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उत्परिवर्तन किसे कहते हैं, उत्परिवर्तन के प्रकार, उत्परिवर्तन के कारण(Mutation in hindi)

उत्परिवर्तन (Mutation in hindi)

सामान्यतः संतानों के गुण अपने जनकों से बहुत मिलते-जुलते हैं, लेकिन कई मामलों में ये एक-दूसरे से अलग होते हैं। इन भिन्नताओं को विभिन्नता (variations) कहते हैं जो या तो आनुवंशिक होते हैं या वातावरण के प्रभाव से अस्थायी रूप में परिलक्षित होते हैं। आनुवंशिक परिवर्तन स्थायी होते हैं एवं एक पीढ़ी से अगली पीढ़ी में स्थानांतरित होते हैं।

अतः, उत्परिवर्तन(Mutation in hindi) किसी भी जीव में अचानक होनेवाला विशाल असत भिन्नता है जो वंशागत 1 (Mutation is sudden, random, heritable change in the genetic material of a cell which causes all the cells derived from it to be different in structure and behaviour.) वह संतान जो उत्परिवर्तन को प्रदर्शित करता है, उत्परिवर्ती (mutant) कहा जाता है।

डच वैज्ञानिक ह्यूगो डि ब्रीज (Hugo de Vries) ने 1901 में इवनिंग प्राइमरोज, जैसे Oenothera lamarckiana पर वंशागति का प्रयोग किया एवं उन्हें प्रयोग के उपरांत कुछ ऐसे पौधे मिले जो इवनिंग प्राइमरोज से आकार में काफी बड़े थे और उनके फूल भी कुछ भिन्न थे। इस आधार पर उन्होंने इन पौधों को उत्परिवर्ती (mutant) कहा और बताया कि अचानक ही एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में कुछ नए पौधे, जैसे Oenothera gigas उत्परिवर्तन के कारण उत्पन्न हो गए। इसका कारण उन्होंने उत्परिवर्तन या म्यूटेशन (mutation) बताया।

अध्ययनों से पता चला कि इवनिंग प्राइमरोज एक साधारण द्विगुणित (diploid) पौधा है जिसमें क्रोमोसोम की संख्या 14 (2n = 14) होती है, लेकिन उत्परिवर्तन से पैदा हुए बड़े पौधों, जैसे Oenothera gigas में क्रोमोसोम के 4 सेट होते हैं, अर्थात ये साधारण पौधे से भिन्न हैं और इसे टेट्राप्लॉएड या पॉलीप्लॉएड (tetraploid or polyploid) कहते हैं।

उत्परिवर्तन कायिक कोशिकाओं तथा जनन कोशिकाओं दोनों में हो सकता है। कायिक कोशिकाओं में होनेवाला उत्परिवर्तन जीवों की मृत्यु के साथ नष्ट हो जाता है जबकि जनन कोशिकाओं में होनेवाला उत्परिवर्तन अगली पीढ़ी में स्थानांतरित होता है। अगुणित पीढ़ी (haploid generation) की कोशिकाएँ उत्परिवर्तन के लिए उपयुक्त होती है, क्योंकि इनमें उत्परिवर्तन अधिक स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ता है।

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एक या अधिक जीनों में हुआ उत्परिवर्तन (Mutation in hindi) एक या अधिक लक्षणों को प्रभावित कर सकता है या अनेक जीनों में हुआ उत्परिवर्तन सिर्फ एक लक्षण को प्रभावित करता है। कभी-कभी एक ही जीन के उत्परिवर्तन से अनेक लक्षणों पर उसका असर पड़ता है, जैसे मटर के पौधे में एक उत्परिवर्तन से फूल का रंग लाल से सफेद तथा बीजावरण का रंग भूरे से सफेद हो जाता है। इस प्रकार के उत्परिवर्तन को बहुप्रभावी उत्परिवर्तन (pleiotropic mutation) कहते हैं।

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उत्परिवर्तन के प्रकार (Kinds of mutation in hindi)

आकार के आधार पर उत्परिवर्तन निम्नलिखित दो प्रकार के होते हैं।

वृहत उत्परिवर्तन (Large mutation, or macromutation hindi) —

वे सभी विभिन्नताएँ जो फीनोटाइप (phenotype) में दिखाई देती हैं, वृहत उत्परिवर्तन कहलाती हैं। इसके अंतर्गत क्रोमोसोम की संख्या एवं संरचना में होनेवाले परिवर्तन आते हैं।

सूक्ष्म उत्परिवर्तन (Small mutation, or micro mutation in hindi) —

ऐसी विभिन्नताएँ जो जीनोटाइप में होती हैं सूक्ष्म उत्परिवर्तन कहलाती हैं। इसके अंतर्गत DNA या आणविक स्तर पर हुए परिवर्तनों को सम्मिलित किया जाता है।

दिशा के आधार पर उत्परिवर्तन निम्नलिखित दो प्रकार के हो सकते हैं।

अत्र उत्परिवर्तन (Forward mutation hindi) —

जब उत्परिवर्तन वन्य (wild) गुणों से आगे की ओर होता है तो उसे अग्र उत्परिवर्तन कहते हैं, जैसे मटर के रंगीन पुष्पवाले वन्य पौधे से उत्परिवर्तन द्वारा सफेद पुष्पवाले पौधे का बनना।

प्रतिलोम उत्परिवर्तन (Reverse mutation in hindi) —

जब उत्परिवर्ती (mutant) जीवों से वन्य गुणों की ओर उत्परिवर्तन हो तो इसे प्रतिलोम उत्परिवर्तन कहते हैं, जैसे मटर के सफेद फूलवाले पौधे से रंगीन फूलवाले पौधे का उत्परिवर्तन । सामान्यतः उत्परिवर्तन का वर्गीकरण इस प्रकार किया जाता है।

गुणसूत्रीय उत्परिवर्तन या क्रोमोसोमल म्यूटेशन (Chromosomal mutation in hindi) —

क्रोमोसोम की संख्या एवं संरचना में होनेवाले परिवर्तनों को गुणसूत्रीय उत्परिवर्तन या क्रोमोसोमल म्यूटेशन कहते हैं।

क्रोमोसोम की संख्या में परिवर्तन (Changes in chromosome number) —

किसी भी जीव में क्रोमोसोम की संख्या निश्चित होती है और ये युग्मों में रहते हैं, जैसे मनुष्य में 2n = 46, मकई में 2n = 20 मटर में 2n = 14 आदि। इसे जीवों की द्विगुणित (diploid) अवस्था कहते हैं।

युग्मकों के निर्माण होने के समय अर्धसूत्री विभाजन से ये अगुणित (haploid) अवस्था में आ जाते हैं एवं दो युग्मकों (नर एवं मादा) के संलग्न से पुनः द्विगुणित अवस्था कायम हो जाती है। इसमें दो जीनोम (genome) मौजूद रहते हैं। जब किसी जीव में क्रोमोसोम की संख्या में परिवर्तन होता है तो उसे पॉलीप्लॉएडी (polyploidy) कहते हैं।

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बहुगुणिता (Polyploidy ) —

कोशिका विभाजन के समय होनेवाली गड़बड़ियों से क्रोमोसोम की संख्या में परिवर्तन होता है। यह परिवर्तन दो प्रकार का हो सकता है।

सुगुणिता या यूप्लॉएडी (Euploidy) —

जब क्रोमोसोम के अगुणित सेट में संपूर्ण रूप से वृद्धि होती है तो इसे या यूप्लॉएडी कहते हैं इस प्रकार के जीवों को यूप्लॉएड (euploid) कहते हैं। इसे सत्य बहुगुणिता (true polyploid) भी कहते हैं। किसी कोशिका में अगर क्रोमोसोम की संख्या तीन गुनी हो तो इसे ट्रिप्लॉएड (3n, or triploid), चार गुनी हो तो टेट्राप्लॉएड (4n, or tetraploid), पाँच गुनी हो तो पेण्टाप्लॉएड (5n, or pentaploid), छह गुनी हो तो हेक्साप्लॉएड (hexaploid) एवं कई गुनी हो तो बहुगुणित या पॉलिप्लॉएड (polyploid) कहते हैं।

बहुगुणिता में जब मूल क्रोमोसोम दो से अधिक बार उपस्थित होते हैं तो इसे स्वबहुगुणिता (autopolyploidy) कहते हैं, जैसे अगर किसी जीव में द्विगुणित जीनोम AA है, इसमें होनेवाली वृद्धि AAA, AAAA आदि स्वबहुगुणिता होगी। अगर दो विभिन्न जीवों के जीनोम, जैसे A एवं B संकरण द्वारा एक जगह एकत्र होकर वृद्धि करें तो इसे परबहुगुणिता (allopolyploidy) कहते हैं, जैसे AABB, AAABBB आदि। इसे या तो कृत्रिम रूप से उत्पन्न किया जाता है या ये प्राकृतिक रूप में पाए जाते हैं।

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असुगुणिता या एन्यूप्लॉएडी (Aneuploidy) —

इस प्रकार के उत्परिवर्तन में क्रोमोसोम की संख्या अगुणित संख्या की साधारण गुणित नहीं होती, बल्कि द्विगुणित संख्या से एक या दो क्रोमोसोम अधिक या कम होती है। इस क्रिया से उत्पन्न जीव एन्यूप्लॉएड (aneuploid) कहलाते हैं। इन्हें निम्नांकित दो वर्गों में बाँटा गया है।

(i) हाइपोप्लॉएडी (Hypoploidy) —

जब द्विगुणित क्रोमोसोम संख्या में एक या दो क्रोमोसोम की हानि होती है तो इस अवस्था को हाइपोप्लॉएडी कहते हैं। ये पुनः दो प्रकार के होते हैं।

मोनोसोमी (Monosomy) –

जब द्विगुणित क्रोमोसोम सेट में सिर्फ एक क्रोमोसोम की हानि होती है तो इसे मोनोसोमी (2n – 1) कहते हैं। इस प्रकार के जीवों में दो प्रकार के युग्मकों (n एवं n – 1) का निर्माण होता है। टर्नर संलक्षण या टर्नर्स सिंड्रोम (Turner’s syndrome) मोनोसोमी का उदाहरण है।

नलीसोमी (Nullisomy) –

इस प्रकार के उत्परिवर्तन में द्विगुणित क्रोमोसोम सेट में एक युग्म (pair) क्रोमोसोम की हानि होती है। इसे 2n – 2 द्वारा दर्शाया जाता है। इससे प्रभावित जीव शक्तिहीन एवं निष्क्रिय होते हैं।

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(ii) हाइपरप्लॉएडी (Hyperploidy ) —

जब द्विगुणित क्रोमोसोम संख्या में एक या दो क्रोमोसोम की वृद्धि हो जाती है तो इस अवस्था को हाइपरप्लॉएडी कहते हैं। ये निम्नलिखित तीन प्रकार के हो सकते हैं।

ट्राइसोमी (Trisomy) —

इस अवस्था में द्विगुणित क्रोमोसोम सेट में एक क्रोमोसोम की वृद्धि होती है जिसके चलते इन जीवों ( 2n +1 ) में दो प्रकार के युग्मक (n एवं n + 1) बनते हैं। बच्चों में मंगोलिज्म (Mongolism) या डाउन्स सिंड्रोम (Down’s syndrome) इसका एक उदाहरण है जिसके चलते ये मंदबुद्धि होते हैं। पौधों में धतूरा (Datura stramonium) में यह सामान्यतः पाया जाता है।

दोहरी ट्राइसोमी (Double trisomy) –

इसमें द्विगुणित क्रोमोसोम संख्या में किसी दो क्रोमोसोम की वृद्धि होती है। इसे 2n+1+1 द्वारा दर्शाया जाता है।

टेट्रासोमी (Tetrasomy) –

इस प्रकार के उत्परिवर्तन में द्विगुणित क्रोमोसोम के जोड़ों में एक समजात युग्मों की वृद्धि होती है। इसे 2n +2 से प्रदर्शित करते हैं।

क्रोमोसोम की संरचना में परिवर्तन (Changes in chromosome structure) —

अर्द्धसूत्री विभाजन के समय कभी-कभी क्रोमोसोम की संरचना में परिवर्तन हो जाता है। इन परिवर्तनों को क्रोमोसोमल विपथन (chromosomal aberrations) कहते हैं। यह निम्नलिखित प्रकार का होता है।

डेफीशिएन्सी (Deficiency) – इसमें क्रोमोसोम के किनारे वाले खंड का अभाव हो जाता है।

विलोपन या डिलीशन (Deletion) — इसमें क्रोमोसोम के बीच के खंड का अभाव हो जाता है।

द्विगुणन या डुप्लीकेशन (Duplication) — इसमें क्रोमोसोम का एक टुकड़ा दूसरे क्रोमोसोम से जुड़कर जीन्स का द्विगुणन करता है।

प्रतिलोमन या इनवर्सन (Inversion) –

इस प्रकार के उत्परिवर्तन में क्रोमोसोम का एक खंड टूटकर इस प्रकार जुड़ जाता है कि उस खंड पर स्थित जीन्स का क्रम विपरीत हो जाता है। जब प्रतिलोमित भाग ( inverted segment) में सेंट्रोमीयर (centromere) मौजूद हो तो इस प्रकार के प्रतिलोमन को पेरिसेंट्रिक प्रतिलोमन (pericentric inversion) कहते हैं। जब प्रतिलोमित भाग में सेंट्रोमीयर नहीं हो तो इस प्रकार के प्रतिलोमन को पारासेंट्रिक प्रतिलोमन (paracentric inversion) कहते हैं।

स्थानांतरण या ट्रांसलोकेशन (Translocation) –

इसमें क्रोमोसोम के खंडों का विनिमय (exchange) असमजात (nonhomologous) क्रोमोसोम्स के बीच होता
है| जब कोमोसोम का एक खंड स्थानांतरित होकर दूसरे क्रोमोसोम में जुड़ जाता है तो इसे साधारण स्थानांतरा (sipple translocation) कहते हैं, लेकिन जब दो क्रोमोसोम के बराबरवाले खंड एक-दूसरे से बदल जाते हैं तो इसे रेसिप्रोकल स्थानांतरण (reciprocal translOcation) कहते हैं।

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