जीवों में जनन (Janan kise kahate Hain):
Janan kya hai-प्रत्येक जीव अपने जीवनकाल में एक निश्चित तथा नियमित अवस्था से गुजरता है। जीव का जन्म होता है, वह वृद्धि करता है और उसमें जनन होता है जिसके परिणामस्वरूप नए जीव का जन्म होता है। धीरे-धीरे यह जीव भी वृद्धि करता है, किशोरावस्था में आता है, जनन करता है और अंतः मृत्यु को प्राप्त करता है।
“जीव के जन्म से लेकर उसकी प्राकृतिक मृत्यु तक का यह काल, उस जीव की जीवन-अवधि या जीवनकालु कहलाता है। (The length of time which an organism is likely to live is called its lifespan.)”
प्रत्येक जीव का जीवनकाल भिन्न-भिन्न होता है। तालिका 11 में कुछ जीवों के जीवन-अवधि का विवरण दिया गया है। कुछ जीवों की जीवनअवधि कुछ ही दिनों की होती है और कुछ जीव कई हजार वर्ष तक जीवित रहते हैं। उदाहरण के लिए, एक तितली का जीवनकाल 1-2 सप्ताह का होता है। कुछ वृक्ष,जैसे सिकोया (Sequoia) की जीवन-अवधि 3000-4000 वर्ष तक होती है।
जीवों की जीवन-
अवधि का उनके आकार से संबंध नहीं होता है। उदाहरण के लिए, कौआ और तोता के आकार में कोई विशेष अंतर नहीं होता है, परंतु इनकी जीवन-अवधि में बहुत अंतर होता है। कौआ की जीवन-अवधि लगभग 15 वर्ष होती है, वहीं तोता की जीवन-अवधि लगभग 140 वर्ष होती है।
जीवों की जीवन
-अवधि चाहे जो भी हो, उनके जीवन का अंत मृत्यु ही है। प्रत्येक जीव जब अपनी जीवन-अवधि पूर्ण कर लेता है तब वह प्राकृतिक मृत्यु (natural death) को प्राप्त हो जाता है। कोई भी जीव अमर नहीं है सिवा एककोशिकीय जीवों के।
ऐसा इसलिए कह सकते हैं क्योंकि एककोशिकीय जीव स्वयं विभाजित होकर नए जीव को जन्म देते हैं, जैसे अमीबा जीवाणु (bacteria) कुछ ही मिनटों में पूर्णस्वरूप को प्राप्त कर लेता है और उसमें द्विखंडन (binary fission) हो जाता है, फलस्वरूप दो जीवाणु बन जाते हैं। ये पुनः विभाजित होकर नए जीवाणुओं को जन्म देते हैं।
पृथ्वी पर हजारों वर्ष से पादप तथा जंतुओं की अनेक स्पीशीज मौजूद हैं और प्रत्येक स्पीशीज अपने तरह के जीवों को जन्म देते हैं। यह जनन (reproduction) द्वारा ही संभव हो पाता है।
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जनन (Janan kise kahate Hain):
“जनन जीवों की वह क्षमता होती है जिससे वे अपने ही समान छोटे-से जीव को जन्म देता है । (Reproduction is the ability of organisms to produce young ones that are similar to them in most characters.)”
संतति के जन्म के बाद उसमें वृद्धि होती है और परिपक्व (mature) होने के बाद वह नई संतति को जन्म देता है। यह क्रम एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में चलता रहता है। इस चक्र में जन्म, वृद्धि तथा मृत्यु सम्मिलित हैं। जनन एक स्पीशीज में एक पीढ़ी के बाद दूसरी पीढ़ी की निरंतरता बनाए रखता है।
जनन जीवित प्राणियों का एक विशेष लक्षण है, परंतु प्रत्येक जीव में अपने को बहुगुणित (multiply) करने तथा संतति उत्पन्न करने की अपनी विधि होती है। यह उस जीव की आंतरिक संरचना, शरीरक्रियाविज्ञान (physiology) तथा वास स्थान पर निर्भर करता है।
जनन-प्रक्रिया एक ही जीव द्वारा की जा सकती है या यह दो जीवों के बीच भागीदारी पर आधारित रहती है। जब संतति, (offspring) की उत्पत्ति एकल जनुक (single parent) से होती है वह अलैंगिक जनन कहलाता है। जब दो विपरीत लिंगवाले जनक जनन प्रक्रिया में भाग लेते हैं तब इस प्रकार के जनन को लैंगिक जनन (sexual reproduction) कहते हैं।
अलैंगिक जनन (Alaingik janan kise kahate Hain)

Alaingik janan kise kahate hain-
“बैक्टीरिया, कवक, प्रोटोजोआ, शैवाल तथा अनेक पौधों और जंतुओं में अलैंगिक जनन होता है। इस प्रकार के जनन में केवल एक ही जनक (parent) की आवश्यकता पड़ती है। इस प्रकार से प्राप्त संतति (offspring) आनुवंशिक रूप से समान होने के साथ-साथ आपस में भी समान होते हैं। इस प्रकार से प्राप्त संतति को एकपुंजक या क्लोन (clone) कहते हैं।”
जनन कितने प्रकार के होते हैं
- लैंगिक जनन (Sexual reproduction):
- अलैगिक जनन तथा कायिक जनन
अमीबा
अमीबा (Amoeba) में अलैंगिक जनन द्विखंडन (binary fission) द्वारा होता है। अमीबा में एक निश्चित वृद्धि के बाद क्रोमोसोम्स का (duplication) हो जाता है तथा केंद्रक विभाजित होकर दो पुत्री कोशिकाओं (daughter cells) को जन्म देता है। ये पुत्री कोशिकाएँ वृद्धि करती पूर्ण परिपक्व होने पर जनन-क्रिया करती हैं। अमीबा की भाँति पैरामीशियम (Paramecium) में भी द्विखंडन होता है।
यीस्ट
यीस्ट (yeast) में अलैंगिक जनन मुकुलन (budding) द्वारा होता है। इस विधि में मातृकोशिका (parent cell) से एक अथवा अनेक उद्वेध (outgrowths) निकलते हैं। इन्हें मुकुल (buds) कहते हैं। मातृकोशिका का केंद्रक सूत्री विभाजन (mitosis) द्वारा विभाजित होकर एक केंद्रक एवं कुछ कोशिकाद्रव्य मुकुल में पहुँच जाता है। कोशिका-भित्ति बनने के बाद मुकुल जनन कोशिका से अलग हो जाता है।
शैवाल
शैवाल में अलैंगिक जनन विखंडन (fission), खंडन (fragmentation) तथा कई प्रकार के बीजाणुओं (spores) द्वारा होता है। शैवाल क्लेमाइडोमोनास (Chlamydomonas) में प्रोटोप्लास्ट के विभाजन से दो या चार चलबीजाणु (zoospores) बनते हैं। ये गतिशील तथा द्विकशाभिक (biflagellate) होते हैं । प्रत्येक चल बीजाणु कुछ समय पश्चात वयस्क क्लेमाइडोमोनास में परिवर्तित हो जाता है।
कवक
कवक (fungi) में अलैंगिक जनन कई प्रकार होता है, जैसे चलबीजाणु, कोनिडिया (conidia) तथा अचलबीजाणु (aplanospore) द्वारा पेनिसिलियम (Penicillium) में बीजाणु अचल कोनिडिया (nonmotile conidia) होते हैं। ये बहिर्जात (exogenous chains of cells) होते हैं। राइजोपस (Rhizopus) तथा म्यूकर (Mucor) में बीजाणुधानी में अचलबीजाणु (aplanospores) बनते हैं। अनुकूल परिस्थिति मिलने पर ये नए कवक तंतु को जन्म देते हैं।
हाइड्रा
हाइड्रा (Hydra) में अलैगिक जनन मुकुलन (budding) द्वारा होता है। सिफा (Scypha) या साइकन (Sycon) नामक स्पंज में भी अलैंगिक जनन मुकुलन द्वारा होता है। स्पंज के सिलिंडर के बेस से एक उद्वर्ध निकलता है। यह मुकुल बढ़कर मातृ सिलिंडर से लगा रहता है या उससे अलग होकर नए जीव की तरह व्यवहार करने लगता है। स्पंज में अलैगिक जनन आंतरिक मुकुल (internal bud) द्वारा भी होता है। इस आंतरिक मुकुल को जेम्यूल (gemmule) कहते हैं।
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अलैगिक जनन तथा कायिक जनन
Janan kise kahate Hain– अलैगिक जनन तथा कायिक जनन शब्दों का प्रयोग क्रमशः जंतुओं तथा पादपों के संदर्भ में किया जाता है।
कायिक जनन किसे कहते हैं–
“कायिक जनन (vegetative reproduction) भी एक प्रकार का अलैगिक जनन है, क्योंकि इसमें किसी प्रकार के गैमीट नहीं बनते और एक ही जनक पौधे से नए पौधे का निर्माण होता है। क्लोन (एकपुंजक) शब्द का प्रयोग कायिक जनन से उत्पन्न संतति के लिए निश्चित रूप से किया जा सकता है।”
पौधों में कायिक प्रवर्धन (vegetative propagation) कई प्रकार से होता है, जैसे प्रकंद (rhizome), कंद (tuber), बल्ब (bulb), उपरिभूस्तारी (runner), अंतः भूस्तारी (sucker), भूस्तरिका (offset)। कुछ पौधे, जैसे आलू भूमिगत तने के फूले हुए भाग से कंद बनते हैं। अदरख में भूमिगत प्रकंद (राइजोम) बनता है। बॉस में भी प्रकंद द्वारा कायिक जनन होता है। एक अकेला बाँस पूरे बॉस के जंगल को जन्म दे सकता है। ये सभी बाँस एक-दूसरे से शारीरिक रूप से जुड़े होते हैं।
जहाँ स्टोलन्स (stolons) तथा प्रकंद समस्तरी (horizontal) होते हैं वहीं बल्व (bulb) और घनकंद या कॉर्म (corm) छोटे, खड़े भूमिगत तने हैं। लिली तथा प्याज में तना अत्यंत छोटा होता है तथा उससे जुड़ी हुई ढेर सारी मांसल पत्तियाँ होती हैं। बल्ब बड़ी कलिकाएँ हैं जिनमें भोज्य पदार्थ संग्रहित होते हैं और ये बाद में चलकर नए पौधों को जन्म देती हैं। ग्लेडियोलस तथा कुछ अन्य पौधों में भूमिगत कॉर्म बनते हैं।
ये शंक्वाकार (conical) होते हैं तथा मुख्यतया तने से ही बने होते हैं। इनमें बल्ब की तरह की मांसल पत्तियाँ नहीं होती। घनकंद में स्थित शीर्ष कलिका नए पौधे को जन्म देती है। ये सभी कायिक सरचनाएँ नई संतति को जन्म देने में समर्थ होती हैं। जनक पौधे पर बनी कायिक संरचनाओं को कायिक प्रवर्ध (vegetative propagules) कहते हैं। ये प्रवधं वृद्धि कर नए पौधे को जन्म देती हैं।
जलकुंभी (water hyacinth, Eichhornia)
जलकुंभी (water hyacinth, Eichhornia) एक जलीय पौधा है जो स्थिर जल (stagnant water) में तेजी से वृद्धि करता है। इसमें कायिक प्रवर्धन भूस्तारिका (offset) द्वारा होता है। यह प्रक्रिया इतने तीव्र गति से होती है कि कम समय में ही जलकुंभी पूरे जलाशय पर फैल जाता है।
जलाशय को पूर्णरूप से ढँक जाने के कारण अन्य जलीय जीव-जंतु उग नहीं पाते हैं और मछलियों की संख्या भी कम हो जाती है। जलकुंभी को ‘महाविपत्ति’ अथवा ‘बंगाल का आतंक’ (terror of Bengal) के नाम से भी जाना जाता है। यह एक विदेशी पौधा है।
फसली पौधों, जैसे आलू, गन्ना, केला, प्याज की खेती के लिए कायिक प्रवर्धन विधि का प्रयोग किया जाता है। गन्ने में पर्वसंधियों (nodes) से नई कलिकाएँ निकलती है जो वृद्धिकर नए पादप को जन्म देती है। इसी प्रकार आलू, अदरख तथा केले से भी नए पौधे पर्वसंधियों से निकलते हैं। आलू के कद में होती है। इन आँखों में कलिकाएँ (huds) होती है। इन्हीं कलिकाओं से नए पौधे का जन्म होता है।
शैवाल, कवक, बैक्टीरिया तथा अन्य साधारण जीवों में अलैगिक जनन ही सामान्य विधि है। इस प्रकार का जनन सामान्य परिस्थितियों में होता है, परंतु प्रतिकूल परिस्थितियों के आगमन से पूर्व शैवाल, कवक आदि में लैंगिक जनन होने लगता है। इसका प्रमुख कारण यह है कि लैंगिक जनन के उपरांत जो जाइगोट बनता है वह विपरीत परिस्थितियों में सुप्तावस्था में रहता है।
अनुकूल परिस्थितियाँ आने पर जाइगोट में विभाजन होता है और नए स्पोर बनते हैं जो वृद्धि करके नए पौधे को जन्म देते हैं। उच्च श्रेणी के पौधों में अलैगिक जनन तथा लैंगिक जनन दोनों होते हैं। उच्च श्रेणी के अधिकांश पौधों में लैंगिक जनन होता है, क्योंकि इस प्रकार के जनन के पश्चात बीज बनते हैं। इन बीजों के माध्यम से पौधे अपनी प्रजाति को बचाने के साथ-साथ दूर-दूर तक फैलाने में भी मदद करते हैं।
पादपों की भाँति जंतुओं में भी अलैंगिक तथा लैंगिक जनन होता है। उच्च श्रेणी के जंतुओं में केवल लैंगिक जनन ही होता है।
लैंगिक जनन (Sexual reproduction):

Janan kise kahate Hain– “लैंगिक जनन लगभग सभी जीवधारियों द्वारा प्रयोग किया जाता है, परंतु उच्चवर्गीय पौधों तथा जंतुओं में यह जनन की एकमात्र विधि है। लैंगिक जनन में विपरीत लिंगवाले जीवों द्वारा नर तथा मादा युग्मक (gamete) बनाए जाते हैं। नर युग्मक तथा मादा युग्मक के संगलन (fusion) से युग्मनज (zygote) बनता है। यह विकसित होकर नए जीव को जन्म देता है।”
- नर तथा माढा दोनों ही प्रकार के गैमीट अर्धसूत्री विभाजन के फलस्वरूप बनते हैं। इस प्रकार के विभाजन में गुणसूत्रों की संख्या आधी रह जाती है। उदाहरण के लिए, मनुष्य में 46 क्रोमोसोम होते हैं। अर्धसूत्री विभाजन के पश्चात अंड तथा शुक्राणु में केवल 23 क्रोमोसोम विद्यमान रहते हैं।
- निषेचन के पश्चात जाइगोट बनता है जिसमें पुनः क्रोमोसोम की संख्या 46 हो जाती है। इस प्रकार संतति में गुणसूत्रों (chromosomes) की संख्या जनक जीव के समान हो जाती है। इस क्रम में संतति में दोनों जनकों की कुछ विशेषताएँ मिश्रित हो जाती हैं।
पादप, कवक तथा जंतु बाह्य आकारिकी (external morphology), आंतरिक संरचनाओं (internal structures) तथा शरीरक्रियाविज्ञान (physiology) में एक-दूसरे से बिलकुल भिन्न होते हैं, परंतु ये जीव जब लगिक जनन के लिए पास आते हैं तब सभी में एक समान पैटर्न (paterm) पाया जाता है। सभी जीवों को लैंगिक जनन से पूर्व वृद्धि की एक निश्चित अवस्था तक आना पड़ता है। जब जीव परिपक्व हो जाता है तब वह लैंगिक जनन करने के लिए समर्थ हो पाता है।
जंतुओं में वृद्धि की इस अवस्था को किशोगवस्था की प्रावस्था (juvenile phase) कहा जाता है। पादपों में यह अवस्था कायिक प्रावस्था (vegetative phase) कहलाता है। किशोरावस्था की प्रावस्था तथा कायिक प्रावस्था की अवधि अलग-अलग जीवों में भिन्न-भिन्न होती है।
पादपों में कायिक प्रावस्था की समाप्ति के पश्चात पुष्पन (flowering) प्रारंभ होता है जिसे आसानी से देखा जा सकता है। धान, गेहूँ, गेंदा आदि पौधे वार्षिक होते हैं। इनके बीज जमीन में गिरने के बाद अंकुरित होते हैं और वृद्धि कर कायिक प्रावस्था में आ जाते हैं। उसके बाद उनमें फूल लगते हैं।
परागण तथा निषेचन के पश्चात बीज बन जाते हैं और एक वर्ष के अंदर ही इनका जीवन-चक्र पूर्ण हो जाता है। कुछ पौधे, जैसे आम, नारियल आदि में पुष्पन होने में कई वर्ष लगते हैं।
पादप वार्षिक द्विवार्षिक तथा बहुवर्षीय होते हैं। कुछ पौधे ऐसे होते हैं जिनमें वर्ष भर पुष्पीकरण होता रहता है, जैसे गुड़हल। कुछ पादपों, जैसे जामुन, लीची आदि में वर्ष में एक बार पुष्पन होता है। आम में प्रायः दो वर्ष में एक बार पुष्पन होता है। इस प्रकार का पुष्पन एकांतर पुष्पन (alternate flowering) कहलाता है।
वैसे पादप जो वार्षिक तथा द्विवार्षिक श्रेणियों में रखे गए हैं वे स्पष्ट रूप से कायिक (vegetative), जननीय (reproductive) तथा जीर्यमान (senescent) प्रावस्थाओं को प्रदर्शित करते हैं। परंतु, बहुवर्षीय स्पीशीज में इन अवस्थाओं को स्पष्ट रूप से पारिभाषित (define) करना कठिन होता है।
कुछ पादप पूरे जीवन-
काल में केवल एक बार पुष्प पैदा करते हैं, जैसे अगेव (Agave), बाँस (bamboo)। बाँस की प्रजातियाँ अपने पूरे जीवनकाल मे सामान्यतः 50-100 वर्षों के बाद केवल एक बार पुष्प पैदा करते हैं। बड़ी संख्या में फल बनते हैं और मर जाते हैं। बाँस में कायिक प्रवर्धन होता है, इसलिए, लैंगिक जनन का इस पौधे में बहुत महत्त्व नहीं रह जाता। वैसे पौधे जिनके जीवन-काल में केवल एक बार पुष्पन होता है, मोनोकार्पिक (monocarpic) कहलाते हैं।
बाँस की ही तरह एक दूसरा पौधा है-
स्ट्रॉविलैन्थस कुन्थिआना (Strobilanthes kunthiana) | इसे ‘नीला कुरेजी’ कहा जाता है। यह पौधा 12 वर्ष में एक बार पुष्पित होता है। विगत दिनों (2006 में) इस पौधे में इतने अधिक पुष्प बने थे कि केरल, कर्नाटक तथा तमिलनाडु के पहाड़ी क्षेत्रों में सड़क के किनारे पुष्पों का कालीन-सा बिछ गया।
जंतुओं में किशोर-
प्रावस्था के बाद आकारिकी तथा शरीरक्रियाविज्ञान में बदलाव आता है और उसके बाद उनमें प्रजनन व्यवहार शुरू होता है। पुरुषों में दाढ़ी-मूँछों का आना तथा महिलाओं में स्तन का बढ़ना, ऋतुस्राव आदि से जनन अवस्था का पता लगाया जा सकता है। विभिन्न जीवों में जनन प्रावस्था की विविध अवधि होती है।
लैंगिक जनन के लाभ
लैंगिक जनन(laingik janan in hindi) के कई लाभ हैं। लैंगिक जनन से उत्पन्न संतति आनुवंशिक दृष्टि से भिन्न होते हैं। इस संतति में जो आसपास के वातावरण के अनुकूल होते हैं वही जीवित रहते हैं और जनन-क्रिया द्वारा नए संतति को जन्म देते हैं। यह संतति वातावरण के अनुकूल होती है तथा स्पीशीज को बढ़ाने में मदद करती है।
सरीसृप (reptiles), पक्षी (birds) तथा स्तनपायी जीवों (mammals) में जनन के दौरान आंतरिक निषेचन (internal fertilization) होता है। जलीय जीवों, जैसे शैवाल, मछलियों में बाह्य निषेचन (external fertilization) होता है।
साधारणतया प्रकृति में रहनेवाले पक्षी केवल विशेष मौसम आने पर ही अंडे देते हैं, परंतु कुक्कुट फार्म (poultry farm) में मुर्गियाँ वर्ष भर अंडे ही विकसित किया गया है। यह संरक्षण में देती हैं। यह इसलिए संभव हो पाता है कि इन मुर्गियों को मनुष्य के उपयोग के लिए अंडे देने के लिए रहनेवाले पक्षियों पर लागू होता है।
मादा मेहक के शरीर से अंडे निकलकर पानी में आ जाते हैं जहाँ उनमें निषेचन की क्रिया होती है। नर तथा मादा छिपकली के संगम से निषेचित अंडे बनते हैं जो वृद्धि करके एक नया जीव बनाते हैं।
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मदचक्र तथा ऋतुस्राव चक्र (Oestrus cycle and menstrual cycle):
अपगस्तनी स्तनपायी जीवों (placental mammals) में जनन अवस्था में शारीरिक बदलाव आने लगते हैं। इनमें अंडाशय की सक्रियता तथा सहायक वाहिका और हार्मोन में परिवर्तन आने लगते हैं।
ननप्राइमेट (nonprimate) स्तनधारियों में पाए जानेवाले चक्र को मदचक्र कहते हैं। गाय, कुत्ता, चीता, हिरण, चूहा, भेड़ आदि में मदचक्र पाया जाता है। इस प्रकार का चक्र जब प्राइमेट में पाया जाता है तब उसे ऋतुस्राव चक्र कहते हैं। उदाहरण के लिए, ऋतुस्राव चक्र मनुष्य, बंदर तथा गोरिल्ला में पाया जाता है।
अधिकांश स्तनधारियों (विशेषतया वैसे स्तनधारी जो वनों में पाए जाते हैं) अपने जनन प्रावस्था के दौरान ऐसे चक्रों का प्रदर्शन करते हैं। इन स्तनधारियों को मौसमी प्रजनक (seasonal breeders) कहा जाता है। अधिकांश स्तनधारी अपने पूर्ण जनन-काल में प्रजनन के लिए सक्रिय होते हैं। इसी कारण स्तनधारियों को सतत प्रजनक (continuous breeders) कहा जाता है।
लैंगिक जनन की घटनाएँ (Events in sexual reproduction):
जीवों में लैंगिक जनन(Alaingik janan hindi) के दौरान होनेवाली सभी प्रक्रियाएँ एक निश्चित क्रम का पालन करती हैं। लैंगिक जनन में नर तथा मादा युग्मक बनते हैं तथा उनके मध्य युग्मन (fertilization) होता है। युग्मन या निषेचन के पश्चात अंड युग्मनज (Zygote) में परिवर्तित हो जाता है। युग्मनज में भ्रूणोद्भव (embryogenesis) के पश्चात नए भ्रूण का जन्म होता है।
जीवों में लैंगिक जनन को सामान्यतया तीन भागों में विभक्त किया जा सकता है –
(क) निषेचन-पूर्व घटनाएँ (Pre-fertilization events)
(ख) निषेचन (Fertilization)
(ग) निषेचन पश्च घटनाएँ (Post-fertilization events)
निषेचन-पूर्व घटनाएँ (Pre-fertilization events):
गैमीट्स के संयोजन से पूर्व की सभी घटनाएँ निषेचन – पूर्व घटनाएँ कहलाती हैं। इसमें गैमीट्स का बनना तथा उनका स्थानांतरण दोनों ही सम्मिलित हैं। युग्मक के बनने की प्रक्रिया युग्मकजनन (gametogenesis) कहलाती है। युग्मकजनन की प्रक्रिया में नर तथा मादा दोनों युग्मक बनते हैं। दोनों प्रकार के युग्मक अगुणित (haploid) होते हैं।
शैवालों, जैसे क्लेमाइडोमोनास (Chlamydomonas) में तीन प्रकार के गैमीट्स बनते हैं— समयुग्मक (isogametes), असमयुग्मक (anisogametes) तथा विषमयुग्मक (heterogametes) । समयुग्मक गैमीट एक समान होते हैं। इनमें नर तथा मादा गैमीट की पहचान नहीं हो पाती है। असमयुग्मक तथा विषमयुग्मक में मादा गैमीट नर गैमीट से बड़ा होता है, इसलिए नर तथा मादा गैमीट की पहचान आसान होती है। असमयुग्मक में नर तथा मादा दोनों गैमीट्स में कशाभिक (flagella) होते हैं, परंतु विषमयुग्मक में मादा गैमीट में फ्लैजिला नहीं पाए जाते हैं। शैवाल (जैसे फ्यूकस (Fucus) में मादा गैमीट नर गैमीट की तुलना में काफी बड़ा होता है।
फ्यूकस में नर युग्मक को पुमणु (antherozoid) तथा मादा युग्मक को अंड (egg) कहते हैं। जंतुओं तथा मनुष्य में नर युग्मकों को शुक्राणु (sperm) तथा मादा युग्मक को अंड (ovum) कहते हैं।
जीवों में लैंगिकता (Sexualilty in organisms ):
पौधों में नर तथा मादा-जनन अंग दोनों जब एक ही पौधे में पाए जाते हैं तब उन्हें उभयलिंगाश्रयी (monoecious) कहा जाता है, जैसे मक्का, रेंडी, गुड़हल, नारियल आदि। जब नर तथा मादा जनन अंग अलग-अलग पौधे पर विद्यमान होते हैं तब उन्हें एकलिंगा (dioecious) कहा जाता है, जैसे खजूर, शहतूत,भाँग, पपीता आदि।
जिस पुष्प में पुंकेसर (stamen) तथा स्त्रीकेसर (pistil) दोनों विद्यमान होते हैं तो उस प्रकार के पुष्प को द्विलिंगी (bisexual) पुष्प तथा जिस पुष्प में केवल पुंकेसर या केवल स्त्रीकेसर विद्यमान होता है तो उस प्रकार के पुष्प को एकलिंगी (unisexual) पुष्प कहा जाता है।
कवक में प्रजातियाँ समजालिक (homothallic) या विषमजालिक (heterothallic) हो सकती हैं, जैसे राइजोपस (Rhizopus) में। समजालिक में कवकतंतु एक ही प्रकार के होते हैं तथा वे शरीर क्रियात्मक दृष्टिकोण से समान होते हैं परंतु विषमजालिक स्पीशीज में दो प्रकार के जाते हैं। इनमें दोनों थैलस बाह्य आकार में तो समान होते हैं, परंतु शरीरक्रियात्मक (physiologically) दृष्टि से भिन्न होते हैं। थैलस अवस्था को विषमजालिकता (heterothallism) कहा जाता है। विषमजालिक स्पीशीज में लैंगिक जनन के समय दो भिन्न कवकजालों तथा – स्ट्रेन) की आवश्यकता पड़ती है।
फयूनेरिया (Funaria) (एक ब्रायोफाइट) का पौधा सामान्यतः उभयलिंगाश्रयी (monoecious) होता है, अर्थात पुंधानी (antheridium) तथा स्त्रीधानी gonium) एक ही पौधे पर पाए जाते हैं। साइकस (Cycas) अनावृतबीजी पौधा है। इसका पेड़ एकलिंगाश्रयी (dioecious) होता है।
जंतुओं में भी एकलिंगी (unisexual) तथा द्विलिंगी (bisexual) स्पीशीज पाई जाती है। उच्चवर्गीय जंतुओं में नर तथा मादा अलग-अलग जैसे गाय तथा साँढ़, बकरी तथा बकरा। ये सभी एकलिंगी जंतुओं के उदाहरण हैं। तिलचट्टा (cockroach) भी एकलिंगी प्राणी के उदाहरण हैं। केंचुआ ( earthworm), जोंक (leech), स्पंज (sponge) तथा टेपवर्म (tapeworm) द्विलिंगी प्राणियों के प्रारूपिक उदाहरण (typical examples) हैं। इनमें नर तथा मादा जननांग दोनों एक ही प्राणी में पाए जाते हैं। इस प्रकार के प्राणियों को उभयलिंगी (hermaphrodites) कहा जाता है।