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जनसंख्या वृद्धि से आप क्या समझते है, जनसंख्या वृद्धि के दुष्परिणाम, जनसंख्या वृद्धि रोकने के विभिन्न उपाय (ansankhya ki samasya

जनसंख्या वृद्धि ( Population growth)

जनसंख्या वृद्धि से आप क्या समझते है, जनसंख्या वृद्धि के दुष्परिणाम, जनसंख्या वृद्धि रोकने के विभिन्न उपाय (ansankhya ki samasya) आधुनिक जीवन व्यवस्था की अनेक सुविधाओं के कारण जनसंख्या वृद्धि प्रभावित होती है। 1900 में पृथ्वी पर जनसंख्या लगभग 2000 मिलियन (2 अरब) थी जो 2000 में तेजी से बढ़कर 6000 मिलियन (6 अरब) हो गई। स्वतंत्रता प्राप्ति के समय भारत की जनसंख्या लगभग 350 मिलियन, अर्थात 35 करोड़, थी जो 2000 में बढ़कर एक अरब, (1000 मिलियन से ज्यादा) हो गई। इसका मूल कारण है, मातृ मृत्यु दर एवं शिशु मृत्यु दर में कमी के साथ-साथ जनन-आयु के लोगों की संख्या में वृद्धि ।

विभिन्न संस्थानों के अथक प्रयासों के बावजूद इस वृद्धि दर में नाममात्र की कमी आई है। 2001 की जनगणना के अनुसार यह वृद्धि लगभग 1.7 प्रतिशत थी, फिर भी इस वृद्धि दर से 33 वर्षों में हमारी जनसंख्या दुगुनी हो सकती है।

इस प्रकार की जनसंख्या वृद्धि की दर पर अंकुश लगाना अति आवश्यक है। इस समस्या से निपटने के लिए लघु परिवार को बढ़ावा देना चाहिए जिसके लिए हमें विभिन्न गर्भनिरोधक उपायों को अपनाना चाहिए। इस व्यवस्था को हम विभिन्न विज्ञापनों में देख सकते हैं जैसाकि ‘हम दो हमारे दो’ या ‘हम दो हमारा एक। विवाह के लिए लड़की की न्यूनतम आयु सीमा 18 वर्ष तथा पुरुष की 21 वर्ष होनी चाहिए।

जनसंख्या वृद्धि के दुष्परिणाम

(i) प्रति व्यक्ति की आय कम हो जाएगी।

(ii) जमीन, खनिज, काष्ठ आदि प्राकृतिक संपदाओं की कभी हो जाएगी।

(iii) दिन-प्रतिदिन जनसाधारण का स्वास्थ्य खराब होता जाएगा।

परिवार की जनसंख्या वृद्धि होने से जो परिस्थिति उत्पन्न होगी, वह परिवार के लिए हानिकारक होगी। जैसे माता-पिता पर आर्थिक भार पड़ेगा, माँ की शारीरिक अवस्था ठीक नहीं होगी, बच्चे को भोजन में पोषक तत्त्व की उचित मात्रा नहीं मिलेगी तथा उचित चिकित्सा कराने की संभावना कम हो जाएगी। सबके स्वास्थ्य का उचित देखरेख संभव नहीं होगा। बच्चे समुचित शिक्षा तथा उचित सम्मान से वंचित होंगे, इसलिए हमें परिवार छोटा रखना चाहिए।

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जनसंख्या वृद्धि रोकने के विभिन्न उपाय ( Methods to control population-growth)

कृत्रिम प्रक्रिया से संतानों की उत्पत्ति को नियंत्रित करना संतति नियंत्रण (birth control) कहलाता है। संतति नियंत्रण से ही जनसंख्या वृद्धि में नियंत्रण संभव है। परिवार में संतानों की संख्या सीमित रखने के विषय में जानकारी देने के लिए परिवार नियोजन केंद्र (family planning centre) बने हैं। इसमें कार्यरत चिकित्सक या अन्य कर्मचारी जनता को संतति-नियंत्रण के विभिन्न उपाय, यौन-शिक्षा विषयों संबंधित विभिन्न प्रकार की जानकारी देते हैं।

निम्नांकित साधनों को अपनाकर संतानोत्पत्ति रोका जा सकता है। —

हॉर्मोनल विधियाँ —

आजकल विभिन्न प्रकार को हॉर्मोनों से बनी गर्भनिरोधक गोलियाँ, जैसे माला-N एवं माला – D बाजार में धड़ल्ले से मिलती हैं। ये खाने की टिकिया के रूप में होती हैं। ये गोलियाँ 21 दिनों तक प्रतिदिन ली जाती हैं। इन्हें मासिक चक्र के प्रथम पाँच दिनों में मुख्यतः पहले दिन से ही शुरू करना चाहिए।

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गोलियाँ समाप्त होने के सात दिनों के अंतर के बाद (जब पुनः मासिक चक्र शुरू होता है) इन्हें फिर से लिया जाता है एवं यह क्रम तब तक जारी रखा जाता है जब तक गर्भनिरोध की आवश्यकता है। गोलियाँ बहुत ही प्रभावशाली तथा बहुत कम दुष्प्रभाववाली होती हैं। इनके अलावा, सहेली नामक एक अन्य गर्भनिरोधक गोली है जो हफ्ते में मात्र एक बार ली जाती है एवं यह गोली उच्च-निरोधक क्षमतावाली होती है।

प्राकृतिक विधि

बाह्य स्खलन एक विधि है जिसमें पुरुष संभोग के समय वीर्य स्खलन से ठीक पहले स्त्री के योनि से अपना लिंग बाहर निकालकर वीर्यसेचन से बच सकता है।

स्तनपान अनावर्त विधि में प्रसव के बाद जब तक स्त्री शिशु को भरपूर स्तनपान कराती है तब तक अंडोत्सर्ग और मासिक चक्र शुरू नहीं होता है। इसलिए माता शिशु को जब तक (4–6 माह तक) स्तनपान कराती हैं तब तक प्रायः गर्भधारण नहीं करती है।

यांत्रिक विधियाँ या रोध विधियाँ

इस रोधक-साधन द्वारा अंडाणु और शुक्राणु को परस्पर मिलने से रोका जाता है। पुरुषों के लिए इस रोधक-साधन कंडोम (condom) कहते हैं। यह बाजार में ‘निरोध’ के नाम से भी उपलब्ध है। यह पतले रबर से बना होता है। यह संभोग के समय शिश्न पर एक आवरण का कार्य करता है जिससे वीर्य योनि में प्रवेश नहीं कर पाता। इसके इस्तेमाल से AIDS से भी बचाव होता है।

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डायफ्राम, गर्भाशय ग्रीवा टोपी – ये मानव-निर्मित उपकरण हैं जो रबर से बने होते हैं। सहवास के पूर्व गर्भाशय ग्रीवा को ढँककर शुक्राणुओं के प्रवेश को रोक दिया जाता है। रोधक साधनों के साथ शुक्राणुनाशक क्रीम या जेली का प्रायः इस्तेमाल किया जाता है। इससे गर्भनिरोधक क्षमता बढ़ जाती है।

आजकल एक विशेष प्रकार की विधि अंतः गर्भाशयी युक्ति (intrauterine device, IUD) का उपयोग होता है। विभिन्न प्रकार की युक्तियाँ हैं — लिम्पेस लूप, कॉपर-टी तथा कॉपर-7 इत्यादि । गर्भधारण में देरी या जो औरत बच्चों के जन्म में अंतराल चाहती है उसके लिए IUD आदर्श गर्भनिरोधक है। युक्तियों को अनुभवी नर्सों द्वारा योनिमार्ग से गर्भाशय में लगाया जाता है।

रासायनिक विधि

स्पर्मिसाइडल रसायन सर्भिक्स ( cervix ) के निकट लगा देने यह रसायन से संभोग के समय स्खलित वीर्य में मौजूद शुक्राणुओं को नष्ट कर देता है।

सर्जिकल विधियाँ —

नर में नसबंदी या वासेक्टोमी (vasectomy) किया जाता है। इसमें शुक्रवाहिका को काटकर धागे से बाँध दिया जाता है। इससे शुक्राणुओं का प्रवाह स्त्री के योनि में नहीं जा पाता है।

मादा में फैलोपिअन नलिका (Fallopian tube) को काटकर धागे से बाँध दिया जाता है। इससे शुक्राणु अंडाणु को संसेचित नहीं कर पाता है। इसे स्त्री- नसबंदी या ट्यूबेक्टोमी ( tubectomy) कहते हैं।

इसके अलावा एक और अवस्था में भ्रूण को शल्यक्रिया द्वारा योनि के रास्ते से बाहर निकाल दिया जाता है। इसे गर्भ का चिकित्सकीय समापन, MTP (medical termination of pregnancy) कहते हैं। शल्य चिकित्सक यह कार्य करने के पहले भ्रूण की जाँच करके देखते हैं कि उसे आनुवंशिक बीमारी के लक्षण हैं या नहीं। आनुवंशिक बीमारी के लक्षण होने पर, भ्रूण के माता-पिता के इच्छानुसार, 45 महीने के अंदर गर्भपात कर दिया जाता है। यह आजकल कानूनन मान्य है।

एमनियोसेंटेसिस (Amniocentesis)

इस जाँच के द्वारा गर्भ या भ्रूण (foetus) का स्वास्थ्य (health), लिंग (sex) या आनुवंशिक संरचना (genetic constitution) निर्धारित होता है। इसमें माता के गर्भाशय (womb) में सूई द्वारा ऐम्नियोटिक द्रव (amniotic fluid) नमूने के लिए निकाला जाता है।

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प्राय: एमनियोसेंटेसिस का प्रयोग आनुवंशिक दोष में गर्भावस्था (pregnancy) को समाप्त (terminate) करने के लिए किया जाता है। इसका प्रयोग उस स्थिति में करना चाहिए जिसमें यह पूर्णतः निर्धारित हो कि दोष पीढ़ी-दर-पीढ़ी से आ रहा है और आनेवाली संतान गंभीर रूप से विकलांग (handicap) होगा।

एमनियोसेंटेसिस अपने-आप में हानिकारक नही हैं। किसी आनुवंशिक दोष में DNA की संरचना में दखल देने के हमारे सपने को केवल एमनियोसेंटेसिस के द्वारा ही पूरा किया जा सकता है। अगर यह गर्भपात की तरफ पहला कदम है तो साथ ही में यह जीन उपचार (gene therapy) की तरफ भी पहला कदम है।

हमें स्क्रीनिंग (screening) और काउंसिलिंग (counselling) का विरोध नहीं करना चाहिए अगर यह मनुष्य जाति के संपूर्ण विकास के लिए किया जा रहा हो। मानव समुदाय (जाति) आनुवंशिक रोग से बहुत समय से पीड़ित रहा है। अब समय आ रहा है, जब हम इससे मुक्ति पा सकते हैं।

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चिकित्सीय सगर्भता समापन (Medical termination of pregnancy, MTP) —

गर्भावस्था पूर्ण होने से पहले गर्भ के समापन को चिकित्सीय सगर्भता समापन (MTP) कहते हैं जो समस्त संसार में साल में लगभग 45-50 मिलियन (4.5-5.0 करोड़) किया जाता है, अर्थात कुल सगर्भता का 1/5 भाग है। सगर्भता समापन से साधारणतः मादा भ्रूण की हत्या किया जाता है जो गैरकानूनी है। फिर भी इसे रोकने के लिए 1971 में भारत सरकार ने कानूनी स्वीकृति दे दी थी।

प्रारंभिक सगर्भता या गर्भावस्था के तीन महीने तक गर्भपात सुरक्षित होता है। छः महीने पूरा हो जाने पर गर्भपात कराना घातक होता है। यदि अकुशल हकीमों से गर्भपात कराया जाए तो यह माता एवं शिशु दोनों के लिए खतरनाक सिद्ध हो सकती है। इसलिए इस तरह के हानिकारक प्रवृतियों को रोकना चाहिए।

यौन संचारित रोग (Sexually transmitted diseases) —

जो रोग मैथुन द्वारा संचारित होता है उसे यौन संचारित रोग कहते हैं। जैसे गोनोरिया, सिफलिस, हर्पिस, क्लेमिडियता, लैंगिक मस्से एवं विशेष खतरनाक एच.आई.वी. (HIV, human immunodeficiency virus) तथा एड्स (AIDS, acquired immune deficiency syndrome) आदि ।

  1. यीस्ट-जनित रोग कैनडिडा एलबिकिस (Candida albicans) नामक यीस्ट के संक्रमण से होता है। इस रोग में पुरुषों के शिश्न के शिखरभाग में स्थित मुण्ड (glans) में एवं स्त्रियों के बाह्य जननांगों में खुजली होती है।
  2. प्रोटोजोआ, ट्राइकोमोनास भैजिनैलिस (Trichomonas vaginalis) द्वारा स्त्रियों की मूत्र-जनन नलिकाओं में संक्रमण के कारण योनि से स्राव होता है।
  3. बैक्टीरिया निसेरिया गोनोरी (Neisseria gonorrhoeae) के कारण पुरुष की मूत्रनली तथा स्त्रियों में गर्भाशय की ग्रीवा संक्रमित होती हैं। इस लैंगिक रोग को गोनोरिया ( gonorrhoea) कहते हैं।
  4. बैक्टीरिया ट्रेपोनेमा पैलिडम (Treponema pallidum) के कारण बाह्य जननांगों की त्वचा में फुंसी निकल जाती है। इस प्रकार के यौनरोग को सिफलिस (syphilis) कहते हैं।
  5. बैक्टीरिया क्लैमाइडिया ट्रैकोमोटिस (Chlamydia trachomatis) के कारण मूत्रमार्ग, सर्विक्स तथा फैलोपियन नलिका संक्रमित हो जाते हैं एवं इन सब अंगों में तीव्र सूजन हो जाती है। इन रोगों को क्रमश: यूरेथ्राइटिस (urethritis), सर्विसाइटिस (cervicitis) तथा सैल्पिनजाइटिस (salpingitis) कहते हैं।
  6. हर्पिस सिप्लेक्स वाइरस II ( Herpes simplex virus II) द्वारा बाह्य जननांगों में अत्यधिक जलनयुक्त छाले (blisters) निकल जाते हैं। इस वाइरल संक्रामक रोग को हर्पिस कहते हैं।
  7. ह्यूमैन पैपिलोम वाइरस (Human papillomavirus) के संक्रमण से योनि, बल्वा, शिश्न या गुदाद्वार में मस्सा (warts) निकल जाते हैं।
  8. एक गंभीर संक्रामक रोग जिसे एड्स, एक्वायर्ड इम्यून डेफिसिएंसी सिंड्रोम (acquired immune deficiency syndrome, AIDS) कहते हैं, जो मनुष्य में ह्यूमन इम्यूनोडेफिसिएंसी वाइरस (human immunodef iency virus, HIV ) द्वारा संक्रमित होता है। इससे शरीर की प्रतिरक्षा की क्षमता कम हो जाती है एवं इस कारण रोगी को विभिन्न प्रकार के संक्रमण होने लगते हैं। एक स्वस्थ व्यक्ति ( पुरुष / स्त्री) अगर AIDS से संक्रमित व्यक्ति ( पुरुष / स्त्री) के साथ संभोग करता है तब स्वस्थ व्यक्ति (पुरुष / स्त्री) भी इस रोग का शिकार हो जाता है। इसका एक और विशेष कारण है। यदि AIDS से संक्रमित व्यक्ति का रुधिर दूसरे स्वस्थ व्यक्ति को चढ़ाया जाए तो वह स्वस्थ व्यक्ति भी इस बीमारी का शिकार हो सकता है। HIV से संक्रमित गर्भवती महिला से उसके भ्रूण में इस रोग का संचरण हो सकता है।
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STD की जाँच (Diagnosis of sexually transmitted diseases) —

STD रोग की जाँच साधारणतया VDRL (यौनरोग रिसर्च परीक्षालय) में किया जाता है। कुछ जाँच निम्नलिखित हैं।

(i) संवर्ध द्वारा माइक्रोस्कोप में विशेष रंजक

(ii) DNA संकरण (DNA hybridization)

(III) पोलिमेरेज चेन प्रतिक्रिया (PCR)

(iv) विशेष प्रकार के एंटीजेन/एंटीबॉडी की जाँच (ELISA या अन्य किसी प्रक्रिया)

बंध्यता (Infertility) —

असुरक्षित सहवास के बावजूद दंपति यदि बच्चे पैदा नहीं कर पाते तो उन्हें ‘बांध्य दंपति’ कहते हैं। भारत में इसका दोष प्रायः स्त्रियों को ही दिया जाता है, लेकिन पुरुष में भी यह दोष पाया जा सकता है।

आजकल निम्नांकित तकनीकों द्वारा बच्चा पैदा किया जाता है।

(i) बच्चा पैदा करने हेतु भ्रूण स्थानांतरण विधि एक आधुनिक तकनीक है जिससे उत्पन्न बच्चे को साधारणतः टेस्ट ट्यूब बेबी कहते हैं। प्रयोगशाला में दाता स्त्री के अंडे का दाता पुरुष के शुक्राणुओं के साथ मिलन होने से युग्मनज या प्रारंभिक भ्रूण (8 ब्लास्टोमियर तक) को फैलोपी नलिकाओं में स्थानांतरित किया जाता है। इस प्रकार के भ्रूण स्थानांतरण को अंतः डिम्ब वाहिनी स्थानांतरण कहते हैं।

(ii) इसके अलावा जो भ्रूण 8 ब्लास्टोमियर से अधिक विकसित होगा उसे पूर्ण विकास के लिए गर्भाशय में स्थानांतरित कर दिया जाता है। इस विधि को अंत: गर्भाशयी स्थानांतरण (intrauterine transfer, IUT) कहते हैं ।

(iii) कुछ स्त्रियाँ अंडाणु उत्पन्न नहीं कर सकतीं, लेकिन निषेचन एवं भ्रूण के परिवर्धन के लिए उपयुक्त वातावरण प्रदान कर सकती हैं। इनमें अन्य दाता स्त्रियों से अंडाणु लेकर इनके फैलोपी नलिका में स्थानांतरित कर दिया जाता है एवं दाता पुरुष के शुक्राणु से निषेचन कर दिया जाता है।

(iv) एक प्रक्रिया में सीधे शुक्राणु को अंडाणु से सम्मिलित किया जाता है जिसे अंतःकोशिकीय शुक्राणु निषेचन ( ICSI) कहते हैं।

(v) संतान प्राप्ति के लिए दाता पुरुष से शुक्र लेकर कृत्रिम रूप से स्त्री की योनि में या उसके गर्भाशय में प्रविष्ट किया जाता है जिसे अंतः गर्भाशय वीर्यसेचन कहते हैं। इस तरह की प्रक्रिया तब की जाती है जब कोई पुरुष किसी स्त्री को वीर्यसेचित नहीं कर पाता है या जिस पुरुष के वीर्य में शुक्राणुओं की संख्या बहुत कम होती है।

उपरिलिखित सभी विधियों द्वारा संतान की प्राप्ति भारत में कुछ धनी लोग ही कर सकते हैं। हमारे देश में ऐसे अनेक गरीब एवं अनाथ बच्चे हैं जिन्हें देखभाल की आवश्यकता है। इनकी रक्षा करने के लिए हमारे देश में कानूनन लोग इन्हें गोद ले सकते हैं। यह सबसे सहज उपाय है जिससे संतान की प्राप्ति हो सकती है।

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