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वंशावली विश्लेषण (Pedigree analysis), मेंडलीय विकार (Mendelian disorders), गुणसूत्रीय विकार क्या है.

वंशावली विश्लेषण (Pedigree analysis)

आप जानते हैं कि कुछ ऐसे गुण या बीमारियाँ होती हैं जो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक चलती रहती हैं। दो या दो से अधिक पीढ़ियों तक पाए जानेवाले आनुवंशिक गुणों (genetic traits) की वंशागति का चित्र द्वारा प्रदर्शन वंशावली (pedigree) कहलाता है।पुराने समय से ही वंशागत विकारों के बारे में मानव को जानकारी थी, लेकिन इसके अध्ययन एवं विश्लेषण का इतिहास मेंडल के नियमों की खोज के बाद आरंभ हो सका।

कई पीढ़ियों तक पाए जानेवाले आनुवंशिक लक्षणों के विश्लेषण को वंशावली विश्लेषण (pedigree analysis) कहते हैं। इसके तहत एक खास लक्षण का वंश वृक्ष (family tree) में पीढ़ी-दर-पीढ़ी विश्लेषण किया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य मानव में आनुवंशिक रोगों का पता लगाना है। इसके लिए कुछ प्रतीकों (symbols) का प्रयोग किया जाता है।

आप यह जान चुके हैं कि किसी भी जीव का हर लक्षण उसके शरीर में पाए जानेवाले क्रोमोसोम में अवस्थित जीन द्वारा निर्धारित होता है। जीन वस्तुतः DNA के खंड होते हैं जो आनुवंशिक गुणों के वाहक होते हैं। सामान्यतः यह बिना किसी परिवर्तन के एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में स्थानांतरित होते रहते हैं, लेकिन उत्परिवर्तन के चलते इनमें रूपांतरण भी हो सकते हैं। क्रोमोसोम के स्तर पर या जीन के स्तर पर होनेवाले उत्परिवर्तन से विभिन्न आनुवंशिक विकार (genetic disorder) उत्पन्न होते हैं।

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मेंडलीय विकार (Mendelian disorders)

विभिन्न प्रकार के विकारों को दो वर्गों में बाँटा जा सकता है

मेंडलीय विकार एवं क्रोमोसोमीय विकार। मुख्यतः एकल जीन के उत्परिवर्तन से मेंडलीय विकार निर्धारित होते हैं। संतति में ये विकार उसी तरीके से पहुँचते हैं जिसका अध्ययन वंशागति के सिद्धांतों में किया गया है। इस प्रकार के विकारों को वंशावली विश्लेषण द्वारा खोजा जा सकता है। हीमोफिलिया, वर्णांधता, सिकल सेल एनिमिया (sickle-cell anaemia), फीनाइल- कीटोन्यूरिया (phenylketonuria), थैलेसीमिया (thalassaemia) आदि इसके उदाहरण हैं। ये मेंडलीय विकार प्रभावी या अप्रभावी भी हो सकते हैं।

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इस विकार का स्थानांतरण लिंग-क्रोमोसोम के माध्यम से भी हो सकता है जैसा कि आपने हीमोफिलिया एवं वर्णांधता में पढ़ा X क्रोमोसोम से संलिप्त अप्रभावी लक्षण वाहक मादा ( carrier mother) द्वारा नर संतति में पहुँचता है। वंशावली द्वारा इसे आसानी से दर्शाया जा सकता है।

हीमोफिलिया एवं वर्णांधता का विवरण पहले दिया जा चुका है। सिकल सेल एनिमिया एवं फीनाइल कीटोन्यूरिया का संक्षिप्त वर्णन यहाँ दिया जा रहा है।

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सिकल सेल एनिमिया (Sickle-cell anaemia) —

यह एक अलिंग-सहलग्न अप्रभावी लक्षण (autosome-linked recessive trait) है जिसमें मानव रुधिर के लाल रूधिर कोशिकाओं (RBC) के आकार में परिवर्तन हो जाता है। सामान्य RBC अणु, जो उभयातल (biconcave) बिंब (disc) की तरह होते हैं, रूपांतरित

होकर दात्राकार या हँसिए की तरह (sickle-shaped) हो जाते हैं। इससे दात्र कोशिका में अरक्तता उत्पन्न हो जाती है।

यह रोग (विकार) जनकों से संतति में तभी स्थानांतरित होता है जबकि दोनों जनक इस विकार के लिए जिम्मेवार जीन के वाहक होते हैं। ऐलील का एक जोड़ा (Hb^ एवं Hb) इस रोग का नियंत्रण करता है। रोग का लक्षण समयुग्मजी स्थिति (homozygous condition) में ही परिलक्षित होता है। वैसे व्यक्ति जिनके जीनोटाइप समयुग्मजी (Hb HbS) होंगे उसमें यह रोग परिलक्षित होगा जबकि विषमयुग्मजी (heterozygous) व्यक्ति (Hb’ HbS) में यह रोग दिखाई नहीं पड़ेगा हालाँकि ये रोग के वाहक होते हैं। इससे संबंधित जीन में जब उत्परिवर्तन होता है तो इस रोग के संतति में स्थानांतरित होने की संभावना 50 प्रतिशत रहती है। इस रोग के होने का मुख्य कारण हीमोग्लोबिन अणु के एक एमीनो अम्ल (ग्लूटैमिक अम्ल) का वैलीन द्वारा प्रतिस्थापन होना है। यह बीटा ग्लोबिन जीन के छठे कोडोन GAG का GUG में उत्परिवर्तित होने से होता है।

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फीनाइलकीटोन्यूरिया (Phenylketonuria) —

यह भी एक अलिंग-सहलग्न अप्रभावी लक्षण (autosome linked recessive trait) है। इस जन्मजात उपापचयी रोग में मनुष्य के शरीर में फीनाइलऐलेनीन (phenylalanine) एमीनो अम्ल जमा होता रहता है। यह फीनाइलपाइरूविक अम्ल तथा अन्य रूपों में परिवर्तित होता रहता है। मानव वृक्क द्वारा इसका कम अवशोषण होने के कारण ये मूत्र के साथ उत्सर्जित होते रहते हैं।

शरीर में इसके जमा होने से मानसिक दुर्बलता उत्पन्न होती है। फीनाइल ऐलेनीन के शरीर में एकत्रीकरण का मुख्य कारण इसको टाइरोसीन एमीनो अम्ल में रूपांतरित करनेवाले एंजाइम से संबंधित जीन में उत्परिवर्तन होना है। इसके फलस्वरूप आवश्यक एंजाइम का निर्माण नहीं हो पाता है एवं फीनाइल ऐलेनीन का शरीर में जमाव होने लगता है।

गुणसूत्रीय विकार के उदाहरण (Examples of Chromosomal Disorders) —

विभिन्न प्रकार के गुणसूत्रीय उत्परिवर्तन के बारे में आप जान चुके हैं। मानव शरीर में पाए जानेवाले 23 जोड़े क्रोमोसोम की संख्या या संरचना में किसी प्रकार के परिवर्तन से यह विकार उत्पन्न होता है।

कोशिका विभाजन के समय क्रोमेटिड के विसंयोजन में होनेवाली गड़बड़ी से संतति कोशिका में एक क्रोमोसोम की कमी या वृद्धि हो जाती है। इसके फलस्वरूप मनुष्य में जन्मजात रोग उत्पन्न हो जाते हैं। इसका मुख्य उदाहरण टर्नर्स सिंड्रोम, डाउन सिंड्रोम, क्लाइनफेल्टर सिंड्रोम आदि हैं।

टर्नर्स सिंड्रोम (Turner’s syndrome) —

जब मनुष्य के द्विगुणित क्रोमोसोम में से एक की कमी हो जाती है तो यह सिंड्रोम उत्पन्न होता है। इस प्रकार यह मोनोसोमी (2n – 1) का उदाहरण है। इसमें मानव शरीर में क्रोमोसोम की संख्या 45 रह जाती है।

यह संलक्षण नारियों में पाया जाता है। इस संलक्षण में नारियों के अंडाशय (ovary) अपरिपक्व (immature) होते हैं तथा इनमें द्वितीयक लैंगिक लक्षणों (secondary sexual characters) का अभाव रहता है। ऐसी स्त्रियाँ बाँझ होती हैं यानि बच्चे पैदा करने की क्षमता इनमें नहीं रहती है।

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डाउन्स सिंड्रोम (Down’s syndrome) —

जब मनुष्य के 21वीं जोड़े के क्रोमोसोम में एक क्रोमोसोम की वृद्धि हो जाती है तो डाउन संलक्षण, या डाउन्स सिंड्रोम नामक बीमारी बच्चों में उत्पन्न होती है। इस प्रकार यह ट्राइसोमी (2n+1) का उदाहरण है। इस प्रकार के रोगी की हर कोशिका में 47 क्रोमोसोम पाए जाते हैं। हालाँकि मानव कोशिका का 21वाँ क्रोमोसोम सबसे छोटा होता है, लेकिन इसकी संख्या में एक की वृद्धि होने के चलते रोगी का कद छोटा, सिर गोल, जीभ मोटा एवं मुँह आंशिक तौर पर खुला रहता है। ऐसे रोगी मंदबुद्धि होते हैं तथा श्वास-संबंधी संक्रमण इनमें आसानी से हो जाता है।

इनकी हथेली असामान्य रहती है एवं इनके हृदय में दोष रहता है। लैंगडन डाउन (Langdon Down) ने 1866 में इस विकार की खोज की, इसलिए इसे डाउन संलक्षण कहा जाता है। इस रोग से ग्रसित बच्चे देखने में मंगोलियन (mongolian race) के समान लगते हैं, इसलिए इसे मंगोलियन संलक्षण भी कहते हैं। सामान्यतः ऐसे बच्चे 8 से 12 वर्ष की उम्र तक ही जीवित रहते हैं।

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क्लाइनफेल्टर्स सिंड्रोम (Klinefelter’s syndrome) —

यह भी ट्राइसोमी का एक उदाहरण है, लेकिन इसमें लिंग-क्रोमोसोम X की एक अतिरिक्त प्रतिलिपि के मौजूद रहने के चलते मानव कोशिका में 47 क्रोमोसोम (44+XXY) हो जाता है। यह संलक्षण पुरुषों में पाया जाता है जो देखने में सामान्य लगते हैं, लेकिन इनमें मादा लक्षण परिलक्षित होते हैं, जैसे स्त्री की भाँति वक्ष की वृद्धि। ऐसे पुरुष प्रायः बाँझ होते हैं, क्योंकि इनमें शुक्राणु बहुत कम बन पाते हैं।

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