बीज का निर्माण (Formation of Seeds in hindi)
निषेचन के पश्चात न केवल भ्रूणपोष (endosperm ) तथा भ्रूण ( embryo) में ही परिवर्तन होता है, बल्कि बीजांड (ovule) के अन्य भागों में भी परिवर्तन होता है। इसके फलस्वरूप बीजांड परिवर्तित होकर बीज (seed) बन जाता है। दोनों अध्यावरण (integuments) बीजावरण (seed coat) का रूप ले लेते हैं। इसमें से बाहरी अध्यावरण बीज चोल (testa) व भीतरी अध्यावरण टेग्मेन (tegmen) कहलाता है।
कुछ बीजों में बीजांड पर केवल एक अध्यावरण (integument) होता है और कुछ परजीवी पौधों में कोई भी अध्यावरण (integument) नहीं होता।
नाभिका (hilum), बीजांडद्वार (micropyle), रैफे (raphe) और चैलाजा (chalaza) बीज में भी पूर्ववत बने रहते हैं। विकास के दौरान लगभग पूरा बीजांडकाय (nucellus) काम में आ जाता है, परंतु कभी-कभी यह सिर्फ एक पतली पत्रित झिल्ली (papery membrane) के रूप में रह जाता है। इसे परिभ्रूणपोष (perisperm) कहते हैं। जैसे पाइपरेसी (Piperaceae), एमेरेंथेसी (Amaranthaceae) इत्यादि।
कुछ बीजों, जैसे जायफल (Myristica), शरीफा (Annona), लीची (Litchi) में बीजांडवृंत (funicle) की एक अतिवृद्धि भी होती है जो बीजांड के चारों ओर वृद्धि करती है और लगभग पूरे बीज को ढँक लेती हैं। इस प्रकार की अतिवृद्धि को बीजचोल या एरिल (aril) कहते हैं।
जायफल का गदाधारी और लीची का गूदा बीजचोल है। एरिल फलभित्ति के अंदर होता है तथा मांसल होने के कारण खाने के काम में आता है। जंगली जिलेबी (Pithecellobium dulce) में भी खानेवाला अंश बीजचोल ही होता है।
कुछ बीजों, जैसे रेंड़ी (castor ) में बीजांडद्वार पर एक छोटी-सी अतिवृद्धि (growth) हो जाती है जिसे बीजचोलक कहते हैं ।
बीज के एक ओर एक चिह्न भी कुछ पौधों में देखा जाता है, इस चिह्न को नाभिका (hilum) कहते हैं। यह उस स्थान को निर्देशित करता है जहाँ पर बीज या बीजांड, बीजांडवृंत (funicle) से जुड़ा रहता है।
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बीज के लाभ (Advantages of seeds in hindi)
आवृतबीजियों के लिए बीज बहुत लाभदायक हैं। चूँकि पुष्पी पौधों में परागण तथा निषेचन की क्रिया जल से स्वतंत्र है (शैवाल, ब्रायोफाइट्स, टेरिडोफाइट्स में निषेचन के लिए जल माध्यम आवश्यक है), अतः बीज का बनना अधिक भरोसेमंद है। इसके अतिरिक्त बीजों में विकिरण के लिए विभिन्न अनुकूलन होते हैं जिससे पादप प्रजाति के नए क्षेत्रों में पहुँचने एवं स्थापित होने में मदद मिल सके।
बीजों में भ्रूणपोष या स्वयं भ्रूण में पर्याप्त पोषण-सामग्री आरक्षित होती है जो बीज के अंकुरण के समय पोषण प्रदान करते हैं। यह बीज को तब तक पोषण देते हैं जब तक कि पौधा स्वयं ही प्रकाशसंश्लेषण न करने लगे। बीज में एक कठोर बीजावरण होता है जो भ्रूण को सुरक्षा प्रदान करता है। चूँकि बीज लैंगिक जनन के उपरांत बनते हैं, इसलिए ये नए आनुवंशिक संयोजन या जेनेटिक कॉम्बिनेशन्स (genetic combinations) को जन्म देते हैं और विविधता प्रदान करते हैं।
बीजों पर ही हमारी संपूर्ण कृषि आधारित है। बीजों का निर्जलीकरण (dehydration) तथा प्रसुप्ति (dormany) बीजों के भंडारण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। कुछ पौधों में बीज की अंकुरण क्षमता कुछ ही समय तक रहती है, परंतु कुछ पौधों में बीज सैकड़ों साल के बाद भी अंकुरित हो जाते हैं। इसका उदाहरण है ल्युपिनस आर्कटिकस (Lupinus arcticus) का बीज जो आर्कटिक टुंड्रा में पाया गया है।
यह बीज 10,000 वर्ष बाद भी अंकुरित होकर पुष्पित हुआ। इसी तरह का एक दूसरा उदाहरण है—फोयेनिक्स डैक्टीलीफेरा (Phoenix dactylifera) का जिसके बीज में 2000 वर्ष बाद भी जीवन-क्षमता (viability) पाई गई है। ये बीज मृत सागर (dead sea) के पास स्थित किंग हेराल्ड के महल के पुरातात्विक खुदाई के दौरान पाए गए।
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फल का निर्माण (Formation of Fruit in hindi )
निषेचन के पश्चात बीजांड में परिवर्तन से बीज का निर्माण होता है तथा अंडाशय और पुष्प के अन्य भागों में परिवर्तन से फल का निर्माण होता है। यदि किसी कारण से निषेचन नहीं हो पाता है तो अंडाशय मुरझाकर गिर जाता है। प्रत्येक फल में अंडाशय भित्ति (ovary wall) से फलभित्ति (pericarp) बनती है।
अंडाशय में परिवर्तन निम्नांकित प्रकार से होता है।
बाह्यदलपुंज (Calyx) — या तो झड़ जाते हैं या दीर्घस्थायी (persistent) होते हैं।
दलपुंज (Corolla) — प्राय: झड़ जाते हैं।
वर्तिकाग्र और वर्तिका (Stigma and style) — सूखकर गिर जाते हैं।
अंडाशय भित्ति (Ovary wall) — फलभित्ति (Pericarp) { फल (Fruit ) }
बीजांड (Ovule) — बीज (Seed) { फल (Fruit ) }
जैसे-जैसे बीजांड परिपक्व होकर बीज बनते हैं, अंडाशय एक फल के रूप में विकसित होता है। एक अंडाशय में एक या एक से अधिक बीजांड होते हैं। सूर्यमुखी कुल के पौधों में एक अंडाशय में केवल एक बीजांड होता है जबकि आलू कुल (Solanaceae family) के अंडाशय में अनेक बीजांड होते हैं। अंडाशय की दीवार से फलभित्ति (pericarp) बनती है। फलभित्ति मोटी भी होती है और पतली भी। जब यह मोटी होती है तब यह दो या तीन भागों से मिलकर बनी होती है—
(i) बाह्य-फलभित्ति (epicarp) — यह फल का छिलका बनाती है।
(ii) मध्य फलभित्ति (mesocarp) — यह फल का मध्य भाग होता है। आम, आडू, खजूर आदि में गूदेदार होता है।
(iii) अंतः फलभित्ति (endocarp) — यह फल का भीतरी भाग है। यह प्रायः पतला या झिल्लीदार होता है (जैसे नारंगी में) या कठोर और अष्टिल (stony), (जैसे आम, ताड़ आदि में ) ।
बहुत-से फलों में फलभित्ति इन तीन भागों में चिह्नित नहीं होती ।
जब फूल का केवल अंडाशय ही फल के रूप में विकसित होता है उस तरह के फल को यथार्थ फल (true fruit) या सत्य फल कहते हैं, परंतु कुछ पौधों, जैसे सेब, काजू, अखरोट, स्ट्रॉबेरी आदि में फल की रचना में पुष्पासन (thalamus) या बाह्यदलपुंज (calyx) की महत्त्वपूर्ण भागीदारी रहती है। इस प्रकार के फल को कूट फल या मिथ्या फल (false fruit) कहते हैं ।
इसे आभासी फल भी कहते हैं। सेब में पुष्पासन अंडाशय के चारों ओर बढ़ जाता है और गूदेदार हो जाता है। स्ट्रॉबेरी में पुष्पासन सूख जाता है और इसकी बाहरी उत्तल सतह पर छोटे-छोटे फल लग जाते हैं। काजू (cashew nut) में पुष्पावलि-वृंत (peduncle) तथा पुष्पासन बढ़कर गुदेदार हो जाते हैं। ।
कुछ फलों में केवल एक ही बीज होता है, जैसे सूर्यमुखी (sunflower) में। परंतु कुछ पौधों के फलों में हजारों की संख्या में बीज होते हैं, जैसे ऑर्किड (orchid) में।
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