रतिक्रिया का अस्तित्व A तथा B के संपर्क के कारण ही हो। कुछ दूरी पर क्रिया (action at a distance) की अवस्था में भी क्रिया – प्रतिक्रिया युग्म (action-reaction pair) अवश्य ही होता है। जैसे, जिस प्रकार किसी पत्थर को पृथ्वी गुरुत्व के अधीन अपनी ओर आकर्षित करती हैं, उसी प्रकार पत्थर भी पृथ्वी को अपनी ओर उतने ही बल से आकर्षित करता है। स्पष्टतः, प्रकृति में भी बल कभी अकेला नहीं रहता है, यह हमेशा जोड़े में रहता है। (Force never occurs singly in nature, it always exists in pairs.) बल के क्रिया – प्रतिक्रिया नियम को न्यूटन द्वारा प्रतिपादित गति का तीसरा नियम कहते हैं, जो इस प्रकार है—
Newton ka tritiya niyam–
“प्रत्येक क्रिया के बराबर एवं उसके विपरीत हमेशा एक प्रतिक्रिया होती है । ( To every action, there is always an equal and opposite reaction.)“
संबद्ध पिंडों की गति (Motion of Connected Bodies):
यदि दो पिंड एक-दूसरे से किसी अवितान्य धागे (inextensible string) से जुड़े हों तथा विशेष परिस्थिति में एक साथ गति उत्पन्न करने में स्वतंत्र हों, तो इस प्रकार की गति को संबद्ध पिंडों की गति कहा जाता है।
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FAQ?
गति क्या है?
किसी वस्तु का एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाना गति कहलाता है।
गति कितने प्रकार की होती है?
दोलन गति
आवर्ती गति
घुर्णन गाती
प्रक्षेप्य गाती
सरल रेखीय गति
वृत्तियाँ गाती
न्यूटन का पहला नियम क्या है ?
यदि कोई वस्तु विराम में है, या एक सीधी रेखा में गति में है. वह अपनी स्थिति तब तक रहेगी जब तक कि कोई बाहरी बल उस पर कार्य नहीं करता।
न्यूटन का दूसरा नियम क्या है ?
किसी भी वस्तु का संवेग उस दर से बदलता है जो उस पर लगाए गए बल के समानुपाती होता है। इस संवेग परिवर्तन की दिशा लागू की गई दिशा के समान है.
न्यूटन का तीसरा नियम क्या है ?
“प्रत्येक क्रिया के बराबर एवं उसके विपरीत हमेशा एक प्रतिक्रिया होती है । ( To every action, there is always an equal and opposite reaction.)“
Conclusion
दोस्तों हमारा Blog….”न्यूटन के गति के नियम एव सूत्र, उदाहरण(Newton’s laws of motion ”पढ़ने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद उम्मीद करता हूं कि इस आर्टिकल में आपको अपने सभी सवालों के जवाब मिल गए होंगे, फिर भी अगर आपके मन में कोई सवाल रह गया हो, तो आप हमसे Comments द्वारा पूछ सकते हैं.