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मोल(Mole in hindi) क्या है, मोल की परिभाषा, मोल अवधारणा, मोल सिद्धांत (Mol Kise Kahate Hain)

Table of Contents

मोल किसे कहते हैं? (What is mole in hindi?):

मोल निकाय के पदार्थ की मात्रा है जिसमें उतनी ही प्राथमिक इकाइयाँ (स्थिति के अनुसार परमाणु, अणु, आयन, इलेक्ट्रॉन इत्यादि) हैं जितनी कि शुद्ध कार्बन- 12 के ठीक 12×10^-3 किलोग्राम में कार्बन परमाणु हैं। दूसरे शब्दों में, यह पदार्थ की मात्रा है जिसमें उतना ग्राम पदार्थ है जितना उसका अणुभार है। जैसे—

  • 2 ग्राम हाइड्रोजन = 1 मोल हाइड्रोजन
  • 28 ग्राम नाइट्रोजन = 1 मोल नाइट्रोजन
  • 32 ग्राम ऑक्सीजन = 1 मोल ऑक्सीजन, इत्यादि ।

किसी भी पदार्थ के एक मोल में परमाणुओं अथवा अणुओं की संख्या को ऐवोगाड्रो स्थिरांक (Avogadro constant, NA ) कहा जाता है। अर्थात इसका मान, NA = 6.022 ×10^23 mol^-1 होता है।

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मोलर ऊष्मा – धारिता (Molar Heat Capacity):

किसी पदार्थ की मोलर ऊष्मा-धारिता (molar heat capacity) ऊष्मा का वह परिमाण है जो उस पदार्थ के 1 मोल (1 mole) का ताप 1 K से बढ़ाने के लिए आवश्यक है।

यदि किसी पदार्थ के µ मोल का ताप △T से बढ़ाने के लिए आवश्यक ऊष्मा का परिमाण △Q हो, तो मोलर ऊष्मा-धारिता C = ΔQ / µΔΤ

  • मोलर ऊष्मा-धारिता का SI मात्रक जूल मोल^-1 केल्विन 1 (J mol^-1 K^−1) होता है।

[द्रष्टव्य : यहाँ यह ध्यान देने योग्य है कि किसी गैस की विशिष्ट ऊष्मा-धारिता तथा उसी गैस की मोलर ऊष्मा-धारिता दो भिन्न राशियाँ हैं। किसी गैस की विशिष्ट ऊष्मा-धारिता (specific heat capacity) में उस गैस के 1 किलोग्राम द्रव्यमान का ताप एकांक डिग्री से बढ़ाने की बात होती है, जबकि गैस की मोलर ऊष्मा-धारिता (molar heat capacity) में गैस के 1 मोल द्रव्यमान का ताप एकांक डिग्री से बढ़ाने की बात होती है। यह भी ध्यान देना है कि मोलर विशिष्ट ऊष्मा-धारिता (molar specific heat capacity) कहना गलत है। मोलर ऊष्मा-धारिता (molar heat capacity) कहना ही सही है ।

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नियत दाब और नियत आयतन पर गैस की मोलर ऊष्मा-धारिताएँ (Molar Heat Capacities of a Gas at Constant Pressure and Constant Volume):

(i) नियत दाब पर गैस की मोलर ऊष्मा धारिता (Molar heat capacity of a gas at constant pressure) –

नियत दाब पर किसी गैस की मोलर ऊष्मा-धारिता, ऊष्मा का वह परिमाण है जो 1 मोल गैस का ताप, नियत दाब पर, 1K बढ़ाने के लिए आवश्यक है। इसे Cp, से दर्शाया जाता है।

(ii) नियत आयतन पर गैस की मोलर ऊष्मा-धारिता (Molar heat capacity of a gas at constant volume) –

नियत आयतन पर किसी गैस की मोलर ऊष्मा-धारिता, ऊष्मा का वह परिमाण है जो 1 मोल गैस का ताप, नियत आयतन पर, 1 K बढ़ाने के लिए आवश्यक है। इसे Cv से दर्शाया जाता है।
अतः, µ मोल गैस के लिए,

  • Cp = (△Q / µ△T)p
  • Cv = (△Q / µ△T)v , Cp, का मान Cv से अधिक होता हैं |

ऊष्मा इंजन का मूल सिद्धांत (Basic Principle of Heat Engine):

ऊष्मा इंजन का उपयोग मूलतः ऊष्मा को यांत्रिक कार्य में बदलने के लिए किया जाता है। इसके तीन मुख्य भाग होते हैं—

  • ऊष्मा का स्रोत (source of heat)
  • कार्यकारी पदार्थ ( working substance)
  • अपवाही या सिंक (sink), जिसका ताप स्रोत के ताप से कम होता है।

कार्यकारी पदार्थ, स्रोत से कुछ ऊष्मा लेता है और इसके कुछ भाग से यांत्रिक कार्य संपादित करता है तथा शेष भाग अपवाही (सिंक) को लौटा देता है। इस प्रक्रिया के अंत में कार्यकारी पदार्थ अपनी प्रारंभिक अवस्था में पुनः आ जाता है। इस पूर्ण प्रक्रिया को एक चक्र (cycle) कहा जाता है। यह प्रक्रिया बार-बार दुहराई जाती है जिससे ऊष्मा का उपयोगी कार्य में रूपांतरण होता रहता है।

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रेफ्रिजरेटर तथा इसका निष्पादन गुणांक (Refrigerator and its Performance Coefficient):

रेफ्रिजरेटर को एक ऊष्मा इंजन के रूप में माना जा सकता है, जिसका संचालन ऊष्मा इंजन के प्रक्रमों के विपरीत होता है। इसे ऊष्मा पंप (heat pump) भी कहा जाता है।

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ऊष्मा इंजन में कार्यकारी पदार्थ अर्थात प्रशीतक (coolant) ऊँचे ताप पर स्थित ऊष्मा स्रोत से ऊष्मा लेता है और इसके कुछ भाग से यांत्रिक कार्य संपादित करता है तथा शेष भाग को निम्न ताप पर स्थित अपवाही (sink) को लौटा देता है। यह चक्रीय प्रक्रिया रेफ्रिजरेटर में विपरीत दिशा में संचालित होती है, अर्थात रेफ्रिजरेटर का कार्यकारी पदार्थ निम्न ताप की वस्तु, अर्थात अपवाही (sink) से ऊष्मा लेता है फिर परिवेश, अर्थात कम्प्रेसर द्वारा इसपर यांत्रिक कार्य किया जाता है, और अंततः इसके द्वारा प्राप्त कुल ऊष्मा ऊँचे ताप की वस्तु को दी जाती है। इस प्रकार ठंडी वस्तु से गर्म वस्तु में ऊष्मा दी जाती है। घरों में रेफ्रिजरेटर में रखे गए पेय पदार्थ या भोजन सामग्रियाँ कुछ देर बाद इसी चक्रीय प्रक्रम द्वारा ठंडी हो जाती हैं।

उत्क्रमणीय एवं अनुत्क्रमणीय प्रक्रम (Reversible and Irreversible Processes):

उत्क्रमणीय प्रक्रम (Reversible process) —

उत्क्रमणीय प्रक्रम का अर्थ होता है वैसा प्रक्रम (process) जिसमें कार्यकारी पदार्थ (जैसे— गैस) की अवस्था में परिवर्तन से पदार्थ एवं परिवेश जिन अवस्थाओं (stages) से सीधे गुजरते हैं, प्रक्रम को विपरीत (reverse) करने पर पुनः वे उन्हीं अवस्थाओं से गुजरें।

प्रक्रम को उत्क्रमणीय होने के लिए दो शर्तों का मान्य होना आवश्यक है-

(i) प्रक्रम स्थेेेतिककल्प (Quasi-static) हो

(ii) प्रक्रम ऊर्जा संरक्षी (nondissipative) हो अर्थात घर्षण, श्यानता जैसे क्षयकारी बल ( dissipative forces) प्रक्रम में बिलकुल नहीं हों।

प्रकृति में होनेवाले सभी प्रक्रमों में क्षयकारी बल अवश्य कार्य करते हैं और प्रक्रम को उसी प्रकार उलट देना अनिवार्यतः संभव नहीं होता है। अतः उत्क्रमणीय प्रक्रम एक आदर्श संकल्पना (ideal concept) है। परंतु, धीमी गति से होनेवाले सभी समतापीय और रुद्घोष्म प्रक्रम लगभग उत्क्रमणीय होते हैं।

अनुत्क्रमणीय प्रक्रम (Irreversible process ) –

वैसे प्रक्रम जिनमें उत्क्रमणीय प्रक्रमों की आवश्यक शर्तें (स्थैतिककल्प तथा ऊर्जा संरक्षी) मान्य नहीं होती हैं, उन्हें अनुत्क्रमणीय प्रक्रम कहा जाता है।

इस प्रक्रम में यांत्रिक एवं ऊष्मीय प्रभाव नहीं उलटते । उदाहरण के लिए, घर्षण के विरुद्ध संपादित कार्य से ऊष्मा की उत्पत्ति एक अनुत्क्रमणीय प्रक्रम है, क्योंकि इसकी विपरीत प्रक्रिया अर्थात ऊष्मा द्वारा पुनः घर्षण बल के विरुद्ध कार्य का संपादन संभव नहीं होता है। अनुत्क्रमणीय प्रक्रम के अन्य उदाहरण इस प्रकार हैं – जूल का प्रभाव, चालन, संवहन, विकिरण, विसरण (diffusion) आदि।

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कार्नो का चक्र (Carnot Cycle):

कार्नो ने ऊष्मा इंजन की क्रियाओं के लिए एक आदर्श चक्र की कल्पना की। क्रियाओं के इन चक्रों कार्नो का चक्र (Carnot cycle) कहा जाता है। इन क्रियाओं वाले आदर्श चक्र के लिए जिस आदर्श व्यवस्था का व्यवहार किया जाता है उसे आदर्श ऊष्मा इंजन (ideal heat engine) या कार्नो ऊष्मा इंजन (Carnot heat engine) कहा जाता है।

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बनावट — कार्नो के आदर्श ऊष्मा इंजन के मुख्य भाग निम्नलिखित हैं –

(i) एक बेलन जिसकी दीवारें पूर्णतः कुचालक (nonconducting) हों परंतु जिसकी पेंदी (bottom) पूर्णत: सुचालक (conducting) हो जिसमें कार्यकारी पदार्थ (working substance) के रूप में आदर्श गैस ( ideal gas) भरा हो ।

(ii) एक तप्त वस्तु जो एक नियत उच्च ताप (constant high temperature) T1, पर स्थित हो, और ऊष्मा के स्रोत (source of heat) का कार्य करें ।

(iii) एक ठंढी वस्तु जो एक नियत निम्न ताप T2 पर हो, और ऊष्मा के अपवाही या सिंक (sink) का कार्य करें।

(iv) एक पूर्णत: कुचालक स्तंभ (nonconducting stand) – जिसपर बेलन को रखा जा – सके।

क्रिया (Working) –

एक चक्र (cycle) जिसमें कार्यकारी पदार्थ (आदर्श गैस), ताप, दाब और आयतन की किसी दी गई अवस्था से प्रारंभ कर, दो (एक के बाद दूसरी) प्रसारों (expansions) – जिनमें एक समतापीय (isothermal) और दूसरा रुद्घोष्म (adiabatic) होता है और फिर दो (एक के बाद दूसरी) संपीडनों ( compressions ) – जिनमें एक समतापीय और दूसरा रुद्घोष्म होता है, से गुजरता है और फिर अंत में प्रारंभिक अवस्था में ले आया जाता है, कार्नो का चक्र (Carnot cycle) कहा जाता है।

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Conclusion

दोस्तों हमारा Blog….”मोल(Mole in hindi) क्या है, मोल की परिभाषा, मोल अवधारणा, मोल सिद्धांत (Mol Kise Kahate Hain)”पढ़ने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद उम्मीद करता हूं कि इस आर्टिकल में आपको अपने सभी सवालों के जवाब मिल गए होंगे, फिर भी अगर आपके मन में कोई सवाल रह गया हो, तो आप हमसे Comments द्वारा पूछ सकते हैं.

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