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DNA क्या है, परिभाषा, DNA कुंडली की पैकेजिंग, DNA के कार्य, DNA का प्रतिकरण या द्विगुणन (What is DNA, Definition, Functions of DNA)

DNA कुंडली की पैकेजिंग (Packaging of DNA helix) —

DNA की लंबाई इसमें अवस्थित न्यूक्लियोटाइडों की संख्या पर निर्भर करती है, जैसे वाइरस 174 में 5386 न्यूक्लियोटाइड, वाइरस लैंब्डा में 48502, ई॰ कोलाई बैक्टीरिया में 4.6 x 10^6 एवं मनुष्य के अगुणित DNA में 3.3 x 10^9 नाइट्रोजनी बेस के जोड़े पाए जाते हैं। दो नाइट्रोजनी बेस जोड़े के बीच की दूरी, जो 3.4Å या 0.34 नैनोमीटर रहती है, की गणना कर DNA कुंडली की लंबाई मापी जाती है।

उदाहरण के तौर पर एक प्रारूपी स्तनधारी कोशिका में DNA कुंडली की लंबाई लगभग 2.2 मीटर (6.6 x 10^9 नाइट्रोजनी बेस युग्म × 0.34 × 10 मीटर प्रति बेस युग्म) रहती है। चूँकि केंद्रक की लंबाई से यह काफी अधिक है, अतः DNA एक खास पैकेजिंग के द्वारा इसमें अवस्थित रहता है।

प्रोकैरिओटिक जीवों, जैसे बैक्टीरिया में केंद्रक स्पष्ट नहीं रहता है एवं इनमें केंद्रकझिल्ली नहीं पाई जाती है। इसके बावजूद इनमें DNA पूरी कोशिका में फैला हुआ नहीं रहता है। ये कोशिका के मध्य में एक जगह कुछ प्रोटीन के साथ बँधकर अवस्थित रहते हैं। इस संरचना को केंद्रकाभ या न्यूक्लिऑएड (nucleoid) कहा जाता है। इसमें DNA बड़े लूपों की तरह सजे रहते हैं।

यूकैरिओटिक जीवों में केंद्रक स्पष्ट रहता है एवं यह केंद्रकझिल्ली से घिरा रहता है। केंद्रक के भीतर DNA (ऋणात्मक आवेशित) झारीय प्रोटीन (धनात्मक आवेशित) हिस्टोन्स (histones) से घिरा रहता है। आवेशित पार्श्व शृंखलाओं (charged side-chains) में मौजूद एमीनो अम्लों की बहुलता पर हिस्टोन प्रोटीन का आवेश निर्धारित होता है।

हिस्टोन में क्षारीय एमिनो अम्ल, जैसे आरजीनीन ( arginine), लाइसीन (lysine) आदि अधिक मात्रा में पाए जाते हैं। इन एमीनो अम्लों की पार्श्व शृंखलाओं पर धनात्मक आवेश रहता है। हिस्टोन (H) पाँच प्रकार के होते — H1, H2A, H2B, H3 एवं H4, H2A, H2B, H3 एवं H4 के दो-दो अणु मिलकर हिस्टोन अष्टक (histone octamer) बनाते हैं।

ऋणात्मक आवेशित DNA धनात्मक आवेशित हिस्टोन अष्टक को चारों ओर से लपेटे रहता है। हिस्टोन अष्टक कोर कण (core particle) बनाते हैं एवं इसके चारों ओर DNA के 146 न्यूक्लियोटाइड्स दो घेरा बनाए रहते हैं। इस संरचना को न्यूक्लियोसोम (nucleosome) कहते हैं।

एक न्यूक्लियोसोम में 200 नाइट्रोजनी बेस जोड़े की DNA कुंडली रहती है। हिस्टोन H1 के एक अणु हर 200 बेस जोड़े के बाद पाए जाते हैं। यह DNA से ढीले तौर पर जुड़ा (loosely associated) रहता है । DNA की द्विकुंडली हिस्टोन के साथ बँधकर दानेदार (beaded) संरचना बनाती है जो केंद्रक में अभिरंजित धागे की तरह (threadlike) दिखाई पड़ती है। इसे क्रोमेटीन कहते हैं।

क्रोमेटीन के धागे कोशिका विभाजन के पहले अस्पष्ट दिखाई पड़ते हैं। कोशिका विभाजन के मध्यावस्था या मेटाफेज (metaphase) में ये संघनित होकर मोटे गुणसूत्र की तरह दिखाई पड़ते हैं। उच्च स्तर पर क्रोमोसोम की पैकेजिंग के लिए हिस्टोन के अतिरिक्त अन्य प्रोटीन की आवश्यकता होती है जिसे सामूहिक तौर पर ननहिस्टोन क्रोमोजोमल प्रोटीन (nonhistone chromosomal proteins) कहा जाता है। एक प्रारूपी केंद्रक के अंदर कहीं-कहीं क्रोमेटीन ढीले तौर पर बँधे रहते हैं।

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इनमें अभिरंजन हलके रंग का होता है। इसे यूक्रोमेटीन (euchromatin) कहा जाता है। वैसे क्रोमोटीन, जो मजबूती से बँधे रहते हैं एवं गाढ़े रंग से अभिरंजित होते हैं, को हेटेरोक्रोमेटीन (heterochromatin) कहा जाता है। यूक्रोमेटीन को सक्रिय क्रोमेटीन एवं हेटेरोक्रोमेटीन को निष्क्रिय क्रोमेटीन भी कहा जाता है।

आधुनिक शोध के फलस्वरूप सूक्ष्म अंतरों के आधार पर कई प्रकार के DNA बताए गए हैं, जैसे A-form, B-form, C-form, D-form, E-form तथा Z-form, जिनमें B-form तथा Z-form मुख्य हैं। उपर्युक्त वर्णन B-form DNA पर आधारित है। B-form DNA एवं Z-form DNA में निम्नलिखित अंतर होते हैं।

B-DNA Z-DNA

  1. दाहिने हाथ की ओर घुमाव (right-handed coiling)
  2. सर्करा-फॉस्फेट का नियमित आधार (backbone)
  3. प्रत्येक घुमाव (helix) में 10 बेस पेयर्स (base pairs)
  4. ट्विस्ट (twist) का कोण 36°
  5. प्रत्येक घुमाव की कुल दूरी 34Å
  6. DNA अणु का व्यास 20Å
  7. आसपास वाली शर्करा के अणुओं की दिशा एक जैसी
  8. दो पास के नाइट्रोजन बेस पेयर के बीच की दूरी 3.4Å
  9. बाएँ हाथ की ओर घुमाव (left-handed coiling)
  10. शर्करा- फॉस्फेट का अनियमित (Z-आकार का) आधार (backbone)
  11. प्रत्येक घुमाव में 12 बेस पेयर्स (base pairs)
  12. ट्विस्ट (twist) का कोण 30°
  13. प्रत्येक घुमाव की कुल दूरी 45Å
  14. DNA अणु का व्यास 18Å
  15. आसपास वाली शर्करा के अणुओं की विपरीत दिशा
  16. दो पास के नाइट्रोजन बेस पेयर के बीच की दूरी 3.7Å

DNA का प्रतिकरण या द्विगुणन (Replication of DNA) —

DNA का प्रतिकरण या द्विगुणन (Replication of DNA)

DNA के प्रतिकरण से संबंधित निम्नलिखित तीन प्रकार के मत दिए गए हैं।

विक्षेपक मत (Dispersive theory) —

इस मतानुसार DNA का अणु कई स्थान पर टूट जाता है तथा टूटे हुए भाग स्वतंत्र रूप से द्विगुणन करते हैं। इसके उपरांत सभी स्ट्रैंड बेतरतीब रूप में (randomly) जुट जाते हैं जिसके फलस्वरूप पुराने तथा नए स्ट्रैंड दोनों ही आंशिक रूप से उपस्थित रहते हैं।

संरक्षी मत (Conservative theory) —

इस मत को माननेवाले वैज्ञानिकों के अनुसार जनक DNA के दोनों पॉलिन्यूक्लियोटाइट सुरक्षित रहते हैं एवं द्विगुणन से नए DNA स्ट्रैंड बनते हैं।

अर्धसंरक्षी मत (Semiconservative theory) —

इस मत को सबसे अधिक मान्यता प्राप्त है जो प्रयोगों पर आधारित है। इसमें DNA हेलिक्स के दोनों स्ट्रैंड द्विगुणन के पूर्व आंशिक रूप से अलग हो जाते हैं तब पृथक हुए ये दोनों स्ट्रैंड टेम्प्लेट (template) का कार्य करते हैं तथा इन्हीं के सहारे द्विगुणन की क्रिया संपन्न होती है, जिसके फलस्वरूप द्विगुणन के उपरांत दो स्ट्रैंड्स में एक पुराना होता है (जिसने टेम्प्लेट का कार्य किया ) तथा दूसरा नया होता है जिसके संश्लेषण के लिए सभी रासायनिक पदार्थ (शर्करा, फॉस्फेट, नाइट्रोजनी बेस तथा हाइड्रोजन परमाणु ) कोशिकाद्रव्य से प्राप्त किए जाते हैं ।

इस मत को सिद्ध करने के लिए मैथ्यु स्टैनली मेसेल्सन तथा फैंकलिम विलियन स्टाल के प्रयोग (Meselson – Stahl experiment) और टेलर (Taylor) के प्रयोगों का वर्णन निम्नलिखित है।

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मेसेल्सन-स्टाल का प्रयोगT —

इन वैज्ञानिकों ने 1958 में ई० कोलाई (E Coli) बैक्टीरिया को रेडियोधर्मी नाइट्रोजन (radioactive nitrogen) N^15 युक्त माध्यम में संवर्धित (culture) किया। इससे रेडियोधर्मी नाइट्रोजन बैक्टीरिया के DNA में पहुँच जाता है। मिश्रण को CsCl2 की उपस्थिति में सेण्ट्रीफ्यूज करके भारी DNA (N^15) को हल्का DNA (N^14) से पृथक कर लिया गया। इस प्रकार DNA के दोनों धागों में N^15 का समावेश कर दिया गया।

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अब इस प्रकार संवर्धित भारी DNA के अणु को सामान्य नाइट्रोजन (N^14) वाले माध्यम में द्विगुणन के लिए रखा गया। DNA (N^15) के दोनों स्ट्रैंड विकुंडलित (uncoiled) होने के उपरांत टेम्प्लेट बन गए और उसमें (N^14) के नए स्ट्रैंड बन गए। इस प्रकार पहली पीढ़ी में द्विगुणन के बाद 100% संकर (hybrid) DNA प्राप्त हुए (पुराना स्ट्रैंड N^15 का तथा नया N^14 का) अर्थात द्विगुणन अर्धसंरक्षी (semiconservative) हुआ। यदि द्विगुणन ऐसे ही चलता रहे तो दूसरी पीढ़ी में 50% संकर DNA प्राप्त होंगे, यानि चार में दो संकर N^15 तथा दो साधारण N^14 वाले और तीसरी पीढ़ी में दो संकर DNA होंगे, अर्थात आठ में दो संकर तथा छः सामान्य।

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टेलर का प्रयोग —

1957 में टेलर ने अपना प्रयोग विसिया फैबा (Vicia faba) पर करके यह सिद्ध किया कि DNA में द्विगुणन अर्धसंरक्षी विधि द्वारा होता है। उन्होंने ऑटोरेडियोग्राफी (autoradiography) तकनीक का इस्तेमाल कर नाइट्रोजनी बेस थाइमिन को लेबल (label) किया, अर्थात उसे रेडियोधर्मी बनाया। थाइमिन को लेबल इसलिए किया कि RNA में थाइमिन नहीं होता है।

अपितु उसके स्थान पर यूरेसिल होता है। टेलर ने द्विगुणन के लिए DNA को ऐसे माध्यम में रखा जिसमें H^3 उपस्थित था तथा जिसके फलस्वरूप tritiated thymidine (H^3-TdR) उत्पन्न हुआ जिससे DNA के दोनों स्ट्रैंड लेबल (radioactive) हो गए। अब इस DNA को साधारण माध्यम में स्थानांतरित कर दिया। मेसेल्सन के प्रयोग जैसा यहाँ भी द्विगुणन की पहली, दूसरी तथा तीसरी पीढ़ी में संकर DNA क्रमशः 100%, 50% तथा 25% प्राप्त हुआ। हर पीढ़ी के संकर DNA में एक स्ट्रैंड लेबल किया हुआ (labelled) था तथा दूसरा साधारण जिससे द्विगुणन की अर्धसंरक्षी क्रिया-विधि सिद्ध होती है।

वाटसन और क्रिक (Watson and Crick) ने भी DNA की द्विकुंडलिनी संरचना का वर्णन करते समय अर्धसंरक्षी प्रतिकरण का वर्णन किया। इनके अनुसार द्विगुणन के समय दोनों स्ट्रैंड एक-दूसरे से अलग हो जाते हैं एवं दोनों पुराना स्ट्रैंड टेम्प्लेट का कार्य कर दो संकर DNA के अणु बनाते हैं जिसमें एक स्ट्रैंड पुराना तथा एक स्ट्रैंड नया रहता है।

मेसेल्सन तथा स्टाल की परिकल्पना के अनुसार द्विगुणन के समय DNA के दोनों स्टैंड एक-दूसरे से पूर्णरूपेण अलग नहीं होते हैं। एंजाइम की उपस्थिति में दोनों स्ट्रैंड्स एक सिरे या अंतिम छोर से विकुंडलित हो जाते हैं फिर अपनी ओर नए न्यूक्लियोटाइड्स को आकर्षित कर जुड़ते हैं एवं इसके बाद कुंडलित हो जाते हैं। यह एक सतत क्रिया है जो आवश्यकतानुसार चलती है।

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DNA प्रतिकरण या द्विगुणन की विधि (Method of DNA replication)

DNA प्रतिकरण या द्विगुणन की विधि (Method of DNA replication)

द्विगुणन की क्रिया निम्नलिखित चरणों में संपन्न होती है।

प्रारंभन (Initiation) –

द्विगुणन की क्रिया किसी एक स्थान से, जैसे बैक्टीरिया एवं वाइरस में या अनेक स्थानों से, जैसे यूकैरिओट्स (eukaryotes) शुरू हो सकती है। ई० कोलाई में द्विगुणन बहुएंजाइम कम्प्लेक्स (multienzyme complex) द्वारा संपन्न होता है जिसे प्रतिकरण उपकरण (replication apparatus) या रेप्लिओसोम (replisome) कहते हैं। प्रतिकरण किसी खास बिंदु (उत्पत्ति-स्थल) से शुरू होकर एक या दोनों दिशाओं में हो सकता है।

कुंडली का खुलना (Unwinding of helix) —

द्विगुणन के पहले हाइड्रोजन बंध टूट जाते हैं एवं DNA के दोनों स्ट्रैंड एक-दूसरे से अलग हो जाते हैं। यह क्रिया हेलिकेज (helicase) एवं अन्य एंजाइमों की सहायता से होती है। सभी एंजाइमों को सम्मिलित रूप से टोपोआइसोमेरेज (topoisomerase) कहते हैं। रेप प्रोटीन (rep protein) का उपयोग भी विकुंडलन (uncoiling) में होता है।

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DNA के अणु के विकुंडलन से Y-आकार की शाखा (fork) बन जाती है जिसे प्रतिकरण शाखा (replication fork) कहते हैं। इस प्रकार DNA के विकुंडलित स्ट्रैंड को एक एस० एस० बी० प्रोटीन (single-strand binding protein) स्थिर (stabilize) करता है।

प्राइपर स्ट्रेंड्स का निर्माण (Formation of primer strands ) —

इस प्रकार DNA का अलग हुआ दोनों स्ट्रैंड टेम्प्लेट या फर्मा का कार्य करता है। इसके सामने लंबाई में बढ़नेवाला नया स्ट्रैंड या प्राइमर बनता है। प्राइमर RNA का छोटा-छोटा टुकड़ा होता है जो RNA पॉलिमेरेज (polymerase) और अन्य एंजाइमों की सहायता से बनता है।

नए स्ट्रैंड की लंबाई में वृद्धि (Elongation of new strand) —

पृथक DNA टेम्प्लेट के न्यूक्लियोटाइड्स अपने पूरक न्यूक्लियोटाइड्स को आकर्षित कर नए स्ट्रैड्स बनाते हैं। इस क्रिया में RNA प्राइमर प्रथम सीढ़ी का कार्य करता है। द्विगुणन सदैव 5′ से 3′ दिशा में होता है, परंतु दोनों टेम्प्लेट स्ट्रैंड्स के प्रतिसमानांतर (antiparallel) होने के कारण एक स्ट्रैंड की 5′ से 3′ दिशा होती है तो दूसरे स्ट्रैंड की 3′ से 5′ दिशा होती है नए न्यूक्लियोटाइड्स के निर्माण में DNA पॉलिमेरेज (DNA polymerase) एंजाइम भाग लेते ।

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संतत एवं अर्थसंतत प्रतिकरण (Continuous and semicontinuous replication) —

DNA का प्रतिकरण चूँकि दो दिशाओं में एक साथ होता है, इसलिए एक ही एंजाइम (DNA polymerase III) से यह क्रिया संभव नहीं है। इस कठिनाई को निम्नलिखित सुझाव से दूर किया गया है। DNA के उस स्टैंड में जहाँ से संश्लेषण आरंभ होता है, अर्थात अग्रज स्ट्रैंड (leading strand) में द्विगुणन 5’→ 3′ दिशा में (continuous) होता है, पर दूसरे स्टैंड या पश्चगामी स्ट्रैंड (lagging strand) में संश्लेषण छोटे-छोटे टुकड़ों के रूप में असंतत (discontinuous) होता है। इन टुकड़ों को ओकाजाकी फ्रेग्मेंट्स (Okazaki fragments) कहते हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि संश्लेषण 3’5′ की ओर हो रहा है, पर वास्तव में यह 5’→3′ की ओर ही होता है।

ओकाजाकी फ्रेग्मेंट्स की खोज ओकाजाकी (Reiji Okazaki) ने की थी। प्रत्येक टुकड़े में 1000 से 2000 नाइट्रोजनी बेस पेयर्स होते है। इन टुकड़ों को जोड़ने का काम DNA लाइगेज (DNA ligase) एंजाइम द्वारा होता है। अग्रज स्ट्रैंड DNA पॉलिमेरेज III एंजाइम तथा पश्चगामी स्टैंड DNA पॉलिमेरेज I एंजाइम की क्रियाशीलता से बनता है।

DNA के कार्य (Functions of DNA) —

DNA के निम्नलिखित कार्य हैं।

  1. आनुवंशिक गुणों का भंडार होने के कारण ये जीन के रूप में पैतृक गुणों का संचरण पीढ़ी-दर-पीढ़ी करते हैं।
  2. DNA प्रोटीन संश्लेषण के मुख्य संचालक हैं, क्योंकि इस क्रिया में प्रयुक्त होनेवाले विभिन्न RNA एवं एंजाइमों का निर्माण DNA से ही होता है।
  3. आणविक स्तर पर DNA में उत्परिवर्तन ( mutation) द्वारा पौधों की उन्नत रोग प्रतिरोधी ( disease resistant) एवं अधिक उपज देनेवाली जातियाँ (high-yielding varieties) उत्पन्न की गई हैं।
  4. बायोटेक्नोलॉजी की विधि से DNA के टुकड़ों से द्विगुणन द्वारा उन्नत DNA के अणु पैदा किए जाते हैं जिससे कई कठिन समस्याओं को सुलझाने में सहायता मिलती है।
  5. आनुवंशिकी अभियांत्रिकी (genetic engineering) द्वारा DNA के खंड को एक प्राणि की कोशिका से अलग कर किसी दूसरे प्राणी की कोशिका के DNA में प्रतिरोपित करने से आनुवंशिक रोगों के निदान में सफलता मिली है।

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