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पेड़-पौधों में भ्रूण का विकास, द्विबीजपत्री भ्रूण का विकास, बहुभ्रूणता (Development of Embryo indi )

भ्रूण का विकास (Development of Embryo):

निषेचन के बाद अंडकोशिका (egg cell ) युग्मनज (embryogeny) कहते हैं। परिपक्व भ्रूण द्विबीजपत्री (zygote) का निर्माण करती है। जाइगोट से भ्रूण (embryo) बनने तक की क्रियाओं को भ्रूणोद्भव होते हैं या एकबीजपत्री।

द्विबीजपत्री भ्रूण का विकास (Development of dicotyledonous embryo) –

निषेचन के बाद युग्मनज में प्रथम विभाजन अनुप्रस्थ (transverse) होता है। इसमें बीजांडद्वार (micropyle) की तरफ स्थित कोशिका को आधार कोशिका (basal cell) या cb कहा जाता है। चैलाजा (chalaza) की ओर स्थित अंतस्थ कोशिका (apical cell) को ca कहा जाता है। इसके बाद के विभाजन के फलस्वरूप T-आकार का प्राभ्रूण (proembryo) बनता है।

ca में अनुदैर्ध्य भित्ति से जो कि प्रथम भित्ति के समकोण बनाती है, विभाजन होता है। इस विभाजन के फलस्वरूप चुतर्थांश (quadrant) बनता है। चतुर्थांश की कोशिकाओं में पुनः विभाजन होता है, इस विभाजन के फलस्वरूप अष्टांशक अवस्था (octant stage) बनती है।

अष्टांशक अवस्था के बाद प्राक्भ्रूण में विभाजन होता है तथा 16 कोशिकाएँ बनती हैं। यह 16 कोशिकाओंवाली संरचना गोलाकार भ्रूण (globular embryo) कहलाती है।

cb की दोनों कोशिकाओं में अनुप्रस्थ विभाजनों के फलस्वरूप 6 से 10 कोशिका लंबा निलंबक (suspensor) बनता है।

गोलाकार भ्रूण (globular embryo) में बीजपत्र बनने के स्थान पर विभाजनों के फलस्वरूप भ्रूण हृदयाकार (heart-shaped) हो जाता है। अनुप्रस्थ विभाजनों के फलस्वरूप दो बीजपत्र लंबे हो जाते हैं तथा बाद में चलकर मुड़ जाते हैं। प्रांकुर (plumule) बीजपत्र के बीच में ढँका रहता है। द्विबीजपत्री भ्रूण में दो बीजपत्र बनते हैं। बीजपत्राधार में बीजपत्रों के स्तर से नीचे बेलनाकार भाग जो कि मूलांत सिरा या मूलज (radicle or root tip) के शीर्षांत पर समाप्त होती है, इसे मूलगोप (root cap) कहते हैं।

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एकबीजपत्री भ्रूण का विकास (Development of monocotyledonous embryo) –

एकबीजपत्री पौधों के भ्रूण के विकास की प्रारंभिक अवस्थाएँ द्विबीजपत्री पौधों के भ्रूण के विकास की तरह ही होती हैं, परंतु एकबीजपत्रीय भ्रूण में केवल एक ही बीजपत्र बनता है। इस बीजपत्र को वरुथिका या स्कुटेलम (scutellum) कहा जाता है। यह भ्रूणीय अक्ष के एक तरफ स्थित होता है। इसके निचले सिरे पर, भ्रूणीय अक्ष (embryonal axis) में मूलांकुर तथा मूलगोप (root cap) अवस्थित होता है।

यह बिना विभेदित पर्त (undifferentiated sheath) से घिरा रहता है। इस संरचना को मूलांकुर चोल (coleorhiza) कहते हैं । स्कुटेलम के जुड़ाव के स्तर से ऊपर, भ्रूणीय अक्ष के भाग को बीजपत्रोपरिक (epicotyl) कहते हैं। बीजपत्रोपरिक में एक प्ररोह शीर्ष (shoot apex) होता है तथा इसमें कुछ आद्यपर्ण (leaf primordia) होते हैं जो एक खोखलीपर्णीय संरचना को घेरते हैं। इस संरचना को प्रांकुरचोल (coleoptile) कहा जाता है।

बहुभ्रूणता (Polyembryony)

जब एक बीज के अंदर एक से अधिक भ्रूण (embryo) हों तो इस अवस्था को बहुभ्रूणता (polyembryony) कहते हैं। यह अवस्था अनावृतबीजी (gymnosperms) में ज्यादा पाई जाती है। तथा आवृतबीजी (angiosperms) में कम पाई जाती है। आवृतबीजी पौधों में आम, नींबू के बीजों में सामान्यतया बहुभ्रूणता पाई जाती है। बहुभ्रूणता की खोज ल्यूवेनहॉक ने 1719 में की थी ।

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बहुभ्रूणता दो प्रकार की होती है —

  • सत्य बहुभ्रूणता (True polyembryony) — जब भ्रूणकोष (embryo sac ) में एक से अधिक भ्रूण उत्पन्न हों
  • असत्य बहुभ्रूणता (False polyembryony) — जब एक से अधिक भ्रूणों की उत्पत्ति दो या अधिक भ्रूणकोषों से हो
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बहुभ्रूणता के कारण (Causes of Polyembryony):

बहुभ्रूणता के निम्नलिखित कारण हो सकते हैं।

  • (क) जब बीजांड (ovule) में एक से अधिक भ्रूणकोष (embryo sac) हों
  • (ख) जब भ्रूणकोष में एक से अधिक अंडकोशिका (egg cell) हों
  • (ग) जब निषेचन के पश्चात अंड (egg) कई छोटे-छोटे भागों में विभाजित हो जाए तथा प्रत्येक भाग से एक भ्रूण का निर्माण हो
  • (घ) जब भ्रूणकोष (embryo sac ) की किसी भी कोशिका से भ्रूण का निर्माण हो
  • (च) जब भ्रूण का निर्माण भ्रूणकोष की बाहरी कोशिकाओं से हो ।

बहुभ्रूणता का महत्त्व (Importance of polyembryony):

बहुभ्रूणता उद्यान वैज्ञानिकों के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है। इसके द्वारा एक ही तरह के पौधों का निर्माण किया जा सकता है। पुत्री-पौधों (daughter plants) में मातृ-पौधों (mother plants) के गुण विद्यमान रहते हैं।

असंगजनन (Apomixis):

सामान्यतया निषेचन की क्रिया के पश्चात बीजों का निर्माण होता है, परंतु कुछ पौधों ने बिना निषेचन के ही बीज पैदा करने की क्षमता विकसित कर ली है, जैसे सूर्यमुखी कुल के कुछ पौधे तथा घास। असंगजनन को निम्नांकित रूप में पारिभाषित कर सकते हैं।

“वह प्रक्रिया या घटना जिसमें सामान्य लैंगिक जनन का स्थान पूर्णरूप से अलैंगिक जनन ले लेता है, असंगजनन कहलाता है। ” (The phenomenon in which normal sexual reproduction is completely replaced by asexual reproduction is called apomixis.)

असंगजननीय बीजों के विकास के कई तरीके हैं। कुछ स्पीशीज में द्विगुणित अंडकोशिका (diploid egg cell) का निर्माण बिना अर्धसूत्री विभाजन के हो जाता है। जब यह अंड कोशिका भ्रूण में परिवर्तित होती है तब भ्रूण द्विगुणित रहता है तथा इससे प्राप्त पौधा भी द्विगुणित होता है। इस प्रकार के बीजों के बनने में निषेचन की आवश्यकता नहीं पड़ती है।

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कुछ पौधों, जैसे नीबू, आम आदि में भ्रूणपोष के आस-पास की कुछ बीजांडकाय कोशिकाएँ (nucellar cells) विभाजित होकर भ्रूण के रूप में विकसित हो जाती हैं। इस प्रकार की स्पीशीज में एक बीजांड में कई भ्रूण होते हैं। एक बीज में एक-से-अधिक भ्रूण की उपस्थिति को बहुभ्रूणता (polyembryony) कहते हैं जिसका विवरण ऊपर दिया जा चुका है।

आजकल ढेर सारी खाद्य एवं शाकीय फसलों की संकर किस्में विकसित की गई हैं। यद्यपि इन किस्मों के प्रयोग ने कृषि की उत्पादकता को बढ़ा दिया है, परंतु इन किस्मों को प्रतिवर्ष खरीदकर बुआई करनी पड़ती है। इनके संगृहीत (stored) बीजों की बुआई करने पर संकर बीज की विशिष्टता यथावत नहीं रह पाती है। यदि ये बीज असंगजनन विधि द्वारा तैयार किए जाएँ तब किसान फसल-दर-फसल बीजों का उपयोग कर सकेंगे। इस प्रकार किसानों को प्रतिवर्ष संकर बीज खरीदने की आवश्यकता नहीं रह जाएगी।

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