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मेंडल के प्रयोग और वंशागति के नियम, वंशागति एवं विविधता के सिद्धांत (Mendel’s experiments and laws of inheritance)

वंशागति एवं विविधता के सिद्धांत ( Principles of Inheritance and Variation) —

प्रायः ऐसा देखा जाता है कि प्रत्येक जीव चाहे वह मनुष्य, जानवर या पेड़-पौधा हो, जनन द्वारा अपने ही जैसा जीव उत्पन्न करता है और उसमें अधिकांश गुण माता-पिता के समान होते हैं। विज्ञान की उस शाखा को जिसमें हम माता-1 – पिता तथा संतान के समान या असमान गुणों का अध्ययन करते हैं.

आनुवंशिकी (genetics) कहते हैं और संतति में पैतृक लक्षणों के संचरण (transmission) को आनुवंशिकता (heredity) कहते हैं। यह संचरण एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में जनकों (parents) के युग्मकों (gametes) के द्वारा होता है। एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में संचारित होनेवाले गुण पैतृक गुण या आनुवंशिक गुण (hereditary characters) कहलाते हैं ।

आम तौर से संतानें माता-पिता के सदृश होती हैं। फिर भी एक ही प्रकार के जनक से उत्पन्न विभिन्न संतानों में कुछ-न-कुछ अंतर निश्चित रूप से पाया जाता है, जैसे गोरे माता-पिता की संतान काली, काले माता-पिता की संतान गोरी, लंबे माता-पिता की नाटी तथा नाटे माता-पिता की लंबी इत्यादि। इन भिन्नताओं को विविधताएँ (variations) कहते हैं।

आनुवंशिकता के नियमों का अध्ययन सर्वप्रथम आस्ट्रिया में ब्रुन (Brunn) नामक स्थान के एक मठ के पादरी ग्रेगर जोहान मेंडल (Gregor Johann Mendel) ने 1856–1863 में किया। अपने धार्मिक कार्यों के अतिरिक्त मेंडल को बागवानी में बहुत रुचि थी। उन्होंने अपने मठ में मटर के पौधों (Pisum sativum) की अनेक उपजातियाँ (varieties) लगा रखी थी और उनमें आनुवंशिकता के प्रयोग किया करते थे। इन प्रयोगों में मुख्य रूप से दो उपजातियों को क्रॉस कराकर उनके नए संकर (hybrid) प्राप्त करने की क्रिया को संकरण (hybridization) कहते हैं।

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1857 से 1865 तक मेंडल ने कठिन परिश्रम द्वारा अपने प्रयोगों के आधार पर सांख्यिकीय आँकड़े (statistical data) तैयार किए और अपने प्रयोगों को 1865 में नैचुरल हिस्टोरिकल सोसाइटी ऑफ ब्रुन (Natural Historical Society of Brunn) की एक बैठक में प्रस्तुत किया। एक वर्ष उपरांत 1866 में इसी सोसाइटी की पत्रिका में मेंडल ने अपने अनुसंधानों को प्रकाशित किया।

उस समय वैज्ञानिकों का ध्यान मुख्यत: चार्ल्स डारविन (Charles Darwin) के सिद्धांतों के अध्ययन में व्यस्त था, इसलिए मेंडल के इन महत्त्वपूर्ण अनुसंधानों की ओर उनलोगों ने ध्यान नहीं दिया। मेंडल के इस प्रकाशन के 34 वर्ष बाद 1900 में तीन वैज्ञानिकों ने विभिन्न देशों में मेंडल द्वारा की गई खोजों का पुष्टिकरण किया। वे तीन वैज्ञानिक थे हॉलैंड के ह्यूगो डि व्रीज (Hugo de Vries), जर्मनी के कार्ल कोरेन्स (Carl Correns) तथा आस्ट्रिया के इरिक वॉन शेरमाक (Erich von Tschermak) । इन वैज्ञानिकों ने मेंडल की स्मृति में उनके अध्ययनों को पेंडल के वंशागति के नियमों (Mendel’s laws of inheritance) के रूप में मान्यता दिलाई।

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मेंडल की सफलता के कारण (Reasons for Mendel’s success ) —

मेंडल के प्रयोगों की सफलता के निम्नलिखित कारण हैं।

मटर के पौधे का चयन ( Selection of pea plant) –

वनस्पति जगत में पाए जानेवाले लाखों पौधों में मेंडल ने केवल मटर के ही पौधे को अपने प्रयोगों के लिए इसलिए चुना, क्योंकि मटर के पौधों में अनेक प्रकार के विपरीत गुण (contrasting characters) होते हैं। ऐसे सात जोड़े विपरीत लक्षणों के उदाहरण इस प्रकार हैं —

(i) गोल (round) तथा झुर्रीदार (wrinkled) बीज

(ii) पीले (yellow) तथा हरे (green) रंग के बीज

(iii) बैंगनी (violet) तथा सफेद (white) फूल

(iv) फूली हुई (inflated) तथा संकीर्णित (constricted) फली

(v) हरी (green) तथा पीली (yellow) फली

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(vi) अक्षीय (axillary) तथा शीर्षस्थ ( terminal) फूल

(vii) लंबे (tall) एवं बौने (dwarf) पौधे

इसके अतिरिक्त, मटर के पौधे छोटे होने के कारण प्रयोग करने में सुविधाजनक होते हैं और इनका जीवन-चक्र कुछ ही महीनों में पूरा हो जाता है, इसलिए पैतृक एवं संतति पीढ़ियों के गुणों का अध्ययन बहुत कम समय में किया जा सकता है। इनमें पुमंग (androecium) एवं जायांग (gynoecium) कोरोला (corolla) से पूर्णरूपेण ढँकी रहने के कारण स्व-परागण (self-pollination) होता है, लेकिन इस संरचना के चलते कृत्रिम पर-परागण (artificial cross-pollination) करना आसान हो जाता है।

कार्य-प्रणाली (Working method) —

मेंडल ने अपने अध्ययन के लिए एक समय में सिर्फ एक ही गुण को लिया। इसके साथ-साथ उन्होंने अवांछित परागकणों से संभावित पर – परागण को रोका। संयोग से उनके द्वारा चयनित गुण अलग-अलग क्रोमोसोम पर अवस्थित थे जिससे उनके परिणामों में व्यवधान नहीं पैदा हुए।

मेंडल के प्रयोग और वंशागति के नियम (Mendel’s experiments and laws of inheritance) —

मॅडल के अपने प्रयोगों में सफल होने का एकमात्र कारण यह था कि उन्होंने मटर के पौधों में वंशागति के नियमों का अध्ययन करने के लिए एक प्रयोग में केवल एक ही गुण की वंशागति (inheritance) का अध्ययन किया । इस प्रकार के क्रॉस (cross) को एकसंकर क्रॉस (monohybrid cross) कहते हैं। एकसंकर क्रॉस के प्रयोगों में सफलता प्राप्त होने पर मेंडल ने अपने अन्य प्रयोगों में दो या अधिक लक्षणों को चुनकर द्विसंकर (dihybrid) तथा बहुसंकर (polyhybrid) क्रॉस भी किया।

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मेंडल के प्रयोग में प्रयुक्त होनेवाली कुछ तकनीकी शब्दों की परिभाषा (Definitions of some technical terms used in Mendel’s experiments) —

(i) ऐलील या ऐलीलोमॉर्फ या युग्मविकल्पी (Allele, or allelomorph) —

जीवों में स्थित जीनों (genes) के वैकल्पिक प्रकार, जैसे लंबा तथा बौना पौधा, लाल तथा सफेद फूल आदि ।

(ii) जीन (Gene) –

विशेष लक्षण के लिए आनुवंशिकी की मूलभूत इकाई

(iii) प्रभावी गुण (Dominant character) —

संकरण के बाद पहली पीढ़ी (F1) में विपरीत गुणों के जोड़ों में दिखाई पड़नेवाला लक्षण

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(iv) अप्रभावी गुण (Recessive character) —

संकरण के बाद पहली पीढ़ी में विपरीत गुणों के जोड़ों में मौजूद रहते हुए नहीं दिखाई पड़नेवाला लक्षण

(v) एकल लक्षण (Unit character) —

कई पीढ़ियों में क्रॉस के पश्चात संकर (hybrids) में अपना एक अलग व्यक्तित्व (individuality) बनानेवाला लक्षण

(vi) फीनोटाइप (Phenotype ) —

किसी भी लक्षण का बाहरी रूप, जैसे लंबा या बौना

(vii) जीनोटाइप (Genotype) —

जीवों के जीन की संरचनाएँ

(viii) समयुग्मजी या होमोजाइगस (Homozygous) —

द्विगुणित (diploid) अवस्था जिसमें दोनों ऐलील (alleles) एक जैसे हों, जैसे TT

(ix) विषमयुग्मजी या हेटेरोजाइगस (Heterozygous) –

द्विगुणित अवस्था जिसमें दोनों ऐलील अलग-अलग हों

(x) F1 पीढ़ी (First-filial generation) —

दो जनकों के संकरण या क्रॉस से बनी पहली पीढ़ी

(xi) F2 पीढ़ी (Second-filial generation) –

F1 पीढ़ी के दो जीवों के संकरण द्वारा बननेवाली पीढ़ी

(xii) विपुंसन या इमैसकुलेशन (Emasculation) –

पुष्प से परिपक्वता के पहले परागकोष (anther) को हटा दिए जाने की क्रिया

(xiii) परीक्षार्थ संकरण या टेस्ट क्रॉस (Test cross ) –

अप्रभावी गुणोंवाले समयुग्मजी जनक के साथ F1 पीढ़ी के जीवों का संकरण

संकरण की विधि (Method of hybridization) —

मेंडल ने संकरण के लिए विपरीत गुणों वाले दो मटर के पौधों को चुना। स्वपरागी होने के कारण इसके एक ही फूल में परागकोष (anther) और बीजांड (ovule) दोनों पाए जाते हैं। इसे रोकने के लिए परिपक्वता के पहले विपुंसन (emasculation) द्वारा परागकोष को काट दिया जाता है एवं वर्तिकाग्र (stigma) को बाहरी परागकणों (pollen grains) से सुरक्षित रखने के लिए प्लैस्टिक की थैली से बंद कर दिया जाता है।

वांछित गुणों वाले पौधे के पराग कणों को परिपक्वता के बाद मादा जनक के वर्तिकाग्र पर डालकर कृत्रिम परागण कराया जाता है। इसके बाद निषेचन (fertilization) क्रिया होती है एवं बीजों का निर्माण होता है। इन बीजों के बीच संकरण से द्वितीय पीढ़ी के पौधे तैयार होते हैं।

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