डॉप्लर प्रभाव (Doppler Prabhav Kya Hai ):
Doppler Prabhav Kya Hai-जब कभी प्रेक्षक (observer) तथा ध्वनि-स्रोत (source of sound) के बीच आपेक्षिक गति होती है तो प्रेक्षक को ध्वनि की आवृत्ति स्रोत की यथार्थ आवृत्ति से भिन्न लगती है। प्रेक्षक एवं ध्वनि स्रोत के बीच आपेक्षिक गति के कारण आवृत्ति में आभासी परिवर्तन ( apparent change) होने की घटना को डॉप्लर प्रभाव कहा जाता है।
दैनिक जीवन में डॉप्लर प्रभाव के उदाहरण : स्रोत की गति के कारण –
प्लेटफॉर्म पर खड़े प्रेक्षक को दूर से सीटी देता हुआ इंजन जब प्लेटफॉर्म या प्रेक्षक की ओर आता है तो सीटी की ध्वनि तीक्ष्ण (shrill) सुनाई पड़ती है जो सीटी की आवृत्ति में आभासी वृद्धि प्रदर्शित करता है। परंतु, इंजन जैसे ही प्लेटफॉर्म को पार करके प्रेक्षक से दूर जाने लगता है तो सीटी की ध्वनि का मोटा सुनाई पड़ना आवृत्ति में आभासी ह्रास (घट जाना) की घटना प्रदर्शित करता ।
प्रेक्षक की गति के कारण –
यदि प्रेक्षक किसी गतिशील वाहन (जैसे मोटरकार) में बैठकर किसी ध्वनि-स्रोत (जैसे मिल के सायरन) की ओर जाता हो, तो ध्वनि तीक्ष्ण सुनाई पड़ती है, अर्थात आवृत्ति में आभासी वृद्धि होती है तथा प्रेक्षक के स्रोत से दूर जाते समय ध्वनि मोटी हो जाती है, अर्थात आवृत्ति में आभासी ह्रास होता है।
स्पष्टतः, स्रोत एवं प्रेक्षक के बीच दूरी घटने के क्रम में आवृत्ति बढ़ जाती है तथा दूरी बढ़ने के क्रम में आवृत्ति घट जाती है।
डॉप्लर प्रभाव के कारण आभासी आवृत्ति का व्यंजक (Expression for the Apparent Frequency due to Doppler Effect):
डॉप्लर प्रभाव(Doppler Prabhav Kya Hai) के कारण आवृत्ति का आभासी मान ज्ञात करने के लिए यहाँ तीन विशेष अवस्थाओं पर विचार किया गया है। साथ ही यह माना गया है कि
(a) प्रेक्षक एवं ध्वनि-स्रोत की गति समरैखिक (collinear) है, अर्थात दोनों एक ही सरल रेखा पर गतिशील हैं।
(b) प्रेक्षक से स्रोत की दिशा में चाल धनात्मक (positive) है तथा विपरीत दिशा में ऋणात्मक (negative) है।
(c) ध्वनि तरंग की चाल सभी दिशाओं में धनात्मक (positive) है।
वायु स्तंभों का कंपन (Vibration of Air Columns):
बहुत-से वाद्य यंत्रों, जैसे सीटी, बाँसुरी (flute), क्लैरिनेट (clarinet), बिगुल आदि में वायु-स्तंभों के कंपन के कारण सुस्वर ध्वनियाँ उत्पन्न होती हैं। इन वाद्य यंत्रों की आकृतियाँ प्रायः नली (पाइप) की भाँति होती हैं। साधारणतः किसी भी नली (पाइप) में हवा वायुमंडलीय दाब (atmospheric pressure) पर रहती है। नली के एक सिरे पर फूँकने से नली के भीतर उस सिरे पर की हवा के दाब में अचानक परिवर्तन होता है जिससे नली के उस भाग की हवा में अनुदैर्घ्य तरंगें उत्पन्न होती है।
ये तरंगें नली के पूरे वायु-स्तंभ में फैल जाती हैं और संपीडन के रूप में नली के एक सिरे से दूसरे सिरे तक पहुँचती हैं, और फिर दूसरे सिरे से परावर्तित होकर प्रथम सिरे की ओर आती हैं। आपतित एवं परावर्तित तरंगों के अध्यारोपण से नली की हवा में अनुदैर्घ्य अप्रगामी तरंगें (longitudinal stationary waves) उत्पन्न होती हैं और वायु-स्तंभ से ध्वनि सुनाई देती है। नली में निस्पंदों (nodes) तथा प्रस्पंदों (antinodes) की भी रचना होती है।
वायु-स्तंभों के कंपनों का अध्ययन समान अनुप्रस्थ काट की नलियों (पाइपों) से किया जाता है। ये दो प्रकार की होती हैं— एक प्रकार की वे नलियाँ होती हैं जिनके दोनों ओर के सिरे खुले होते हैं, और दूसरी प्रकार की वे नलियाँ होती हैं जिनका एक सिरा खुला होता है और दूसरा बंद रहता है। इन्हें क्रम से खुले सिरे वाली नली (open end pipe) और बंद सिरे वाली नली ( closed end pipe) कहा जाता है।
ऑर्गन पाइप (Organ Pipe ):
ऑर्गन पाइप या ऑर्गन नली वायु-वाद्य यंत्र का सबसे सरल रूप है। इसमें लकड़ी या धातु की एक लंबी और चौड़ी नली AB होती है। सिरा B या तो बंद रहता है या खुला होता है। बंद सिरेवाली नली को बंद ऑर्गन पाइप तथा खुले सिरेवाली नली को खुला ऑर्गन पाइप कहा जाता है। जब नली में A की ओर से हवा फूँकी जाती है तो वह पाइप के अंदर की हवा को कंपित करती है।
इससे संपीडन (compression) तथा विरलन (rarefaction) के स्पंद (pulse) एकांतर क्रम और निश्चित वेग से पाइप के भीतर जाने लगती है। इस प्रकार पाइप की हवा में अनुदैर्घ्य तरंगें उत्पन्न होती हैं जो A से B की ओर जाती हैं और B पर परावर्तित होकर फिर A की ओर लौट जाती हैं। परावर्तित तथा सीधी तरंगों के अध्यारोपण ( superposition) के कारण पाइप की हवा में अप्रगामी तरंगें बनती हैं।
बंद ऑर्गन पाइप (Closed Organ Pipe ):
जब ऑर्गन पाइप का एक सिरा बंद और दूसरा खुला रहता है तो उसे बंद ऑर्गन पाइप या बंद नली ( closed pipe) कहा जाता है। खुले सिरे से फूँककर जब पाइप के अंदर हवा भेजी जाती है तब सबसे पहले खुले सिरे के निकट की हवा संपीडित होती है। यह संपीडन (compression) आगे की ओर चलकर बंद सिरे से परावर्तित होकर फिर खुले सिरे पर आता है। यहाँ पर संपीडन नली के बाहर खुली हवा में फैल जाता है, जिससे नली के मुँह पर की हवा विरलित (rarefied) हो जाती है।
इस विरलन के कारण नली के भीतर वाली कुछ हवा बाहर चली जाती है और नली के अंदर विरलन (rarefaction) होने लगता है। यह विरलन नली के बंद सिरे की ओर चलकर वहाँ से परावर्तित होता है और फिर खुले सिरे की ओर आता है। जब यह विरलन नली के खुले सिरे पर पहुँचता है तब बाहर की कुछ हवा भीतर की ओर खिंच जाती है।
इससे यह विरलन, संपीडन में बदल जाता है। फिर, यह संपीडन पहले की तरह बंद सिरे की ओर बढ़कर वहाँ से परावर्तित होता है। इस प्रकार बंद सिरे पर संपीडन और विरलन क्रमशः संपीडन और विरलन के रूप में ही परावर्तित होते हैं। परंतु, खुले सिरे पर संपीडन तथा विरलन क्रमशः विरलन तथा संपीडन के रूप में परावर्तित होते हैं। इस तरह एक ही प्रकार की दो तरंगों के अध्यारोपण ( superposition) से नली में अनुदैर्घ्य अप्रगामी तरंगें (longitudinal stationary waves) उत्पन्न होती हैं। खुले सिरे के निकट हमेशा प्रस्पंद (antinode) तथा बंद सिरे पर निस्पंद (node) बनते हैं।
खुला ऑर्गन पाइप (Open Organ Pipe ):
जब ऑर्गन पाइप के दोनों सिरे खुले रहते हैं तो यह खुला ऑर्गन पाइप या खुली नली (open pipe) कहा जाता है। इस प्रकार की नली में जब संपीडित तरंगें (compressed waves) खुले सिरे पर पहुँचती हैं तो उस स्थान की हवा क्षण भर के लिए संपीडित हो जाती है और सिरे पर हवा का दाब वायुमंडलीय दाब से अधिक हो जाता है। चूँकि पाइप का मुँह खुला है.
संपोडित हवा बाहर वायुमंडल में फैल जाती है जिससे भीतर की हवा का दाब अचानक कम हो जाता है और पीछे की हवा का विरलन (rarefaction) होता है | दाब बराबर करने के लिए विरलन का स्पंद पीछे की ओर लौटता है। जब विरलन दूसरे खुले सिरे पर पहुँचता है तब दाब की कमी को पूरा करने के लिए बाहर की हवा नली के भीतर आती है और विरलन संपीडन में बदल जाता है।
यह संपीडन पहले सिरे की ओर लौटता है। इस प्रकार आपतित तथा परावर्तित तरंगों के अध्यारोपण (superposition) से पाइप में अनुदैर्ध्य अप्रगामी तरंगें (longitudinal stationary waves) उत्पन्न होती हैं जिनमें प्रस्पंद (antinode) तथा निस्पंद (node) विशेष स्थानों पर होते हैं। खुले ऑर्गन पाइप में खुले सिरों पर हमेशा प्रस्पंद (antinode) होते हैं।
अंत्य संशोधन (End Correction):
नलियों (पाइपों) के खुले सिरे पर वायु को कंपन करने की अधिक स्वतंत्रता होती है, इसलिए वायु-स्तंभ के कंपन नलियों के खुले सिरे से कुछ आगे तक होते हैं। अतः, ध्वनि-तरंगों का परावर्तन नली के ठीक खुले सिरे पर न होकर उससे कुछ ऊपर (आगे) होता है। इसलिए प्रस्पंद, नली में ठीक सिरे पर न बनकर थोड़ा बाहर बनता है। फलस्वरूप नली के वायु-स्तंभ की प्रभावी के लंबाई थोड़ी बढ़ जाती है। इस कारण से होनेवाली अशुद्धि को अंत्य संशोधन (end correction) कहा जाता है। दूसरे शब्दों में नली के खुले सिरे से प्रस्पंद की दूरी ही अंत्य संशोधन है।
यदि नली की लंबाई l और अंत्य संशोधन का मान x हो, तो
बंद नली के लिए प्रभावी लंबाई = (l + x), तथा
खुली नली के लिए प्रभावी लंबाई = (l + 2x).
अंत्य संशोधन का मान नली के खुले सिरे के आकार पर निर्भर करता है। लॉर्ड रैले (Lord Rayleigh) ने अंत्य संशोधन का मान 0.6 r बताया, जहाँ r नली की भीतरी त्रिज्या है। अतः, मोटी नलियों के लिए अंत्य संशोधन का मान अधिक होता है।
अनुनाद नली: ध्वनि की चाल तथा स्वरित्र द्विभुज की आवृत्ति का निर्धारण (Resonance Tube: Determination of the Speed of Sound and the Frequency of a Tuning Fork):
अनुनाद नली एक बंद ऑर्गन पाइप (closed organ pipe) ही होती है जिसके अंदर वायु-स्तंभ की लंबाई पानी के तल को ऊपर-नीचे करके घटाई या बढ़ाई जा सकती है। अतः, उसके वायु-स्तंभ के कंपन की आवृत्ति, जो लंबाई पर निर्भर करती है, कम या अधिक की जा सकती है।
जब नली के ऊपर कंपित स्वरित्र द्विभुज के कंपनों की आवृत्ति, वायु-स्तंभ के कंपनों की स्वाभाविक आवृत्ति के बराबर हो जाती है तब नली से तीव्र ध्वनि सुनाई पड़ती है। यह स्वरित्र द्विभुज और वायु-स्तंभ के अनुनाद (resonance) के कारण होता है। इसी कारण इस नली को अनुनाद नली और उसके अंदर वायु-स्तंभ को अनुनादी वायु-स्तंभ तथा उपकरण को वायु अनुनाद-स्तंभ उपकरण ( air resonance column apparatus) कहा जाता है।
नली की आवृत्ति पर ताप और आर्द्रता का प्रभाव (Effect of Temperature and Humidity on Frequency of the Tube)
यदि नली या ऑर्गन पाइप के वायु-स्तंभों की आवत्ति v, नली के अंदर हवा में ध्वनि तरंगों की चाल v तथा तरंगदैर्घ्य λ हो, तो
v = v/λ
हम जानते हैं कि हवा में आर्द्रता बढ़ने पर हवा का घनत्व घट जाता है, अतः सूत्र v = √γp/ρ
से, हवा का घनत्व (ρ) कम होने पर उसकी चाल बढ़ जाती है। अब चूँकि λ पर घनत्व का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है इसलिए,ध्वनि की चाल बढ़ जाने पर (हवा में आर्द्रता होने के कारण) नली के वायु-स्तंभ की आवृत्ति बढ़ जाती है।
फिर, ताप (temperature) बढ़ने से ध्वनि की चाल भी बढ़ जाती है। वैसे λ का मान नली की लंबाई पर तो निर्भर करता है, परंतु ताप बढ़ने से नली की लंबाई में वृद्धि नगण्य होती है, अतः λ का मान अपरिवर्तित रहता है। अतः, ताप बढ़ने पर केवल ध्वनि की चाल बढ़ती है, इसलिए वायु-स्तंभ की आवृत्ति बढ़ जाती है।