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संवहन (Convection), विकिरण ( Radiation ), थर्मस फ्लास्क (Thermos Flask ), कृष्ण पिंड (Black Body)

संवहन (Convection)

द्रव तथा गैस ऊष्मा के कुचालक होते हैं। इसलिए इन्हें चालन विधि द्वारा गर्म नहीं किया जा सकता। ये ऊष्मा के स्थानांतरण की एक दूसरी विधि द्वारा गर्म होते हैं जिसे संवहन (convection) कहते हैं।

जब किसी द्रव को गर्म किया जाता है तो इसके गर्म हुए भाग के आयतन में वृद्धि होती है। आयतन में वृद्धि होने से घनत्व में कमी होती है (अर्थात द्रव हलका हो जाता है) और द्रव ऊपर की ओर उठता है और उसका स्थान अगल-बगल का ठंडा (भारी) द्रव ले लेता है। पुनः यह भी गर्म होकर ऊपर उठता है। इस प्रकार संवहन धाराओं का निर्माण होता है और द्रव के गर्म होने की प्रक्रिया चलती रहती है।

द्रव में संवहन धारा से तब तक ऊष्मा का संचार होता रहता है जब तक संपूर्ण द्रव का ताप एक-सा नहीं होकर उबलने लगता है। इस प्रकार संवहन ऊष्मा के स्थानांतरण की वह विधि है जिसके द्वारा किसी तरल पदार्थ के कण स्वयं उस पदार्थ के गर्म भाग से ठंडे भाग की ओर चलकर ऊष्मा को उस पदार्थ के दूसरे भाग तक पहुँचाते हैं।

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विकिरण ( Radiation ):

विकिरण’ शब्द का अर्थ दो भिन्न प्रकार से लिया जाता है – एक प्रकार से विकिरण ऊष्मा के संचरण की वह प्रक्रिया है जिसमें ऊष्मा एक वस्तु से दूसरी वस्तु में सीधे संचरित हो जाती है तथा बीच के माध्यम को (यदि है) गर्म नहीं करती । सूर्य से पृथ्वी तक ऊष्मा का संचरण विकिरण प्रक्रिया से होता है। दूसरे रूप में विकिरण का तात्पर्य विकिरण ऊर्जा (radiant energy) से होता है जो प्रत्येक वस्तु से हर समय अपने ताप (0 K से ऊपर) के कारण सतत रूप से (continuously) उत्सर्जित होती रहती है । इस ऊर्जा को ऊष्मा – विकिरण (thermal radiation) भी कहा जाता है। आग के निकट गर्मी की अनुभूति इसी ऊष्मा – विकिरण के कारण होती है।

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यह ऊर्जा विद्युत-चुंबकीय तरंगों (electromagnetic waves) के रूप में प्रकाश की चाल ( 3 ×10^8 ms^-1) से गमन करती है। इन तरंगों के संचरण के लिए किसी द्रव्यात्मक माध्यम (material medium) की आवश्यकता नहीं होती है। जब ये तरंगें किसी अपारदर्शक पदार्थ के तल पर आपतित होती हैं तो ये अवशोषित होकर ऊष्मा में रूपांतरित हो जाती हैं। सूर्य से पृथ्वी के बीच लगभग 15 करोड़ किलोमीटर की दूरी है जिसका अधिकांश भाग निर्वात (vacuum) है। सूर्यग्रहण के समय प्रकाश के साथ-साथ ऊष्मा का संचरण भी घट जाता है। स्पष्टतः, ऊष्मा-विकिरण भी प्रकाश की चाल से संचरित होता है।

थर्मस फ्लास्क (Thermos Flask ):

थर्मस फ्लास्क काँच का एक विशेष प्रकार का पात्र है जिसमें बहुत देर तक गर्म वस्तु गर्म तथा ठंडी वस्तु ठंडी रहती है। इसका आविष्कार सर जेम्स डेवार (Sir James Dewar) नामक वैज्ञानिक ने किया था, इसलिए इसे डेवार फ्लास्क भी कहते हैं।

कृष्ण पिंड (Black Body):

जब किसी वस्तु पर विकिरण (radiation), अर्थात विकिरण ऊर्जा (radiant energy) आपतित होती है तो उसका कुछ भाग परावर्तित (reflected), कुछ भाग अवशोषित (absorbed) और शेष भाग संचरित (transmit) हो जाता है। यदि किसी वस्तु पर आपतित सभी तरंगदैय के विकिरण पूर्णतः वस्तु द्वारा अवशोषित हो जाएँ, अर्थात उसके पृथ्वी से आपतित विकिरण का कोई भी भाग न तो परावर्तित हो और न संचरित, तो ऐसी वस्तुओं को आदर्श कृष्ण पिंड (perfect black body) कहा जाता है।

कोई भी वस्तु पूर्णतः आदर्श कृष्ण पिंड नहीं होती हैं, उसपर आपतित विकिरण का कुछ अंश अवश्य परावर्तित होता है। कुछ सीमा तक दीप कालिख या काजल (lamp black) तथा प्लैटिनम की कालिख (platinum black) से लेपित सतह को कृष्ण पिंड माना जा सकता है यद्यपि इनपर आपतित विकिरण का एक अल्प अंश ( लगभग 1% ) परावर्तित हो ही जाता है।

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आदर्श कृष्ण पिंड एक पूर्ण अवशोषक (perfect absorber) के साथ एक पूर्ण विकिरक (perfect radiator) भी होता है। अतः, आदर्श कृष्ण पिंड को जब ऊँचे ताप तक गर्म किया जाता है तो यह सभी संभव तरंगदैर्घ्यं के विकिरण (radiations of all possible wavelengths) को उत्सर्जित करता है।

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