क्या आप गति के भौतिकी के बारे में अधिक समझना चाहते हैं? क्या आप उन बलों और त्वरण के बारे में अधिक जानना चाहते हैं जो वृत्ताकार गति का कारण बनते हैं? अगर ऐसा है, तो यह ब्लॉग पोस्ट आपके लिए है! इसमें, हम समान वर्तुल गति, अभिकेन्द्रीय बल, और अभिकेन्द्री त्वरण जैसे विषयों को शामिल करेंगे। अधिक जानकारी के लिए पढ़ें!
एकसमान वृत्तीय गति (Uniform Circular Motion):
यदि कोई कण किसी स्थिर वृत्त की परिधि पर नियत चाल (constant speed) से घूम रहा हो, तो उस गति को एकसमान वृत्तीय गति (uniform circular motion) कहते हैं। यदि चाल में समय के साथ लगातार परिवर्तन हो, तो उसे असमान वृत्तीय गति (nonuniform circular motion) कहेंगे। एकसमान वृत्तीय गति में गतिपथ के प्रत्येक बिंदु पर तात्क्षणिक वेग (instantaneous velocity) हमेशा पथ के अनुदिश (along), अर्थात स्पर्शरेखीय होता है। स्पष्टतः वेग का परिमाण तो नियत रहता है, किंतु इसकी दिशा निरंतर बदलती रहती है।
अभिकेंद्र त्वरण (Centripetal Acceleration):
किसी कण की एकसमान वृत्तीय गति में कण के वेग का परिमाण अचर होते हुए भी उसकी दिशा लगातार बदलती रहती है। दिशा के इस परिवर्तन के लिए कण पर एक बाह्य बल कार्य करता है, फलतः गति त्वरित (accelerated) कही जाती है। इस बल अथवा त्वरण की दिशा, वेग की दिशा (स्पर्शरेखीय) के लंबवत, अर्थात केंद्र की ओर दिष्ट (directed) रहती है। केंद्र की ओर दिष्ट इसी लग्ण को अभिकेंद्र त्वरण (centripetal acceleration) कहा जाता है।
अभिकेंद्र बल (Centripetal Force):
किसी क्षैतिज तल में यदि कोई कण नियत चाल से वृत्तीय पथ पर घूमता हो तो इसका वेग-सदिश (velocity vector) लगातार दिशा में बदलता रहता है। वेग-परिवर्तन के कारण यह त्वरित गति (accelerated motion) कहलाती है। न्यूटन के दूसरे नियम के अनुसार कण का वेग-सदिश तब तक नहीं बदल सकता जब तक कि इस पर कोई बाह्य बल ( external force) कार्य न करे । अतः, एकसमान वृत्तीय गति में कण पर बाह्य बल लगातार क्रियाशील रहना चाहिए जो उसके वेग की दिशा में निरंतर परिवर्तन करता रहे।
इस बल को हमेशा वेग की दिशा के लंबवत होना चाहिए अन्यथा त्वरण का एक घटक वेग की दिशा में भी होगा जो उसके वेग के परिमाण को बदल देगा। वृत्तीय पथ पर त्रैज्य दिशा (radial direction) हमेशा स्पर्शरेखा के लंबवत होती है, अतः एकसमान वृत्तीय गति में कण पर लगनेवाला बल हमेशा वृत्त की त्रिज्या के अनुदिश (केंद्र की ओर) लगता है जो उसे वृत्तीय पथ पर घूमने को बाध्य करता है। इस प्रकार के बल को अभिकेंद्र बल (centripetal force) कहा जाता है।
चूँकि अभिकेंद्र त्वरण का परिमाण v²/R होता है, स्पष्टतः m द्रव्यमान के कण पर लगनेवाला अभिकेंद्र बल F = ma = mv²/R
कोणीय चाल (angular speed) ω के पद में चूँकि v = Rω, अतः अभिकेंद्र बल F = mω²R
[द्रष्टव्य: अभिकेंद्र बल कोई नया बल नहीं है। यह साधारण बलों की प्रकृति से भिन्न भी नहीं है और वृत्तीय गति के कारण इसकी उत्पत्ति भी नहीं होती है। अभिकेंद्र (centripetal) का अर्थ होता है केंद्र को खोजनेवाला (centre seeking ) । स्पष्टतः, अभिकेंद्र शब्द बल के उस प्रभाव (effect) की ओर संकेत करता है जिससे कण की गति एकसमान वृत्तीय बनी रहती है, अर्थात वेग की दिशा लगातार बदलती रहती है, परंतु परिमाण नहीं बदलता। जैसे
(a) पत्थर की वृत्तीय गति में धागे का तनाव (tension),
(b) सूर्य के चारों ओर ग्रहों की वृत्तीय कक्षा में गुरुत्वाकर्षण बल,
(c) नाभिक के चारों ओर इलेक्ट्रॉन की वृत्तीय गति में वैद्युत आकर्षण बल आदि अभिकेंद्र बल प्रदान करते हैं।
ऊर्ध्वाधर वृत्त में गति ( Motion in a Vertical Circle):
ऊर्ध्वाधर वृत्त में घूमते हुए कण के वेग का परिमाण पथ के प्रत्येक बिंदु पर भिन्न-भिन्न होता है। नीचे की ओर आने के क्रम में कण की चाल बढ़ती है और ऊपर की ओर जाने के क्रम में चाल घटती है। स्पष्टतः, ऊर्ध्वाधर वृत्त में कण की गति असमान वृत्तीय गति (nonuniform circular motion) है। गतिपथ के प्रत्येक बिंदु पर अभिकेंद्र त्वरण के अतिरिक्त स्पर्शरेखीय त्वरण (tangential acceleration) भी होता है जिसके कारण कण के वेग का परिमाण लगातार बदलता रहता है।
अपकेंद्र बल : एक छद्म बल (Centrifugal Force : A Pseudo Force):
यांत्रिकी में प्रायः हम प्रेक्षण एवं माप वैसे निर्देश- फ्रेम (frame of reference ) में करते हैं जो स्थिर तारों के सापेक्ष या तो विराम में होते हैं या एकसमान वेग से गतिशील रहते हैं। ऐसे निर्देश- फ्रेम को जड़त्वीय निर्देश- फ्रेम (inertial frame of reference ) कहा जाता है। जड़त्वीय फ्रेम में प्रेक्षित बलों को वास्तविक बल (real force) कहा जाता है तथा न्यूटन का द्वितीय नियम मान्य होता है।
यांत्रिकी की किसी घटना को कभी-कभी ऐसे निर्देश- फ्रेम में भी प्रेक्षित किया जाता है जो frame) या उनके सापेक्ष जड़त्वीय नहीं होता। स्थिर तारों के सापेक्ष घूर्णन करनेवाले फ्रेम (rotating त्वरित-फ्रेम (accelerated frame) को अजड़त्वीय फ्रेम (noninertial frame) कहा जाता है।
अजड़त्वीय फ्रेम में न्यूटन के नियमों को लागू करने के लिए कुछ ऐसे बलों की कल्पना करनी होती है जिन्हें परिवेश में किसी पिंड से संबंधित नहीं किया जा सकता। ये बल छद्म बल (pseudo force) या अजड़त्वीय बल (non inertial force) कहलाते हैं। अपकेंद्र बल (centrifugal force) भी एक ऐसा ही अजड़त्वीय बल या छद्म बल है।
अपकेंद्र बल की उत्पत्ति एवं प्रकृति को समझने के लिए हम एक डोरी से बँधे पिंड पर विचार करते हैं जो एक जड़त्वीय फ्रेम में वृत्तीय पथ पर एकसमान चाल से गतिशील है। जड़त्वीय फ्रेम में स्थित कोई प्रेक्षक इस पिंड पर क्रियाशील जिस अभिकेंद्र बल को आवश्यक समझेगा उसे वह डोरी के तनाव से संबंधित करेगा। परंतु, पिंड के साथ घूमनेवाले प्रेक्षक (जो एक अजड़त्वीय फ्रेम में स्थित है) के लिए पिंड विरामावस्था में है।
अपने निर्देश-फ्रेम में न्यूटन के ‘गति के नियमों’ को लागू करने के लिए यह प्रेक्षक पिंड पर डोरी के तनाव के बराबर, परंतु दिशा में विपरीत एक अन्य बल का क्रियाशील होना आवश्यक समझेगा। इस बल को वह अपने परिवेश में किसी पिंड से संबंधित नहीं कर सकता। पिंड के साथ घूमनेवाले अजड़त्वीय फ्रेम में स्थित इस प्रेक्षक द्वारा आवश्यक समझा गया यही बल अपकेंद्र बल (centrifugal force) है। इस प्रकार, यह स्पष्ट है कि अपकेंद्र बल की कल्पना केवल अजड़त्वीय फ्रेम में की जाती है, जड़त्वीय फ्रेम में इसका कोई अस्तित्व नहीं होता।
शंक्वाकार लोलक (Conical Pendulum):
मान लिया कि m द्रव्यमान का एक गोलक (bob) किसी दृढ़ आधार के बिंदु 0 से l लंबाई के अवितान्य (inextensible) तथा हलके धागे द्वारा लटकाया गया है। गोलक को क्षैतिज तल में एक वृत्तीय पथ (त्रिज्या =r) पर एकसमान चाल v से घुमाया जाता है। इसी व्यवस्था को शंक्वाकार या शंकुनुमा लोलक (conical pendulum) कहते हैं ।
Conclusion
दोस्तों हमारा Blog….”एकसमान वृत्तीय गति, अभिकेंद्र बल, अभिकेंद्र त्वरण(Uniform circular motion, centripetal force, centripetal acceleration)”पढ़ने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद उम्मीद करता हूं कि इस आर्टिकल में आपको अपने सभी सवालों के जवाब मिल गए होंगे, फिर भी अगर आपके मन में कोई सवाल रह गया हो, तो आप हमसे Comments द्वारा पूछ सकते हैं.