Energy in hindi-क्या आप ऊर्जा की मूल बातें जानना चाहते हैं? क्या आप इसके सूत्र, उपयोग और स्रोतों के बारे में उत्सुक हैं? क्या आप गतिज और संभावित ऊर्जा को बेहतर ढंग से समझना चाहते हैं? अगर ऐसा है, तो यह ब्लॉग पोस्ट आपके लिए है! हम ऊर्जा की परिभाषा(Energy hindi meaning), इसके उपयोग और स्रोतों के साथ-साथ ऊर्जा के संरक्षण के सिद्धांतों की खोज करेंगे।
ऊर्जा (Energy in hindi)
“कार्य करने की क्षमता को ऊर्जा कहा जाता है। (Capacity of doing work is called energy.) किसी वस्तु में निहित ऊर्जा का मापन उस कुल कार्य से किया जाता है जिसे वह अपनी वर्तमान स्थिति से किसी प्रामाणिक स्थिति तक आने में कर सकती है।“
ऊर्जा के मात्रक (Units of energy) -ऊर्जा का SI मात्रक J होता है।
[ द्रष्टव्य : ऊर्जा और कार्य के मात्रक समान होते हैं । ऊर्जा एवं कार्य के अन्य वैकल्पिक मात्रक (जूल में व्यक्त) निम्नांकित हैं
- 1 अर्ग (erg) = 10^-7J
- 1 इलेक्ट्रॉन वोल्ट (eV) = 1.6 ×10^-19 J
- 1 कैलोरी (cal) = 4.186 J
- 1 किलोवाट घंटा (kWh) = 3.6 × 10^6 J.
यांत्रिक ऊर्जा के प्रकार (Kinds of Mechanical Energy in hindi)

यांत्रिक ऊर्जा दो प्रकार की होती है-
- गतिज ऊर्जा (kinetic energy)
- स्थितिज ऊर्जा ( potential energy)
गतिज ऊर्जा (Kinetic energy in hindi) –
किसी वस्तु की वह ऊर्जा, जो उसकी गति के कारण होती है, गतिज ऊर्जा कहलाती है। इसे प्रायः Ek से प्रदर्शित किया जाता है। यदि m द्रव्यमान की वस्तु वेग से जा रही हो, तो उसकी
गतिज ऊर्जा Ek 1 = ½(mv^2)
अन्य ऊर्जाओं की भाँति गतिज ऊर्जा भी एक अदिश राशि (scalar quantity) है।
स्थितिज ऊर्जा (Potential energy in hindi) –
किसी निकाय ( system) की वह ऊर्जा, जो इसके कणों की स्थिति (position) अथवा संरूपण (configuration ) के कारण होती है, स्थितिज ऊर्जा कहलाती है। इसे प्रायः Ep से प्रदर्शित किया जाता है।
किसी वस्तु को अपनी वर्तमान स्थिति से एक प्रामाणिक स्थिति (जहाँ स्थितिज ऊर्जा शून्य मानी जाती है) तक जाने में बाह्य बल द्वारा जितना कार्य संपादित होता है उसी से उसकी स्थितिज ऊर्जा मापी जाती है। पृथ्वी तल को सामान्यतः प्रामाणिक स्थिति माना जाता है। इसे शून्य स्तर (zero level) भी कहते हैं।
यदि m द्रव्यमान की एक वस्तु को पृथ्वी तल से h ऊँचाई तक किसी भी पथ से उठाया जाए तो इसके लिए गुरुत्व बल के विरुद्ध किए गए कार्य से निकाय (system) में संचित स्थितिज ऊर्जा की माप होती है। इसे गुरुत्वीय स्थितिज ऊर्जा कहा जाता है। अतः,
- स्थितिज ऊर्जा Ep = mgh
- जहाँ , g गुरुत्वीय त्वरण है
संरक्षी बल (Conservative Forces):
विभिन्न प्रकार के सरल भौतिक निकाय में ऊर्जा संरक्षण के संदर्भ में यह देखा गया है कि गतिज ऊर्जा एवं स्थितिज ऊर्जा परस्पर एक-दूसरे में बदल सकती हैं, अर्थात गतिज ऊर्जा को स्थितिज ऊर्जा के रूप में जमा (store) किया जा सकता है और पुनः उस ऊर्जा को गतिज ऊर्जा के रूप में प्राप्त किया जा सकता है।
उदाहरणार्थ,
ऊर्ध्वाधरतः ऊपर की ओर फेंकी गई गेंद की चाल क्रमशः घटती जाती है, फलतः इसका रूपांतर स्थितिज ऊर्जा के रूप में होता है (यहाँ हम गतिज ऊर्जा को स्थितिज ऊर्जा के रूप में जमा करते हैं)। लेकिन, गेंद के लौटने के क्रम में वह स्थितिज ऊर्जा पुनः गतिज ऊर्जा के रूप में प्राप्त होती है। यदि वायु प्रतिरोध (air resistance) को नगण्य मान लिया जाए तब लौटने पर गेंद की चाल वही होती है जिस चाल से उसे प्रारंभ में फेंका गया था। इस प्रकार गुरुत्वीय क्षेत्र में ऊर्जा संरक्षण नियम मान्य है।
इस प्रकार के सभी निकायों में जिनके लिए गतिज ऊर्जा एवं स्थितिज ऊर्जा के बीच परस्पर रूपांतर (mutual conversion) होता है, कुल यांत्रिक ऊर्जा (KE + PE) संरक्षित (conserved) रहती है। ऐसे सभी निकायों में लगनेवाले बल (यहाँ गुरुत्वीय एवं स्प्रिंग बल) को संरक्षी बल (conservative force) कहा जाता है। आवेशों के बीच आरोपित वैद्युत बल संरक्षी होता है।
संरक्षी बलों के प्रमुख लक्षण (Essential Features of Conservative Forces):
(a) संरक्षी बलों द्वारा किया गया कार्य हमेशा उत्क्रमणीय (reversible) होता है, अर्थात संचित ऊर्जा को बिना ह्रास के पुनः प्राप्त किया जाता है।
(b) संरक्षी बलों द्वारा संपादित कार्य केवल प्रारंभिक अवस्था (i) और अंतिम अवस्था (f) पर निर्भर करता है, i तथा f को मिलानेवाले पथ (path) पर बिल्कुल नहीं।
(c) एक पूर्ण चक्रीय प्रक्रम (cyclic process ) में संरक्षी बल द्वारा नेट कार्य शून्य होता है।
इस प्रकार केवल संरक्षी बलों के अधीन कुल यांत्रिक ऊर्जा संरक्षित रहती है। संरक्षी बलों की श्रेणी में गुरुत्वीय तथा स्प्रिंग बलों के अतिरिक्त आवेशों के बीच लगनेवाला कूलंब या कूलॉम बल भी है। यहाँ यह ध्यान देना चाहिए कि केवल संरक्षी बलों के अधीन ही किसी निकाय की स्थितिज ऊर्जा U परिभाषित होती है। (Potential energy function U can only be defined for conservative force)
असंरक्षी अथवा क्षयकारी बल (Nonconservative or Dissipative Forces):
घर्षण बल का असंरक्षी (nonconservative) होना । घर्षण बल द्वारा किया गया कार्य हमेशा ऋणात्मक है तथा एक पूर्ण चक्र में यह कभी शून्य नहीं होता। घर्षण बल के अतिरिक्त तरल-प्रतिरोध (fluid resistance) भी असंरक्षी बल है।
(a) असंरक्षी बलों (nonconservative forces) के अधीन एक पूर्ण चक्र में किया गया कुल कार्य शून्य नहीं होता है।
(b) ऐसे बलों के लिए स्थितिज ऊर्जा फलन (potential energy function) परिभाषित नहीं हो सकता।
(c) ऐसे बलों के अधीन सामान्यतः गतिज ऊर्जा में उत्तरोत्तर ह्रास होता है, जिसे पुनः स्थितिज ऊर्जा के रूप में प्राप्त नहीं किया जा सकता, अतः इन्हें क्षयकारी बल (dissipative forces) भी कहा जाता है।
(d) कुछ ऐसे भी असंरक्षी बल होते हैं, जो यांत्रिक ऊर्जा में वृद्धि करते हैं, जैसे विस्फोटी पटाखों के टुकड़े अत्यधिक गतिज ऊर्जा से इधर-उधर बिखर जाते हैं। रासायनिक अभिक्रियाओं के कारण उन्मुक्त बल असंरक्षी होते हैं; क्योंकि ये अभिक्रियाएँ उत्क्रमणीय (reversible) नहीं हैं। ]
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स्थितिज ऊर्जा की अभिधारणा (Concept of Potential Energy in hindi):
किसी वस्तु की स्थितिज ऊर्जा का अर्थ है उसमें संचित ऊर्जा ( stored energy) जिसके कारण वस्तु में कार्य करने की क्षमता (capacity) होती है। उदाहरण के लिए किसी खिंचे हुए (stretched) तीर-कमान की डोरी (string) में स्थितिज ऊर्जा संचित रहती है जो ढीला (relaxed) छोड़ देने पर तेजी से जाते हुए तीर में गतिज ऊर्जा (kinetic energy) के रूप में बदल जाती है। इसी प्रकार संकुचित स्प्रिंग (compressed spring) में भी स्थितिज ऊर्जा संचित रहती है।
स्थितिज ऊर्जा का अस्तित्व ( existence) केवल संरक्षी बलों (conservative forced) के अधीन होता है, असंरक्षी बलों (nonconservative forces) के लिए कदापि नहीं। जैसे पृथ्वी की सतह से किसी वस्तु को ऊपर ले जाने के क्रम में गुरुत्वीय बल द्वारा ऋणात्मक कार्य (= −mgx) संपादित होता है जो वस्तु में स्थितिज ऊर्जा में वृद्धि (= +mgx) के रूप में संचित रहता है। जब चाहें हम इस संचित स्थितिज ऊर्जा को गतिज ऊर्जा (kinetic energy) में बदल सकते हैं। पनबिजली शक्ति-संयंत्रों (hydroelectric power plant) में भी संचित ऊर्जा पानी की स्थितिज ऊर्जा का उदाहरण है।
ऊर्जा संरक्षण का सिद्धांत (Principle of Conservation of Energy):
ऊर्जा संरक्षण का सिद्धांत इस प्रकार है- विश्व में ऊर्जा का कुल परिमाण नियत रहता है। ऊर्जा न तो उत्पन्न की जा सकती है और न ही नष्ट हो सकती है; केवल उसका रूपांतर हो सकता है। यह भौतिकी का आधारभूत सिद्धांत है।
ऊर्जा का रूपांतर (Transformation of Energy):
किसी पिंड में कार्य करने की जितनी क्षमता (capacity) होती है उसे पिंड की ऊर्जा कहते हैं। ऊर्जा युक्त पिंड द्वारा कार्य करने के क्रम में उसकी ऊर्जा का ह्रास होता है जो अन्य प्रकार की ऊर्जा में रूपांतरित हो जाता है। ऊर्जा रूपांतरण के प्रारंभ तथा अंत में कुल ऊर्जा हमेशा नियत रहती है जिसे ऊर्जा संरक्षण का सिद्धांत कहते हैं ।
गुरुत्व के अधीन निर्बाध रूप से गिरते हुए पिंड की गति में, सरल लोलक की गति में तथा किसी कमानी (spring) के एक सिरे से बंधे पिंड की गति में गतिज एवं स्थितिज ऊर्जाओं के बीच परस्पर रूपांतरण होता है तथा इन ऊर्जाओं का कुल योग हमेशा नियत रहता है।
यांत्रिक ऊर्जा, अर्थात गतिज एवं स्थितिज ऊर्जाओं का संरक्षण तब मान्य होता है जब पिंड की गति किसी संरक्षी बल (conservative force) के अधीन हो रही हो । पिंड पर लगे हुए बल को संरक्षी (conservative) तब कहा जाता है जब बल द्वारा किया गया कार्य केवल पिंड की प्रारंभिक और अंतिम स्थितियों पर निर्भर करता है। वह बीच की किसी स्थिति अथवा किसी समय वेग के परिमाण तथा दिशा पर निर्भर नहीं करता है। उदाहरण के लिए, गुरुत्व-बल संरक्षी है और एक पिंड तथा पृथ्वी जो गुरुत्व-बल के अधीन एक-दूसरे पर क्रिया करते हैं, एक संरक्षी-निकाय (conservative system) बनाते हैं। अतः, संरक्षी-निकाय में स्थितिज ऊर्जा एवं गतिज ऊर्जा का योग हमेशा नियत रहता है।
यदि ऊर्जा का रूपांतर असंरक्षी बल (nonconservative force) के अधीन हो तब कुल यांत्रिक ऊर्जा संरक्षित नहीं रहती। उदाहरण के लिए, घर्षण-बल संरक्षी बल नहीं है। किसी रुक्ष (rough) नत समतल पर सरकते हुए पिंड की गतिज ऊर्जा और स्थितिज ऊर्जा का योग नियत नहीं रहता, बल्कि गति के क्रम में लगातार घटता रहता है। इसी प्रकार दो पिंडों के बीच अप्रत्यास्थ टक्कर में भी यांत्रिक ऊर्जा का ह्रास होता है। अब प्रश्न यह उठता है कि असंरक्षी बलों के अधीन जिस ऊर्जा का ह्रास होता है वह किस रूप में प्रकट होती है? स्पष्ट है कि घर्षण बल के अधीन यांत्रिक ऊर्जा का ह्रास ऊष्मा (heat) में तथा पिंडों की अप्रत्यास्थ टक्कर में यांत्रिक ऊर्जा, ध्वनि एवं ऊष्मा में रूपांतरित हो जाती है।
यांत्रिक ऊर्जा के अतिरिक्त ऊर्जा के अनेक रूप हैं, जैसे – कोयला, पेट्रोल आदि ईंधनों (fuels) की रासायिनक ऊर्जा (chemical energy), गर्म वस्तु की ऊष्मा (heat), आवेशित संधारित्र (charged capacitor) की विद्युतीय ऊर्जा (electrical energy ), दीप्त अंगारे की विकिरण ऊर्जा (radiant energy), परमाणु के नाभिक की नाभिकीय ऊर्जा (nuclear energy) आदि। इन ऊर्जाओं के रूपांतर के कुछ उदाहरण नीचे दिए गए हैं
(a) पृथ्वी की सतह से किसी वस्तु को उठाने के क्रम में पेशीय ऊर्जा (muscular energy) का रूपांतर स्थितिज ऊर्जा में होता है ।
(b) किसी पत्थर को फेंकने के क्रम में पेशीय ऊर्जा का रूपांतर गतिज ऊर्जा में होता है।
(c) गुरुत्व के अधीन निर्बाध रूप से गिरते हुए पिंड में स्थितिज ऊर्जा का रूपांतर गतिज ऊर्जा में होता है।
(d) दो पत्थरों के रगड़ने में या गाड़ी के घूमते हुए पहियों को ब्रेक लगाकर रोकने में गतिज ऊर्जा का रूपांतर ऊष्मा में होता है।
(e) भाप इंजन में ऊष्मा का रूपांतर गतिज ऊर्जा में होता है।
(f) श्वेत-तप्त धातु के पिंड में ऊष्मा का रूपांतर प्रकाश में होता है।
(g) फोटोग्राफिक प्लेट पर प्रकाश की रासायनिक प्रतिक्रिया में प्रकाश का रूपांतर रासायनिक ऊर्जा में होता है।
(h) ईंधन के ज्वलन में रासायनिक ऊर्जा का रूपांतर ऊष्मा में होता है।
(i) विद्युत अपघटन (electrolysis) में विद्युतीय ऊर्जा का रूपांतर रासायनिक ऊर्जा में होता है।
(j) संचायक सेल में रासयनिक ऊर्जा का रूपांतर विद्युतीय ऊर्जा में होता है।
(k) बिजली के हीटर में विद्युतीय ऊर्जा का रूपांतर ऊष्मा ऊर्जा में होता है।
(i) बिजली के बल्ब में विद्युतीय ऊर्जा का रूपांतर प्रकाश एवं ऊष्मा में होता है।
(m) बिजली के पंखे में विद्युतीय ऊर्जा का रूपांतर यांत्रिक ऊर्जा में होता है।
(n) डायनेमो अथवा टरबाईन में यांत्रिक ऊर्जा का रूपांतर विद्युतीय ऊर्जा में होता है।
(0) टेलीफोन अथवा विद्युत घंटी में विद्युतीय ऊर्जा का रूपांतर ध्वनि ऊर्जा में होता है।
(p) विद्युत-चुंबक (electromagnet) में विद्युतीय ऊर्जा का रूपांतर चुंबकीय ऊर्जा में होता है।
(q) ताप – वैद्युत युग्म (thermocouple) में ऊष्मा का रूपांतर विद्युतीय ऊर्जा में होता है।
(r) माचिस की तीली प्रज्वलित होने पर रासायनिक ऊर्जा का रूपांतर प्रकाश एवं ऊष्मा में होता है।
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द्रव्यमान एवं ऊर्जा समतुल्यता ( Mass and Energy Equivalence):

आइंस्टाइन के अनुसार द्रव्यमान को ऊर्जा में और ऊर्जा को द्रव्यमान में परिवर्तित किया जा सकता है। यदि द्रव्यमान m पूर्ण रूप से ऊर्जा में परिवर्तित हो जाए तो उत्पन्न तुल्य ऊर्जा E के लिए निम्नलिखित सूत्र मान्य है
E = mc² जहाँ, c निर्वात में प्रकाश की चाल है। इस सूत्र के अनुसार 1 g द्रव्यमान को ऊर्जा में परिवर्तित करने पर 9×10^13 J ऊर्जा प्राप्त होगी।
नाभिकीय अभिक्रियाओं, जैसे – नाभिकीय विखंडन (nuclear fission) तथा नाभिकीय संलयन (nuclear fusion) में अभिक्रिया के बाद कुल द्रव्यमान अभिक्रिया के पूर्व कुल द्रव्यमान से कम हो जाता है। द्रव्यमान में उत्पन्न यह ह्रास विभिन्न प्रकार की ऊर्जाओं के रूप में विमुक्त होता है। नाभिकीय रिएक्टरों में विद्युत ऊर्जा का उत्पादन नाभिकीय विखंडन से किया जाता है। सूर्य से उत्पन्न होनेवाली अपार ऊर्जा का स्रोत नाभिकीय संलयन (nuclear fusion) है जिसमें हलके नाभिक मिलकर अपेक्षाकृत भारी नाभिक बनाते हैं और द्रव्यमान का ह्रास ऊर्जा में रूपांतरित होता है।
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FAQ
ऊर्जा क्या है?
कार्य करने की क्षमता को ऊर्जा कहा जाता है।
ऊर्जा का SI मात्रक क्या है?
जूल ऊर्जा की SI इकाई है।
ऊर्जा कितने प्रकार की होती है?
यांत्रिक ऊर्जा दो प्रकार की होती है-
(a)गतिज ऊर्जा (kinetic energy)
(b)स्थितिज ऊर्जा ( potential energy)
द्रव्यमान एवं ऊर्जा समतुल्यता क्या है?
E = mc² , जहाँ, c निर्वात में प्रकाश की चाल है। इस सूत्र के अनुसार 1 g द्रव्यमान को ऊर्जा में परिवर्तित करने पर 9×10^13 J ऊर्जा प्राप्त होगी।
Conclusion
दोस्तों हमारा Blog….” ऊर्जा क्या है,सूत्र, उपयोग, गतिज ऊर्जा और स्थितिज ऊर्जा, ऊर्जा संरक्षण का सिद्धांत, ऊर्जा के स्त्रोत(Energy in hindi”)पढ़ने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद उम्मीद करता हूं कि इस आर्टिकल में आपको अपने सभी सवालों के जवाब मिल गए होंगे, फिर भी अगर आपके मन में कोई सवाल रह गया हो, तो आप हमसे Comments द्वारा पूछ सकते हैं.