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सहलग्नता क्या है, आनुवंशिक सहलग्नता, सहलग्नता का गुणसूत्र सिद्धांत, सहलग्नता एवं विनिमय में अंतर

सहलग्नता (Linkage)

मेंडल के ‘स्वतंत्र अपव्यूहन के नियम’ (law of independent assortment) के अनुसार युग्मक वितरण के समय ऐलील स्वतंत्र रूप से अलग हो जाते हैं जिसके फलस्वरूप द्विसंकर क्रॉस की F, पीढ़ी में 9:3:3:1 का अनुपात प्राप्त होता है। यह तभी संभव है जब लक्षणों की जोड़ियाँ अलग-अलग असमजात क्रोमोसोम (nonhomologous chromosome) पर स्थित होती है।

एक ही क्रोमोसोम पर उपस्थित वे जीन अथवा ऐलील जो अर्धसूत्री-विभाजन के समय एक-दूसरे से बिना पृथक हुए उसी स्थिति में पीढ़ी-दर-पीढ़ी स्थानांतरित होते रहते हैं, एक-दूसरे से सहलग्न होते हैं ऐसी घटना को सहलग्नता कहते हैं।

मॉर्गन ने यह सिद्ध किया कि जनकीय जीन संयोजनों (parental gene combinations) का अनुपात अजनकीय (nonparental) प्रकार से बहुत अधिक होता है। उन्होंने इसका कारण दो जीनों का आपस में जुड़ा होना बताया।

इस घटना को सहलग्नता कहा गया तथा अजनकीय जीन संयोजनों (nonparental gene combinations) के उत्पादन को पुनर्योजन (recombination) कहा गया।

डब्ल्यू० बेटेसन एवं आर० सी० पनेट (W Bateson and R C Punnett) ने 1906 में मीठे मटर (Lathyrus odoratus) पर अपने प्रयोगों द्वारा यह देखा कि स्वतंत्र अपव्यूहन का सिद्धांत इसमें लागू नहीं होता है। इन्होंने बैंगनी फूल एवं लंबे परागकणों (purple flower and long pollen grains) वाले पौधे का संकरण लाल फूल एवं गोल परागकणों (red flower and round pollen grains) वाले पौधे से कराया। इस क्रॉस से F1 पीढ़ी के पौधे बैंगनी फूल एवं लंबे परागकणों वाले थे।

जब F1 पीढ़ी के पौधों के बीच क्रॉस करवाया गया तो F2 पीढ़ी में टेस्ट क्रॉस से 7:1:1:7 का अनुपात प्राप्त हुआ जो मेंडल के परिणाम से भिन्न थे। इसे इस प्रकार समझा जा सकता है

इस अप्रत्याशित परिणाम का स्पष्टीकरण देते हुए बेटेसन तथा पनेट ने कहा कि जब दो प्रभावी लक्षण (P एवं L) एक ही जनक से मिलते हैं, जैसा कि ( PPLL x pp11 ) के संकरण में हुआ, तब वे अगली पीढ़ियों में भी साथ-साथ रहते हैं तथा पृथक नहीं होते। इस क्रिया को युग्मन या कपलिंग (coupling) कहा गया। परंतु, यदि जीन P एवं L विभिन्न जनकों ( PP11 x ppLL ) से आते हैं तब वे अगली पीढ़ी के संतानों में पृथक हो जाते हैं। इस प्रक्रिया को विकर्षण या रिपलसन (repulsion) कहा गया । उनलोगों के अनुसार युग्मन तथा विकर्षण का संयुक्त रूप ही सहलग्नता है।

कोलंबिया विश्वविद्यालय के प्रसिद्ध वैज्ञानिक थॉमस हंट मॉर्गन ने ड्रोसोफिला मेलैनोगैस्टर (Drosophila melanogaster, or fruit fly) पर शोध-कार्य के समय सहलग्नता की खोज की। इस शोध कार्य के उपरांत मॉर्गन को 1933 में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

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ड्रोसोफिला में जो जीन आँख को रंग प्रदान करते हैं वे सदैव X क्रोमोसोम पर ही उपस्थित रहते हैं तथा X सहलग्नता (X linkage) दर्शाते हैं। X क्रोमोसोम एक लिंग क्रोमोसोम (sex chromosome) है इसी कारण इस क्रिया को लिंग सहलग्नता (sex linkage) भी कहते हैं।

ड्रोसोफिला में आँखों को लाल रंग प्रदान करनेवाले जीन प्रभावी या वाइल्ड (dominant or wild) कहलाता है तथा उत्परिवर्तन के बाद यह जीन अप्रभावी हो जाता है और इससे आँखों का रंग सफेद हो जाता है। मादा ड्रोसोफिला में दो X क्रोमोसोम (XX) होते हैं।

ये लिंग क्रोमोसोम रॉड के आकार के होते हैं। नर के लिंग क्रोमोसोम में एक X तथा दूसरा Y होता है। Y क्रोमोसोम X से बड़ा तथा हुक के आकार का होता है और यह जीनरहित होता है। इस प्रकार ड्रोसोफिला के द्विगुणित क्रोमोसोम संख्या (2n = 8) में छ: औटोसोम (autosome) तथा मादा में XX और नर में XY लिंग क्रोमोसोम होते हैं।

इस आधार पर ड्रोसोफिला में सहलग्नता के कारण आँखों को रंग प्रदान करनेवाले जीन चित्र द्वारा निरूपित किए जा सकते हैं। चूँकि Y क्रोमोसोम में कोई जीन नहीं होता इसी कारण इसे आधा जाइगोट या अर्द्धयुग्मजी (hemizygous) मानते हैं।

मॉर्गन ने अपने प्रयोगों से यह निष्कर्ष निकाला कि युग्मन (coupling) दर्शानेवाले जीन एक क्रोमोसोम में अलग-अलग, लेकिन एक-दूसरे काफी नजदीक उपस्थित होते हैं तथा विकर्षण (repulsion) दिखानेवाले जीन समजात क्रोमोसोम (homologous chromosome) में उपस्थित होते हैं। सहलग्नता दर्शानेवाले क्रोमोसोम में जीनों की व्यवस्था रैखिक (linear) रहती है।

सहलग्न जीन (linked gene) एक-दूसरे से जितने नजदीक रहेंगे, उनके बीच सहलग्नता उतनी ही मजबूत होगी। सहलग्न जीनों को विनिमय या क्रॉसिंग ओवर द्वारा अलग किया जाता है।

सहलग्नता या तो पूर्ण (complete) या अपूर्ण (incomplete) हो सकती है। पूर्ण सहलग्नता में सहलग्न जीन पीढ़ी-दर-पीढ़ी साथ-साथ रहते हैं जबकि अपूर्ण सहलग्नता होने पर सहलग्न जीन एक-दूसरे से अलग हो जाते हैं।

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मकई में सहलग्नता ( Linkage in maize) —

जॉन हचिन्सन (John Hutchinson) ने मकई में सफलतापूर्वक सहलग्नता को दर्शाया। उन्होंने रंगीन एवं एंडोस्पर्म (endosperm) से भरे बीजवाले पौधे तथा रंगहीन एवं सिकुड़े हुए बीजवाले पौधे में संकरण करवाया।

F1 पीढ़ी में उत्पन्न पौधों में सभी बीज रंगीन तथा एंडोस्पर्म से भरे रहे। जब F1 पौधों के बीच क्रॉस करवाया गया तो F2 पीढ़ी में 9 : 3 : 3 : 1 अनुपात न मिलकर पैतृक संयोजन (parental combination) वाले पौधे ज्यादा संख्या में मिले एवं पुनर्योजन (recombination) वाले पौधों की संख्या बहुत कम थी। इस क्रॉस में रंग पैदा करनेवाले जीन के ऐलीलो (C एवं c ) तथा भरपूर एंडोस्पर्म वाले जीन के ऐलीलो (S एवं s) के बीच अपव्यूहन (assortment) स्वतंत्र रूप में नहीं हुआ एवं पैतृक संयोजन वाले गुण बहुत अधिक पौधों में पाए गए।

सहलग्नता या लिंकेज वर्ग (Linkage group) —

सभी सहलग्न जीन एक ही क्रोमोसोम पर उपस्थित होते हैं, इसलिए लिंकेज वर्ग को अगुणित (haploid) क्रोमोसोम संख्या से ही निरूपित करते हैं, जैसे ड्रोसोफिला में 4 लिंकेज ग्रूप (n = 4) मक्के में 10 लिंकेज ग्रूप (n = 10), मटर में 7 लिंकेज ग्रूप (n = 7) आदि।

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प्रत्यक्ष एवं परोक्ष लिंकेज (Direct and indirect linkage) —

जो जीन पचास या इससे कम मैप युनिट्स (map units) की दूरी पर पाए जाते हैं, उनमें प्रत्यक्ष सहलग्नता होती है और जो पचास से अधिक मैप युनिट्स पर पाए जाते हैं उनमें परोक्ष सहलग्नता होती है । 1 map unit (centimorgan) = 1% recombination, मैप युनिट्स द्वारा मैप दूरी ( map distance) का अध्ययन होता है।

Map distance =Number of recombinations / Total number of progeny x100

मैप दूरी तथा सेंट्रोमीयर (centromere) पर स्थित तथा क्रोमोसोम पर रेखीय क्रम (linear order) में पाए जानेवाले सहलग्न जीन का अध्ययन करके लिकेज मैप (linkage maps) बनाए जाते हैं।

लिंकेज का प्रभाव (Effect of linkage) —

सहलग्नता का मुख्य प्रभाव यह पड़ता है कि पैतृक या जनक लक्षणों की संख्या अनुमानित संख्या से बहुत अधिक होती है तथा संकर या हाइब्रिड लक्षणों की संख्या बहुत कम हो जाती है, क्योंकि सहलग्नता के कारण वे एक-दूसरे से अलग नहीं होते। यही कारण है कि मेंडल के द्विसंकर क्रॉस के F2 पीढ़ी का अनुमानित समलक्षणी अनुपात (9 : 3 : 3 : 1) एवं टेस्ट क्रॉस का अनुपात (1 : 1 : 1 : 1) के स्थान पर 7:1:1:7 ‘पाया जाता है।

मेंडल के अनुसार इस अनुपात में जनकों की आवृत्ति (frequency ) 10/16 होनी चाहिए तथा संकरों की आवृत्ति 6/16 परंतु सहलग्नता द्वारा परिवर्तित अनुपात 7:1:1:7 में जनकों की आवृत्ति 14/16 तथा संकरों की आवृत्ति 2/16 ही होती है। ।

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लिंकेज का महत्त्व (Importance of linkage) —

सहलग्नता के अध्ययन से क्रोमोसोम में स्थित जीन्स की सही स्थिति तथा उनके बीच की दूरी का पता चलता है। पैतृक लक्षणों को एक साथ रखने में सहलग्नता सहायक होती है एवं संकर समुदाय में मूलजनक के लक्षणों को यह एक साथ रखने में सहायक होती है।

मॉर्गन के शिष्य स्टटविंट (Sturtevant) ने एक ही क्रोमोसोम के जीन युग्मों (gene pairs) की पुनर्योजन आवृति (recombination frequency) को जीनों के बीच की दूरी मानते हुए क्रोमोसोम में इनकी स्थिति का चित्र (recombination map) तैयार किया।

विनिमय या क्रॉसिंग ओवर (Crossing over) —

एक क्रोमोसोम में उपस्थित सभी जीन्स सामान्यतः रेखीय क्रम में स्थित रहते हैं एवं सहलग्न (linked) रहते हैं। सहलग्न जीनों का पुनर्योजन (recombination) जिस प्रक्रिया द्वारा होता है उसे विनिमय या क्रॉसिंग ओवर (crossing over) कहते हैं।

विनिमय अर्धसूत्री विभाजन की एक महत्त्वपूर्ण घटना है। मॉर्गन एवं कैसल (Morgan and Castle) ने 1912 में ‘क्रॉसिंग ओवर’ शब्द का नामकरण किया। इनलोगों के अनुसार क्रॉसिंग ओवर वह प्रक्रिया है जिसमें एक क्रोमोसोम पर स्थित जीनों का एक समूह सहजात क्रोमोसोम पर स्थित समान जीनों के समूह से स्थान परिवर्तित करता है। (Crossing over is a mechanism by which a group of genes on one chromosome changes its place with a similar group on its homologous chromosome.)

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क्रॉसिंग ओवर की क्रिया-विधि (Mechanism of crossing over) —

क्रॉसिंग ओवर की प्रक्रिया का आरंभ अर्धसूत्री विभाजन के प्रथम प्रोफेज (prophase I) की पैकीटीन (pachytene) अवस्था में होता है। इस अवस्था में समजात क्रोमोसोम युग्मों (pairs) में रहते हैं तथा प्रत्येक समजात क्रोमोसोम दो क्रोमेटिड्स (chromotids) में बँटा रहता है। इस प्रकार युगली (bivalents) चार क्रोमेटिड्स वाले होते हैं जो सेंट्रोमीयर (centromere ) द्वारा जुड़े रहते हैं।

इसे टेट्राड अवस्था (tetrad stage) भी कहते हैं। इस अवस्था में बीच के दो असमजाती क्रोमेटिड्स (non homologous chromatids) क्रॉसिंग ओवर में भाग लेते हैं जबकि किनारे वाले दो असमजाती क्रोमेटिड्स क्रॉसिंग ओवर में सामान्यतः भाग नहीं लेते हैं। भीतर वाले दो असमजाती क्रोमेटिड्स एक-दूसरे से एक या एक से अधिक स्थानों पर क्रॉस करते हैं । जहाँ पर क्रोमेटिड्स क्रॉस करते हैं उसे क्रॉस ओवर का स्थान कहते हैं । इसी के कारण काइएज्मा (chiasma, plural = chiasmata) उत्पन्न होते हैं।

काइएज्मा के स्थान पर क्रोमेटिड्स टूट जाते हैं एवं बाद में वे इस प्रकार जुड़ते हैं कि उनके पर समजात खंड (homologous segments ) का विनिमय ( exchange) हो जाता है। इस प्रकार के विनिमय से उत्पन्न युग्मक (gametes) चार प्रकार के होते हैं, दो जनक की तरह एवं दो पुनःसंयोजन (recombinations) वाले ।

पुनः संयोजन से विकास की क्रिया में सहायता मिलती है तथा नई जातियाँ (species) बनती हैं। यही लैंगिक जनन का आधार भी है। काइएज्मा पैकीटीन अवस्था में ही बन जाते हैं, डिप्लोटीन (diplotene) अवस्था में ये बहुत साफ दिखाई पड़ते हैं। काइएज्मा की संख्या इस बात पर निर्भर करती है कि युगली कितना लंबा है, जैसे भिसिया फावा (Vicia faba) के सबसे लंबे युगली में इसकी संख्या लगभग 10 रहती है। युगली के किनारे पर अवस्थित काइएज्मा को टर्मिनल काइएज्मा (terminal chiasma) तथा बीच में पाए जानेवालों को इंटरकैलेरी (intercalary) काइएज्मा कहते हैं।

क्रॉसिंग ओवर का महत्त्व (Importance of crossing over) —

जीवों की नई जातियों के विकास में क्रॉसिंग ओवर का बहुत ही महत्त्व है। इसी प्रक्रिया के चलते माता तथा पिता के लक्षणों को विनिमय होता है जिसके फलस्वरूप अच्छे गुणोंवाली संतान उत्पन्न होती है। क्रॉसिंग ओवर एवं जीनों के पुनः समायोजन के कारण ही लैंगिक जनन करनेवाले जीवों में विभिन्नताएँ (variations) उत्पन्न होती है। इसी आधार पर संकरण (hybridizations) द्वारा अधिक महत्त्ववाले नए जीन संयोजन पैदा किए जाते हैं। क्रॉसिंग ओवर की आवृति से क्रोमोसोम का मानचित्र (mapping) तैयार किया जाता है।

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