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द्रव्यमान किसे कहते है, द्रव्यमान का सूत्र (ravyaman kise kahate hain

Dravyaman kise kahte hai-क्या आपने कभी सोचा है कि द्रव्यमान(Dravyaman kya hai)क्या है? क्या आप उत्सुक हैं कि भौतिक विज्ञानी द्रव्यमान को मापने के लिए किस सूत्र का उपयोग करते हैं? अगर ऐसा है, तो यह ब्लॉग पोस्ट आपके लिए है! हम द्रव्यमान की परिभाषा, इसे कैसे मापा जाता है, और इसके सूत्र पर चर्चा करेंगे। इस पोस्ट के अंत तक, आप वास्तव में समझ जाएंगे कि द्रव्यमान क्या(Dravyaman kya hai)है और सामान्य रूप से भौतिकी की बेहतर समझ होगी।

द्रव्यमान(Dravyaman kya hai)

“किसी वस्तु में निहित पदार्थ के परिमाण को उसका द्रव्यमान (mass) कहा जाता है। यह पदार्थ का एक मौलिक गुण है, जो उसके ताप, दाब और स्थान परिवर्तन पर निर्भर नहीं करता है।”

जड़त्वीय एवं गुरुत्वीय द्रव्यमान (Dravyaman kise kahate hain)

यदि दो वस्तुओं पर समान परिमाण के बल लगाए जाएँ तो उनमें उत्पन्न त्वरण के अनुपात से उन वस्तुओं के द्रव्यमानों का अनुपात प्राप्त होता है। इनमें यदि एक का द्रव्यमान मानक किलोग्राम ( standard kilogram) हो, तो दूसरी वस्तु का द्रव्यमान ज्ञात किया जा सकता है। इस प्रकार मापे गए द्रव्यमान को जड़त्वीय द्रव्यमान (inertial mass) कहा जाता है।

एक अन्य प्रकार से परिभाषित द्रव्यमान को गुरुत्वीय द्रव्यमान (gravitational mass) कहा जाता है। इसमें दो वस्तुओं के भार (weight) का अनुपात इनके गुरुत्वीय द्रव्यमानों के अनुपात के बराबर होता है। परंतु, दोनों ही प्रकार से परिभाषित द्रव्यमान बराबर होते हैं।

द्रव्यमान कैसे मापा जाता है(Dravyaman kaise mapa jata hai )

साधारण तुला या कमानीदार तुला (spring balance) से गुरुत्वीय द्रव्यमान की माप की जाती है। इन तुलाओं की सुग्राहिता (sensitivity) उतनी अधिक नहीं होती है। अधिक सुग्राहिता के लिए सूक्ष्ममापी तुला (microbalance) प्रयुक्त होते हैं जिसमें 10 balance) प्रयुक्त होते हैं जिसमें 10^ – 9 ग्राम की कोटि के द्रव्यमान मापे जा सकते हैं, परंतु इनकी भार क्षमता (load capacity) मिलिग्राम के कोटि से अधिक की नहीं होती है। अतिसूक्ष्म आवेशित कणों (जैसे आयन, इलेक्ट्रॉन, अल्फा कण आदि) के द्रव्यमान परोक्षविधि (indirect method) से द्रव्यमान स्पेक्ट्रमलेखी (mass spectrograph) द्वारा ज्ञात किए जाते हैं।

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इसके लिए आवेशित कणों के गति पथ के लंबवत चुंबकीय क्षेत्र आरोपित किया जाता है, जिससे ये कण वृत्तीय पथ में घूमने लगते हैं। कणों के वेग एवं वृत्तीय पथों की त्रिज्या ज्ञात करने पर इन कणों के द्रव्यमान का परिकलन किया जाता है। विशाल आकाशीय पिंडों ( celestial bodies); जैसे— ग्रहों, तारों आदि के द्रव्यमान ज्ञात करने के लिए न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण नियम का उपयोग किया जाता है।

लंबाई की माप (Measurement of Length)

किन्हीं दो बिंदुओं के बीच की दूरी को दो विभिन्न विधियों से मापा जा सकता है –

सीधी विधि (Direct method) —

सीधी विधि से लंबाई की माप एक मानक मीटर (standard metre) की छड़ से की जाती है। यदि किसी वस्तु की लंबाई इस मानक लंबाई की सात गुनी है तो कहा जाता है कि अमुक लंबाई सात मीटर है।

परोक्ष विधि (Indirect method) –

परोक्ष विधि का उपयोग बहुत ही सूक्ष्म या लंबी दूरियों के आकलन में किया जाता है। इनके लिए मानक मीटर के सापेक्ष सीधी तुलना संभव नहीं होती है। उदाहरण के लिए यदि किसी परमाणु का साइज (व्यास) अथवा पृथ्वी से किसी तारे की दूरी ज्ञात करनी हो, तो इन्हें मानक मीटर से सीधी तुलना (direct comparison) कर नहीं ज्ञात किया जा सकता है। इन दूरियों को मापने के लिए परोक्ष विधि प्रयुक्त होती है।

छोटी दूरियों के मात्रक :

अत्यंत छोटी लंबाइयों को व्यक्त करने के लिए निम्नांकित मात्रकों का प्रयोग किया जाता है –

  • (a) 1 मिलीमीटर (mm) = 10^-3 m. (उदाहरण के लिए, तार का व्यास = 1.67 mm.)
  • (b) 1 माइक्रोन = 1 माइक्रोमीटर (um) = 10^–6 m. (उदाहरण के लिए, लाल कणिकाओं का व्यास 10 माइक्रोन होता है।)
  • (c) 1 नैनोमीटर (nm) = 10^-9 m.
  • (d) 1 ऐंग्स्ट्रम (angstrom) = 1 À = 10^-8 cm = 1 À = 10^-10m
    प्रकाश के तरंगदैर्घ्य (wavelength) को ऐंग्स्ट्रम ( À ) और नैनोमीटर (nm) में व्यक्त किया जाता है।
  • (e) 1 फर्मी (fermi) = 1 फेम्टोमीटर (fm) = 10^-15 m.

यह मात्रक नाभिकीय दूरियों के मापन में प्रयुक्त होता है।

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अत्यंत बड़ी दूरियों के मात्रक :

अत्यंत बड़ी दूरियों को व्यक्त करने के लिए निम्नलिखित मात्रक उपयुक्त होते हैं

  • (a) 1 किलोमीटर (km) = 10^3 m.
  • (b) खगोलीय मात्रक (Astronomical unit, AU) – इसका मान सूर्य से पृथ्वी की माध्य दूरी के बराबर होता है। 1 खगोलीय मात्रक (AU) = 1.4960×10^11 m.
  • (c) प्रकाश वर्ष (Light-year) – यह एक वर्ष में प्रकाश द्वारा निर्वात में तय की गई दूरी के बराबर होता है।
  • 1 प्रकाश-वर्ष (1.y.) = 9.46×10^15 m.
  • (d) 1 पारसेक (parsec) = 308 ×10^16 m = 3.26 प्रकाश वर्ष (1.y.) ।

एक पारसेक वह दूरी है जिसपर पृथ्वी की कक्षा ( orbit) की माध्य त्रिज्या (mean radius) 1 आर्क सेकंड का कोण बनाती हो ।

समय की माप (Measurement of Time):

समय ( वास्तव में समयांतराल) की माप में ऐसी गति का उपयोग किया जाता है जो बार-बार स्वतः दुहराई जाती है, अर्थात प्रक्रिया आवर्त (periodic) होती है। पृथ्वी की दैनिक गति ऐसी ही एक आवर्त प्रक्रिया है जिसमें हम 1 दिन का समयांतराल ज्ञात करते हैं और इसे घंटा, मिनट और सेकंड में बाँटते हैं। पूर्व काल में किसी ऊर्ध्वाधर छड़ की छाया की लंबाई देखकर समय का अनुमान लगाया जाता था। इस सिद्धांत के आधार पर धूपघड़ी (sundial) का निर्माण हुआ।

गैलीलियो ने दोलक की गति से यह निष्कर्ष निकाला कि छोटे आयाम (amplitude) के दोलन के लिए आवर्तकाल समान रहता है। समयांतराल ज्ञात करने के लिए उन्होंने अपनी नब्ज की धड़कन (pulse beat) का उपयोग किया। यांत्रिक घड़ियों (mechanical clocks) में इसी प्रकार के दोलक प्रयुक्त होते हैं जो प्रत्येक प्रदोल (swing) में एक सेकंड का समय लेते हैं।

हाथघड़ी में संतुलन पहिया (balance wheel) आवर्त कंपन से समयांतराल की गणना की जाती है। यांत्रिक घड़ियों में आवर्तकाल, दोलक की लंबाई पर निर्भर करता है (Tx√I), अतः लंबाई कम रहने पर समयांतराल के अल्प मान की गणना की जा सकती है। परंतु, समयांतराल की एक न्यूनतम सीमा होती है, क्योंकि दोलक की लंबाई गोलक की त्रिज्या से कम नहीं की जा सकती। स्ट्रोबोस्कोपी विधि (stroboscopic method) द्वारा 1073 सेकंड की कोटि के समयांतराल ज्ञात किए जा सकते हैं। इलेक्ट्रॉनिक घड़ियों से समय की माप के लिए विद्युत दोलन के सिद्धांत का उपयोग किया जाता है।

पृथ्वी अपने अक्ष पर एक बार घूमने में जितना समय लेती है उसे सौर दिन (solar day ) कहते हैं, परंतु सूर्य से पृथ्वी की दूरी बदलने के कारण सौर दिन पूरे वर्ष में एकसमान नहीं रहता। अधिक परिशुद्धता (precision) के लिए क्वार्ट्ज क्रिस्टल घड़ियाँ प्रयुक्त होती हैं जिनकी यथार्थता (accuracy) 10′ में 1 होती है। इससे भी अधिक परिशुद्धता परमाणविक घड़ियों (atomic clocks) में होती है जो सीजियम परमाणु में उत्पन्न आवर्त कंपनों पर आधारित है।

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वृहत कोटि के समय की माप (Measurement of Large Order Time):

मानव इतिहास में समयांतराल की गणना शतकों (centuries) में की जाती है जबकि भूवैज्ञानिक (geologists) काल (era) की गणना सैकड़ों लाखों वर्षों के क्रम में करते हैं। ऐसा माना जाता है कि ब्रह्मांड का निर्माण लगभग 5×10^9 वर्ष पहले हुआ था। चट्टानों और जीवाश्मों (rocks and fossils) की आयु का आकलन रेडियोऐक्टिव विधि से किया जाता है। इतने बड़े समयांतराल की माप कार्बन काल-निर्धारण (carbon dating) से की जाती है जिसमें कार्बन के समस्थानिक 14C का उपयोग होता है।

14C की अर्ध-आयु 5600 वर्ष है तथा यूरेनियम-238 (238U) की अर्ध-आयु 4.5 × 10^9 वर्ष है। रेडियोऐक्टिव प्रक्रमों में किसी चट्टान में उपस्थित 238U अंततः 206Pb में बदल जाता है और 238 U तथा 206Pb के सापेक्षिक परिमाण की माप से चट्टान की आयु का आकलन होता है। पृथ्वी के विभिन्न भागों से प्राप्त चट्टानों की आयु ज्ञात करने से पृथ्वी की आयु का अनुमान (लगभग 4×10^9 वर्ष) लगाया जाता है।

FAQ?

भार क्या है?

किसी वस्तु पर पृथ्वी द्वारा लगाए गए गुरुत्वाकर्षण बल का मान भार होता है।

द्रव्यमान किसे कहते हैं?

“द्रव्यमान” शब्द का अर्थ किसी वस्तु या कण में मौजूद पदार्थ की मात्रा से है।

द्रव्यमान और भार में क्या अंतर है?

किसी वस्तु में पदार्थ की मात्रा को वस्तु का द्रव्यमान कहा जाता है। भार, या वह गुरुत्वाकर्षण बल जिससे पृथ्वी किसी वस्तु को अपने केंद्र की ओर खींचती है, वस्तु का भार कहलाता है

Conclusion

दोस्तों हमारा Blog….”द्रव्यमान किसे कहते है, द्रव्यमान का सूत्र (Dravyaman kise kahate hain)”पढ़ने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद उम्मीद करता हूं कि इस आर्टिकल में आपको अपने सभी सवालों के जवाब मिल गए होंगे, फिर भी अगर आपके मन में कोई सवाल रह गया हो, तो आप हमसे Comments द्वारा पूछ सकते हैं.

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