युग्मक क्या है (Yugmak kise kahate hain)
Yugmak kise kahate hain-जननांगों (reproductive organs) में युग्मकों (gametes) के बनने की क्रिया को युग्मकजनन (gametogenesis) कहते हैं। युग्मक दो प्रकार के होते हैं जिसे नर युग्मक (male gamete), अर्थात शुक्राणु (sperm) तथा मादा युग्मक (female gamete), अर्थात अंडा (ova, or egg) कहते हैं। नर-जनन अंग, अर्थात वृषण (testis) में शुक्राणुओं के बनने की क्रिया को शुक्राणुजनन (spermatogenesis) कहते हैं।
मादा-जनन अंग, अर्थात अंडाशय (ovary) में अंडों (ova) के बनने की क्रिया को अंडजनन (oogenesis) कहते हैं। शुक्राणु एवं अंडा दोनों की उत्पत्ति आदि जनन-कोशिका (primordial germ cell) से प्रारंभिक भ्रौणिक परिवर्धन (early embryonic development) के क्रम में एक्सट्राएमब्रायोनिक मिसोडर्म (extraembryonic mesoderm) से होती है, जो परिवर्धित होते भ्रूणों के जननांगों में स्थानांतरित हो जाती है और परिवर्धन के सभी अग्रिम क्रियाओं को पूरा करता है।
मनुष्य में शुक्रजनन का 11-13 वर्ष की आयु के लड़के के वृषण की शुक्राणुजनन नलिकाओं (seminiferous tubules) में प्रारंभ होती है। अंडजनन की क्रिया 9–11 वर्ष की आयु वाली लड़की के अंडाशय (ovary) के फॉलिकिल (follicle) में प्रारंभ हो जाती है।
शुक्राणुजनन (Spermatogenesis in hindi)
Yugmak kise kahate hain-शुक्राणुओं का विकास कुछ आदिबीजकोशिकाओं (primordial germ cells) से होता है। यह क्रिया तीन अवस्थाओं गुणन की अवस्था (phase of multiplication), वृद्धि की अवस्था (phase of growth) तथा परिपक्वता की अवस्था (phase of maturation) में पूरी होती है।
आदिबीजकोशिकाएँ पहले गुणन की अवस्था में प्रवेश करती है। इस क्रिया में बार-बार विभाजित होकर ये शुक्राणुकोशिकाजन (spermatogonia) बनाती है। इसमें कुछ शुक्राणुकोशिकाजन A तथा बाकी सभी शुक्राणुकोशिकाजन B का निर्माण करता है।
यहाँ शुक्राणुकोशिकाजन A एक साथ मिलकर शुक्राणु कुल (spermatogenic lineage) बनाता है जबकि शुक्राणुकोशिकाजन B परिवर्तित होकर प्राथमिक शुक्राणुकोशिका (primary spermatocyte) का रूप धारण करता है। प्राथमिक शुक्राणुकोशिका बड़ा तथा द्विगुणित (diploid) अथवा 2N, अर्थात 44 + XY ( कुल 46) क्रोमोसोम की संरचना रखता है।
प्राथमिक शुक्राणुकोशिका जल्द ही ह्रास या मीओसिस विभाजन (meiotic division) में प्रवेश कर प्रोफेज अवस्था की लेप्टोटीन, जायगोटीन, पैकीटीन, डिप्लोटीन तथा डायकिनेसिस उप-अवस्थाओं से होकर गुजरती है। प्रोफेज की यह लंबी अवस्था अब मेटाफेज, एनाफेज तथा टेलोफेज से होती हुई मीओसिस विभाजन की क्रिया को पूरी करती है।
विभाजन की इस अवस्था से सभी पुत्री कोशिकाएँ छोटी होती हैं तथा परवर्ती शुक्राणुकोशिकाएँ (secondary spermatocytes) कहलाती है। ये सभी कोशिकाएँ अगुणित ( haploid) होती हैं तथा 22+ X अथवा 22+Y (कुल 23) क्रोमोसोम संख्या की बनी होती है।
अब सभी परवर्ती शुक्राणुकोशिकाएँ मीओसिस II की अवस्था में प्रवेश करती है तथा पूर्वशुक्राणुओं ( spermatids) को बनाती है। इस प्रकार प्रत्येक शुक्राणुकोशिकाजन B कुल 4 अगुणित पूर्वशुक्राणुओं (4 haploid spermatids) का निर्माण करती है।
ये फिर विभाजित नहीं होते और शुक्राणुओं (sperms) में रूपांतरित हो जाते हैं। पूर्वशुक्राणुओं के शुक्राणुओं में रूपांतरण को शुक्राणु-रूपांतरण (spermiogenesis) कहते हैं। गोलाकार पूर्वशुक्राणु लंबा हो जाता है। उसमें एक गर्दन ओर एक पूँछ भी बन जाती है।
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शुक्राणु के निम्नलिखित भाग हैं।
(i) सिर जिसमें केंद्रक रहता । इसके ऊपरी भाग में गॉल्जीकाय से बना एक्रोसोम ( acrosome) होता है, जो निषेचन के समय शुक्राणु को मादा युग्मक में प्रवेश करने में सहायता करता ।
(ii) ग्रीवा में सेंट्रओल रहता है।
(iii) मध्यभाग (middle piece) में माइटोकॉण्ड्रिया है।
(iv) पूँछ (tail) कोशिकाद्रव्य से बना होता है एवं शुक्राणु को सक्रिय एवं गतिशील बनाए रखता है। इसके मध्यभाग में एक्सोनिम (axoneme) होता है जो पूँछ से बाहर निकला रहता है।
एक वयस्क नर में प्रतिदिन करीब 10^12 से 10^13 शुक्राणुओं का निर्माण होता है, जो अधिवृषण (epididymis) में पहुँचकर परिपक्व होकर संचित रहता है।
शुक्राणुजनन पर हॉर्मोन का नियंत्रण (Hormonal control of spermatogenesis )
अंतराली कोशिकाएँ (interstitial cells) अथवा लाइडिग की कोशिकाएँ (Leydig cell) टेस्टोस्टेरॉन (testosterone) हॉर्मोन स्रावित करती हैं जिसकी आवश्यकता शुक्राणु के निर्माण में होती है। अंतराली कोशिकाएँ (या लाइडिग कोशिका) अंतराली कोशिका उत्तेजक हॉर्मोन (ICSH) नामक हॉर्मोन का लक्ष्म कोशिकाएँ हैं। यह पिट्यूटरी ग्रंथि (pituitary gland) के अग्र पालि से निकलती है एवं ल्यूटीनाइजिंग हॉर्मोन (LH) तथा फॉलिकिल उत्तेजक हॉर्मोन (FSH) के समरूप होती है।
फॉलिकिल उत्तेजक हॉर्मोन एवं टेस्टास्टेरॉन के नियंत्रण में सर्टोली की कोशिकाएँ ऐंड्रोजेन बाइंडिंग प्रोटीन (ABP) का स्रावण करती है, जो टेस्टोस्टेरॉन हॉर्मोन की सांद्रता को शुक्राणु नलिकाओं (seminiferous tubules) में बढ़ा देता है। सर्टोली की कोशिकाएँ भी इनहीबिन (inhibin) नामक एक अन्य प्रोटीन का स्रावण करती है जो FSH के बनने की क्रिया को धीमी कर देती है।
FSH सीधे शुक्राणु कोशिकाजन को प्रभावित कर शुक्राणु बनाता है। इस क्रिया को प्रभावकारी बनाने में LH नामक हॉर्मोन का सहयोग मिलता है, जो टेस्टोस्टेरॉन के संश्लेषण में प्रयोजनीय है। LH अथवा ICSH का नियंत्रण हाइपोथैलस से स्रावित होनेवाला हाइपोथैल्मिक गोनैडोट्रॉपिन रिलिजिंग हॉर्मोन (GnRH) के द्वारा होता है।
यहाँ यह स्मरणीय है कि टेस्टोस्टेरॉन का स्तर ऋणात्मक पुनर्भरण (feedback) क्रिया के नियंत्रण में होता है। इससे यह स्पष्ट है कि टेस्टोस्टेरॉन का बढ़ता स्तर हाइपोथैल्मिस से GnRH के स्रावित होने की क्रिया को धीमा (suppress) करता है।
अंडजनन (Oogenesis)
अंडाशय में अंडे के निर्माण की प्रारंभिक क्रियाएँ शुक्रानुजनन के पहले से आरंभ हो जाती हैं। भ्रूण (foetus) सप्ताह की अवस्था में मीटोसिस 25 (mitosis) के द्वारा सभी डिंबकोशिकाजन (oogonia) का निर्माण कर लेता है जिसकी संख्या लगभग 45,000-65,000 तक होती है। इसमें सैंकड़ों द्विगुणित कोशिकाएँ (diploid cells) प्रारंभिक डिंबकोशिका (primary oocyte) में परिवर्द्धित हो जाती हैं।
यहाँ तक की सभी क्रियाएँ मीऑसिस (meiosis I) की प्रथम चरण की शुरुआत होती हैं जो डायकिनेसिस (diakinesis) तक पहुँचकर आगे की परिवर्धन क्रिया को बंद कर देती है।
अब डिबकोशिकाएँ (oocytes) अपने परिवर्धन की क्रिया मादा के लैंगिक रूप से परिपक्व होने के पश्चात प्रारंभ करती है। मादा प्रत्येक महीने एक बार में सिर्फ एक ही परिपक्व अंडा (mature ovum) बनाती है।
प्रारंभिक डिंबकोशिका पोषण प्राप्त कर बड़ी हो जाती है तथा प्रथम मीओसिस क्रिया पूरी हो जाती है। परिणामस्वरूप अंत में एक बड़ी परवर्ती डिंबकोशिका (secondary oocyte) तथा एक छोटी प्रथम ध्रुव पिंड (first polar body) का निर्माण होता है। प्रथम ध्रुव पिंड में कोशिकाद्रव्य की मात्रा कम, लेकिन क्रोमोसोम की संख्या परवर्ती डिंबकोशिका के समान होती है।
मनुष्य में प्रथम ध्रुव पिंड में मीओसिस II ( meiosis II) का विभाजन नहीं होता है। परवर्ती डिबकोशिका मीओसिस II (meiosis II) के मेटाफेज (metaphase) अवस्था तक पहुँचकर विभाजन को रोक देता है, लेकिन शुक्राणुओं के पहुँचने पर मीओसिस II (meiosis II) की क्रिया को पूर्ण कर देता है। इसके अंत में परवर्ती डिबकोशिका एक निषेचित डिंब (fertilized egg) या युग्ननज (zygote) तथा द्वितीय ध्रुव पिंड (second polar body) का निर्माण करती है।
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