एंडोडर्म का निर्माण (Formation of endoderm)
भ्रूण के आंतरिक कोशिका समूह या पिंड (inner cell mass) की कुछ कोशिकाएँ अलग होकर ब्लास्टोसील में विस्तारित हो जाती है तथा प्रथम एंडोडर्म कोशिकाओं का निर्माण करती है। ये कोशिकाएँ तेजी से संख्या में वृद्धि करके ब्लास्टोसिस्ट के बाहरी परत के नीचे द्वितीय परत को बनाती है।
अब ये सभी कोशिकाएँ धीरे-धीरे एक स्थान को घेरती हैं तथा एक नलिका जैसी रचना बनाती हैं जिसे प्रारंभिक आहार नली (primary gut) कहते हैं ।
आंतरिक कोशिका पिंड की सभी बची हुई कोशिकाएँ एक निश्चित रूप में व्यवस्थित होकर भौणिक पिंड (embryonic disc) का निर्माण करती हैं।
मेसोडर्म का निर्माण (Formation of mesoderm)
भौणिक पिंड के पुच्छीय भाग की कोशिकाएँ विभाजित होकर पिंड के स्थानीय हिस्से को मोटा बना देती हैं। आगे चलकर ये कोशिकाएँ भौणिक पिंड से स्वतंत्र हो जाती हैं तथा मेसोडर्म परत बनाती हैं।
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एक्टोडर्म का निर्माण (Formation of ectoderm)
मेसोडर्म के निर्माण के पश्चात भौणिक पिंड की बची हुई सभी कोशिकाएँ स्वतः एक परत में व्यवस्थित होकर एक्टोडर्म परत का निर्माण करती है ।
तीन जनन-स्तरों (परतों) का भविष्य (Future of the three germinal layers) —
भ्रूण के तीन जनन स्तरों को बनानेवाली कोशिकाएँ परिवर्धन के अंतिम चरण में परिवर्तित होकर वयस्क के निम्नांकित विभिन्न अंगों का निर्माण करती है।
- एक्टोडर्म की कोशिकाएँ त्वचा, मस्तिष्क, मेरुरज्जु तथा तंत्रिका को बनाती हैं।
- एंडोडर्म सबसे अंदर होने के कारण प्रारंभिक आहार नली (primitive gut) को बनाती जो बाद में परिवर्तित होकर पाचन तंत्र के विभिन्न अंगों का निर्माण करती है। इस स्तर की कोशिकाएँ श्वसन तंत्र, मूत्राशय तथा कर्ण के मध्यभाग को भी बनाती हैं।
- मेसोडर्म की कोशिकाएँ परिवर्तित होकर अनेक अंगों, जैसे नोटोकॉर्ड, मांसपेशियाँ, हृदय, रुधिर वाहिनियाँ, वृक्क तथा जननांगों को बनाती इस अंतरकोशिका समूह में कुछ विशेष प्रकार की कोशिकाएँ होती हैं जिन्हें स्टेम सेल्स ( stem cells) कहते हैं। इनमें इतना क्षमता होती है ये सभी ऊतकों एवं अंगों को उत्पन्न कर सकती हैं।
मनुष्य में सगर्भता (गर्भ) की अवधि 9 महीने तक होता है एवं प्रत्येक महीने में निम्नांकित कुछ-न-कुछ परिवर्तन होते रहता है।
(i) एक महीने के बाद शिशु का हृदय निर्मित होता है।
(ii) दूसरे माह के अंत में पाद और अँगुलियाँ विकसित होती हैं।
(iii) पहली तीन माह के अंत तक लगभग सभी प्रमुख अंग-तंत्रों की रचना हो जाती है।
(iv) पाँचवें माह के दौरान गर्भ की पहली गतिशीलता और सिर पर बालों का उगना देखा जा सकता है।
(v) 24वें सप्ताह के अंत तक पूरे शरीर पर कोमल बाल निकल आते हैं। इसके साथ ही आँखों की पलकें अलग-अलग हो जाती हैं। बरौनियाँ भी
बन जाती हैं।
(vi) 9 (कभी-कभी 9.5) महीनों के अंत गर्भ पूर्णरूप से विकसित हो जाता है एवं प्रसव के लिए तैयार हो जाता है।
प्रसव (Parturition)
सगर्भता (गर्भ) के पूर्ण समय (mature) हो जाने के पश्चात गर्भाशय में विशेषरूप से संकुंचन होता है जिसके कारण गर्भस्थ शिशु बाहर निकल जाता है। इस प्रक्रिया में ऑक्सीटोसिन नामक हॉर्मोन गर्भाशय पेशी में संकुंचन उत्पन्न करती है एवं शिशु गर्भाशय से जनन नाल द्वारा बाहर निकलता है। इस प्रक्रिया को प्रसव (parturition) कहते हैं। प्रसव के साथ-साथ अपरा भी गर्भाशय से बाहर निकल जाता है।
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दुग्धस्त्रवण (Lactation)
स्त्री में सगर्भता के समय (गर्भावस्था में) स्तन ग्रंथियों में कई प्रकार का परिवर्तन होता है एवं शिशु के जन्म के पश्चात स्तन ग्रंथियों से दुग्धस्त्रवण आरंभ हो जाता है। कई महीनों तक शिशु माता का दुग्धपान करता है। दुग्धस्त्रवण के आरंभ में माँ के दूध में कई प्रकार के एंटीबॉडी पदार्थ विद्यमान रहते हैं जो शिशु में प्रतिरोधी क्षमता उत्पन्न करने में विशेष सहायक हैं।
जनन स्वास्थ्य (Reproductive Health)
विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization (WHO)] के अनुसार, “जनन स्वास्थ्य जनन-संबंधी सभी तथ्यों के साथ एक संपूर्ण स्वास्थ्य है ।” भारत में सर्वप्रथम 1951 में ‘परिवार नियोजन कार्यक्रमों की शुरुआत हुई। जनन-संबंधी सभी विषयों की जानकारी हेतु स्वस्थ समाज तैयार करने के लिए जनता को उत्साहित करना आवश्यक है।
जनन स्वास्थ्य के विषय में निम्नलिखित पहलुओं पर विशेष रूप से ध्यान देना चाहिए ।
(i) जनता के बीच जनन संबंधी विषयों पर विभिन्न उपाय करना चाहिए (जैसे ओडियो-विजुअल एवं मुद्रित सामग्री) ।
(ii) विद्यालयों में यौन शिक्षा की पढ़ाई पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए ।
(iii) लोगों को यौन संचारित रोगों के विषय में जानकारी देना चाहिए ।
(iv) किशोर आयुवर्ग के लोगों को यौन संबंध में शिक्षित करना, गर्भवती माताओं की देखभाल तथा स्तनपान के महत्त्व के संबंध में जानकारी देना चाहिए।
(v) यौन-संबंधी अपराधों के बारे में शिक्षा देना स्वस्थ परिवार निर्माण में सहायक है।
(vi) जनन स्वास्थ्य के लिए जनन-संबंधी समस्याओं पर ध्यान देना चाहिए (जैसे गर्भपात, यौन संचारित रोग, गर्भनिरोधक इत्यादि) ।
(vii) मादा भ्रूण हत्या के लिए उल्बवेधन (amniocentesis ) जाँच पर कानूनी प्रतिबंध लगाना चाहिए ।
(viii) यौन-संबंधित सभी प्रकार की चिकित्सा विशेषरूप से संपादित होने से माता एवं शिशु मृत्यु दर में कमी हुई तथा लघु परिवार की संख्या में वृद्धि हुई है।