You are currently viewing न्यूटन का गुरुत्वाकर्षण-नियम क्या है, गुरुत्वाकर्षण का सार्वत्रिक नियम एवं सूत्र लिखिएन्यूटन का गुरुत्वाकर्षण-नियम क्या है(Newton ka gurutvakarshan ka niyam)

न्यूटन का गुरुत्वाकर्षण-नियम क्या है, गुरुत्वाकर्षण का सार्वत्रिक नियम एवं सूत्र लिखिएन्यूटन का गुरुत्वाकर्षण-नियम क्या है(Newton ka gurutvakarshan ka niyam)

Newton ka gurutvakarshan ka niyam-क्या आप गुरुत्वाकर्षण के नियमों के बारे में उत्सुक हैं? क्या आप अब तक बनाए गए सबसे प्रसिद्ध वैज्ञानिक सिद्धांतों में से एक के बारे में अधिक जानना चाहते हैं? Dosto इस ब्लॉग पोस्ट में, हम न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण के नियम के बारे में जानेंगे और गुरुत्वाकर्षण के सार्वभौमिक नियम और सूत्र पर चर्चा करेंगे।

Table of Contents

न्यूटन का गुरुत्वाकर्षण-नियम (Newton’s Law of Gravitation):

ग्रहों की गति एवं उनपर लगनेवाले बलों के अध्ययन के बाद न्यूटन ने 1686 में यह बताया कि ब्रह्मांड (universe) में प्रत्येक वस्तु दूसरी वस्तु को अपनी ओर आकर्षित (attract) करती है। इस सर्वव्यापी आकर्षण बल को गुरुत्वाकर्षण (gravitation) कहा जाता है। न्यूटन ने गुरुत्वाकर्षण-संबंधी निम्नलिखित नियम प्रतिपादित किया, जिसे न्यूटन का गुरुत्वाकर्षण नियम कहा जाता है।

गुरुत्वाकर्षण की परिभाषा

किन्हीं दो वस्तुओं के बीच लगनेवाला आकर्षण बल वस्तुओं के द्रव्यमानों के गुणनफल के समानुपाती (directly proportional) तथा उनके बीच की दूरी के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती (inversely proportional) होता है । इस बल की दिशा दोनों वस्तुओं को मिलानेवाली रेखा के सीध में होती है।

यदि m1 तथा m2 द्रव्यमान की दो वस्तुएँ एक- दूसरी से r दूरी पर स्थित हों, तो इस नियम के अनुसार उनपर क्रियाशील गुरुत्वाकर्षण बल
F=m1m2 , F=1/r²

  • F=m1m2/r² ,
  • F=G(m1m2)/r²

जहाँ, G एक नियतांक (constant) है, जिसे गुरुत्वीय नियतांक (gravitational constant) कहा जाता है। चूँकि इसका मान वस्तुओं की प्रकृति, माध्यम, समय तथा ताप पर निर्भर नहीं करता है, अतः इसे सार्वत्रिक गुरुत्वीय नियतांक (universal gravitational constant) भी कहा जाता है।

Read More-बरनूली का प्रमेय, बरनूली का परिभाषा, बरनूली का सूत्र(Barnoli theorems in hindi)

गुरुत्वीय नियतांक (Gravitational Constant) :

गुरुत्वीय नियतांक संख्यात्मक रूप में (numerically) उस आकर्षण होता है जो एकांक दूरी से विलग एकांक द्रव्यमान की दो वस्तुओं पर लगता है। इसका मान gravitational constant = 6.6743 × 10-11 Newtons kg-2 m2 होता है.

जड़त्वीय और गुरुत्वीय द्रव्यमान (Inertial and Gravitational Mass):

जड़त्वीय द्रव्यमान (Inertial mass) –

न्यूटन के गति-संबंधी दूसरे नियम (F = ma) से हमें यह पता चलता है कि भिन्न-भिन्न द्रव्यमान वाली वस्तुओं पर समान त्वरण उत्पन्न करने के लिए उनपर भिन्न-भिन्न परिमाण के बल लगाने पड़ते हैं। इस प्रकार, एक ही त्वरण उत्पन्न करने के लिए अधिक द्रव्यमान की वस्तु पर अधिक बल और कम द्रव्यमान की वस्तु पर कम बल लगाना पड़ेगा। स्पष्ट है कि वस्तु को विराम से त्वरित गति प्रदान करने के लिए आवश्यक बल उसके द्रव्यमान पर निर्भर करेगा। चूँकि, विरामावस्था से गतिमान अवस्था में लाने के लिए आवश्यक बल के जड़त्व (inertia) का बोध कराता है, इसलिए वस्तु के इस प्रकार परिभाषित द्रव्यमान को जड़त्वीय द्रव्यमान (inertial mass) कहते हैं। इसे इस प्रकार भी कह सकते हैं कि वस्तु का जड़त्व उसके द्रव्यमान से मापा जाता है।

See also  कोणीय संवेग, त्वरण, वेग, सूत्र किसे कहते है(What is angular momentum, acceleration, velocity, formula)

गुरुत्वीय द्रव्यमान (Gravitational mass) –

गुरुत्वाकर्षण के अनुसार किसी वस्तु का पृथ्वी के केंद्र की ओर गुरुत्वीय बल (gravitational force), उस वस्तु के भार (weight) के बराबर होता है। यदि वस्तु का भार W और उसका द्रव्यमान m है, तो

W =mg m= W/g

इस द्रव्यमान (m) को वस्तु का गुरुत्वीय द्रव्यमान कहते हैं। इसका मान सीधे भौतिक तुला से मापा जाता है। इसका मान सभी स्थान पर समान होता है। यदि किसी वस्तु को चंद्रमा पर ले जाया जाए तो भले ही वस्तु का भार (चंद्रमा की सतह पर g का मान कम होने के कारण) कम हो जाएगा, परंतु उसका गुरुत्वीय द्रव्यमान वही रहेगा।

  • जड़त्वीय द्रव्यमान तथा गुरुत्वीय द्रव्यमान के मान और मात्रक (unit) समान होते हैं।

Read More-तरल किसे कहते है, तरल का अर्थ, तरल की परिभाषा, उत्प्लावकता, आर्किमीडीज का सिद्धांत(Fluid in hindi)

गुरुत्वीय त्वरण (Acceleration due to Gravity):

पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र में स्थित वस्तुओं पर लगनेवाले बल को गुरुत्व बल या केवल गुरुत्व कहा जाता है। इसी बल को वस्तु का भार (weight) भी कहते हैं और कुछ ऊँचाई से पृथ्वी की ओर गिरनेवाली सभी वस्तुओं की गति में इसी बल, अर्थात गुरुत्व के कारण त्वरण उत्पन्न होता है। इस त्वरण को गुरुत्वजनित त्वरण अथवा गुरुत्वीय त्वरण (acceleration due to gravity) कहा जाता है तथा इसे g से निरूपित किया जाता है ।

गुरुत्वीय स्थितिज ऊर्जा (Gravitational Potential Energy):

प्रत्येक वस्तु का अपने द्रव्यमान के कारण गुरुत्वीय क्षेत्र होता है तथा इस क्षेत्र में स्थित अन्य सभी वस्तुएँ आकर्षण-बल का अनुभव करती हैं। इसी आकर्षण-बल के कारण दो वस्तुओं के निकाय की स्थितिज ऊर्जा होती है। जब दो वस्तुएँ एक-दूसरी से अनंत दूरी पर स्थित रहती हैं, अर्थात एक वस्तु दूसरी वस्तु के गुरुत्वीय क्षेत्र के बाहर रहती है, तो निकाय की स्थितिज ऊर्जा को शून्य माना जाता है। परंतु, वस्तुओं को एक-दूसरी के निकट लाने में आकर्षण बल के कारण यांत्रिक कार्य संपादित होता है। चूँकि यह कार्य गुरुत्वीय क्षेत्र द्वारा किया जाता है, अतः निकाय की स्थितिज ऊर्जा (जिसका प्रारंभ में मान शून्य है) में ह्रास होता है और यह शून्य से घटकर ऋणात्मक हो जाती है। दो वस्तुओं के बीच गुरुत्वीय स्थितिज ऊर्जा वह यांत्रिक कार्य है जो किसी एक वस्तु को दूसरी वस्तु के गुरुत्वीय क्षेत्र में अनंत से निर्दिष्ट स्थान ( assigned position) तक लाने में किया जाता है।

गुरुत्वीय विभव (Gravitational Potential):

किसी एकल (isolated) वस्तु या अनेक वस्तुओं के निकाय के गुरुत्वीय क्षेत्र में किसी परीक्षण द्रव्यमान (test mass) को विस्थापित करने में यांत्रिक कार्य करना पड़ता है। स्पष्टतः उस द्रव्यमान के विस्थापन में उसकी स्थितिज ऊर्जा में परिवर्तन होता है। ऊर्जा का यह परिवर्तन गुरुत्वीय क्षेत्र का अदिश गुण (scalar property) है जबकि बल का अस्तित्व इसका सदिश गुण (vector property) है। क्षेत्र के दोनों गुण गुरुत्वीय विभव द्वारा स्पष्ट होते हैं जिसे निम्नलिखित प्रकार से परिभाषित किया जाता है।

गुरुत्वीय क्षेत्र के किसी बिंदु पर गुरुत्वीय विभव उस यांत्रिक कार्य से मापा जाता है जो प्रति एकांक परीक्षण द्रव्यमान को अनंत से उस बिंदु तक लाने में किया जाता है।

  • गुरुत्वीय विभव एक अदिश राशि हैं तथा इसका SI J.kg^-1 मात्रक होता हैं |
See also  ऊष्मा क्या है, ऊष्मा की परिभाषा, ऊष्मा का S.I मात्रक (Usma kya hai)

पलायन वेग (Escape Velocity):

जब किसी वस्तु को पृथ्वी की सतह से ऊपर की ओर फेंका जाता है तो गुरुत्व (gravity) के कारण इसका वेग घटता जाता है और अंततः अधिकतम ऊँचाई (maximum height) पर इसका वेग शून्य हो जाता है। इसके बाद वस्तु गुरुत्व के अधीन नीचे गिरने लगती है। यदि वस्तु का प्रारंभिक वेग बढ़ाया जाए तो महत्तम ऊँचाई का मान भी बढ़ जाता है। इस क्रम में वस्तु को दी गई गतिज ऊर्जा (1/2mv²) गुरुत्व बल के विरुद्ध कार्य करने में व्यय होती है। यदि वस्तु को एक ऐसे (न्यूनतम) वेग से फेंका जाए कि वह पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र के बाहर, अर्थात अनंत तक चली जाए तो वह पुनः पृथ्वी की ओर नहीं लौटेगी। इस न्यूनतम वेग (minimum velocity) को पलायन वेग (escape velocity) कहते हैं।

पलायन वेग को ve से निरूपित किया जाता है। पृथ्वी पर स्थित वस्तुओं के लिए इसका मान लगभग 11.2 kms^-1 तथा चंद्रमा पर स्थित वस्तुओं के लिए इसका मान लगभग 2.37 km s^-1 होता है ।

Read More-दाब किसे कहते हैं, मात्रक, परिभाषा, सूत्र(Daab kise kahate hain)

किसी वस्तु की गुरुत्वीय स्व-ऊर्जा (Gravitational Self Energy of a Body):

किसी वस्तु की गुरुत्वीय स्व-ऊर्जा उसके विभिन्न अल्पांशों के बीच निहित स्थितिज ऊर्जा का योगफल होती है। अर्थात, यह उस कुल यांत्रिक कार्य का परिमाण है जो इनके अल्पांशों को अनंत दूरी से विस्थापित कर वस्तु को उसी आकृति में लाने में संपादित किया जाता है।

[ द्रष्टव्य : गुरुत्वीय बंधन ऊर्जा हमेशा धनात्मक (गुरुत्वाकर्षण की आकर्षण प्रवृति होने के कारण) होती है, जबकि गुरुत्वीय स्व ऊर्जा का मान ऋणात्मक होता है। दोनों के मान आंकिक रूप से एक ही होते हैं ।

उपग्रह (Satellites ):

जिस प्रकार विभिन्न ग्रह (planets) सूर्य के चारों ओर अपनी कक्षाओं (orbits) में परिक्रमण करते रहते हैं उसी प्रकार कुछ आकाशीय पिंड (celestial bodies) भी इन ग्रहों के चारों ओर अपनी कक्षा में चक्कर लगाते रहते हैं। किसी ग्रह के चारों ओर घूमनेवाले आकाशीय पिंड को उसका उपग्रह (satellite) कहा जाता है। उदाहरण के लिए, चंद्रमा पृथ्वी का प्राकृतिक उपग्रह (natural satellite) है। आर्यभट्ट, भास्कर, रोहिणी, ऐपल (APPLE) इनसेट (INSAT) 1 A, 1 B, 2 B आदि कृत्रिम उपग्रहों के कुछ उदाहरण हैं।

भूस्थिर उपग्रह (Geostationary Satellite):

कोई उपग्रह पृथ्वी की सतह से जितनी दूर होता है, उसका परिक्रमण-काल उतना ही अधिक होता है। उदाहरणार्थ, चंद्रमा, जो पृथ्वी से 380,000 km दूर है, पृथ्वी का एक परिक्रमण लगभग 27.3 दिनों में पूरा करता है। लेकिन पृथ्वी के निकट एक कृत्रिम उपग्रह एक दिन में 10 से 20 परिक्रमण तक पूरा कर लेता है। स्पष्टतः, यदि पृथ्वी की सतह से किसी कृत्रिम उपग्रह की ऊँचाई इतनी हो कि इसका परिक्रमण काल ठीक ( exactly) पृथ्वी की अक्षीय गति (axial speed) के परिक्रमण-काल, अर्थात 24 घंटे के बराबर हो तथा वह पृथ्वी के घूर्णन की दिशा में परिक्रमण कर रहा हो, तो उपग्रह पृथ्वी के सापेक्ष एक ही स्थान के ऊपर स्थिर दिखाई देगा यद्यपि पृथ्वी तथा उपग्रह दोनों गतिमान हैं।

ऐसे उपग्रह को भूस्थिर उपग्रह (geostationary satellite) कहा जाता है तथा इसकी कक्षा को पार्क कक्षा (parking orbit) कहा जाता है। भारतीय उपग्रह इनसेट 1B, 2B आदि भूस्थिर उपग्रह हैं। इस प्रकार के उपग्रहों का उपयोग दूरदर्शन संकेतों (TV signals) को परावर्तित करके दूरदर्शन कार्यक्रम विश्व के एक भाग से दूसरे भाग तक लगातार संचारित करने में किया जाता है। अतः इन्हें संचार उपग्रह (communication satellite) भी कहा जाता है । यह आवश्यक है कि संचार-उपग्रह की वृत्तीय कक्षा पृथ्वी के विषुवतीय तल (equatorial plane) में हो। संचार उपग्रह का व्यवस्था प्रचालन (schematic operation) प्रदर्शित है।

See also  दाब किसे कहते हैं, मात्रक, परिभाषा, सूत्र(Daab kise kahate hain)

आभासी भारहीनता (Apparent Weightlessness):

किसी वस्तु का भार (weight) वह बल है जिस बल से पृथ्वी उसे अपने केंद्र की ओर आकर्षित करती है।

किसी वस्तु के भार का अनुभव (feeling) वस्तु से संपर्क में रखी अन्य वस्तुओं द्वारा इसपर लगनेवाले प्रतिक्रियात्मक बल (reactional force) के कारण होता है। उदाहरण के लिए, जब हम किसी तल पर खड़े होते हैं तो हमारा भार (W = mg) तल पर ऊर्ध्वाधरतः नीचे की ओर लगता है तथा तल द्वारा हमारे पैरों पर ऊपर की ओर लगनेवाली प्रतिक्रिया R के कारण हम अपने भार का अनुभव करते हैं।

यदि किसी विशेष परिस्थिति में प्रतिक्रियात्मक बल शून्य हो जाए, तो वस्तु का भार शून्य प्रतीत होगा। इसे भारहीनता की अवस्था कहा जाता है। स्मरण रहे, भारहीनता गुरुत्व की अनुपस्थिति नहीं है (weightlessness is not the absence of gravity), वरन प्रेक्षक (observer) की एक विशेष स्थिति है।

ग्रहों की गति के लिए केप्लर के नियम (Kepler’s Laws of Planetary Motion)

सूर्य के चारों ओर परिक्रमण करनेवाले ग्रहों की वार्षिक गति के प्रेक्षणों के आधार पर केप्लर ने ग्रहों की गति-संबंधी निम्नलिखित तीन नियम प्रतिपादित किए।

पहला नियम –

प्रत्येक ग्रह सूर्य का परिक्रमण दीर्घवृत्तीय कक्षा में करता है जिसके फोक्स पर सूर्य रहता है। इसे कक्षा का नियम (law of orbit) भी कहा जाता है।

दूसरा नियम –

सूर्य से किसी ग्रह को मिलानेवाली ध्रुवांतर रेखा (radius vector ) समान समयांतराल में समान क्षेत्रफल तय करती है, अर्थात ग्रहों की क्षेत्रीय चाल ( areal speed, dA/dt) हमेशा नियत रहती है। इसे क्षेत्र का नियम (law of area) भी कहा जाता है।

तीसरा नियम-

प्रत्येक ग्रह का सूर्य के चारों ओर परिक्रमण काल (period of revolution round the sun) का वर्ग उसके दीर्घवृत्तीय कक्षा के अर्धदीर्घ अक्ष (semimajor axis) के धन (cube) का समानुपाती होता है। इसे परिक्रमण काल का नियम (law of period) भी कहा है।

FAQ

Q. गुरुत्वाकर्षण बल की परिभाषा क्या है?

किन्हीं दो वस्तुओं के बीच लगनेवाला आकर्षण बल वस्तुओं के द्रव्यमानों के गुणनफल के समानुपाती (directly proportional) तथा उनके बीच की दूरी के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती (inversely proportional) होता है । इस बल की दिशा दोनों वस्तुओं को मिलानेवाली रेखा के सीध में होती है।

Q. गुरुत्वाकर्षण का सूत्र क्या है?

F=G{\frac{m_1m_2}{r^2}} G=6.6743 × 10-11  Newtons kg-2 m2

Q. गुरुत्वाकर्षण बल का मात्रक क्या होता है?

गुरुत्वाकर्षण बल का मात्रक  Newtons kg-2 m2 होता है

Q. G का विमीय सूत्र क्या होता है?

G का विमीय सूत्र  [M-1L3T-2] होता है.

Q. G तथा g में क्या अंतर है?

दोस्तों G का अर्थ गुरुत्वाकर्षण नियतांक जबकि g का अर्थ गुरुत्वीय त्वरण होता है?

Conclusion

दोस्तों हमारा Blog….”न्यूटन का गुरुत्वाकर्षण-नियम क्या है, गुरुत्वाकर्षण का सार्वत्रिक नियम एवं सूत्र लिखिएन्यूटन का गुरुत्वाकर्षण-नियम क्या है(Newton ka gurutvakarshan ka niyam)”पढ़ने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद उम्मीद करता हूं कि इस आर्टिकल में आपको अपने सभी सवालों के जवाब मिल गए होंगे, फिर भी अगर आपके मन में कोई सवाल रह गया हो, तो आप हमसे Comments द्वारा पूछ सकते हैं.

Leave a Reply